यक्ष प्रश्न
यक्ष प्रश्न
उसकी सांस अभी भी धौंकनी सी ऊपर नीचे हुए जा रही है।
वो चारों उसे देख कर हतप्रभ हैं। बरसों बाद कोई खुद ब खुद उनके पास चल के आया है।
"अरे ओ लड़की। तूने कभी हमारे और हमारी हवेली के बारे में कुछ नहीं सुना क्या ? यहाँ नयी नयी आयी है क्या ?"
लड़की अभी भी बुत बन कर दीवार से चिपकी खड़ी है। गोंद भी इतना कस के शायद ही चिपक पाए।
"क्या हुआ गूंगी बहरी है क्या ? या हमें देख कर ज़ुबान पर ताला जड़ लिया है ?"
उन सब में से सबसे लम्बे वाले ने उससे पूछा।
लड़की ऐसे चुप है मानो कुछ बोल पड़ी तो अभी धरती पर प्रलय आ जाए। चुन्नी को उंगली में इतना कस के लपेट चुकी है की अब हफ्तों उंगली पर लाल लहू जमा रहने वाला है। माथे पर पसीना इतना, जैसे किसी झरने के नीचे सर लगा कर आयी हो।
"कोई पगली लगती है। पागल ही ऐसे और इस समय यहाँ मुंह उठा कर आ सकते हैं। "
उन में से सबसे नटखट ने अपनी राय दी है ।
उन सबने आपस में कुछ कानाफूसी की और लड़की को उस के हाल पर छोड़ देने का निश्चय किया।
लड़की अभी भी उन के साथ हवेली में ही है। उन्हें देखे जा रही है और सिमटी -सकुचाती ज़मीन पर ही बैठ गयी है।
"तुम जल्दी से घर क्यों नहीं जा रही ? इस शैतानी हवेली और यहाँ के बाशिंदों -हम भूतों से, डर नहीं लग रहा तुम्हें ?" सबसे छोटा भूत उस लड़की की निडरता से आश्चर्यचकित है।
उन सब भूतों को टुकुर टुकुर देख रही लड़की के मुंह से आखिरकार आवाज़ फूट पड़ी।
" बाहर निकली, तो जिनके डर से मैं यहाँ आ छुपी हूँ, वो मुझे किसी कीमत पर नहीं छोड़ने वाले। आप ही बताओ उन हाड मांस के इंसानों के सामने भूत -प्रेतों से कैसे डरूँ ?"