यही मेरी तमन्ना है
यही मेरी तमन्ना है
राकेश,सुचित्रा और रंजन तीनों ही क्लास मेट्स ही नहीं अच्छे दोस्त भी थे । जैसे ही तीनों की पढ़ाई पूरी हुई वे नौकरी के लिए जगह -जगह अर्ज़ी देने लगे तीनों को नौकरी मिलने में ज़्यादा समय नहीं लगा ।राकेश और रंजन को एक कंपनी में नौकरी लग गई और सुचित्रा कॉलेज में लेक्चरर बन गई । इस तरह तीनों अपने अपने काम में व्यस्त हो गए । परिवार से विवाह के लिए तीनों के घर से दबाव बढने लगा । रंजन ने अपने माता-पिता के द्वारा पसंद की गई देवकी से विवाह कर लिया । देवकी भी पढ़ी लिखी थी और बैंक में नौकरी करती थी । रंजन की शादी में ही राकेश ने सुचित्रा के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा ।सुचित्रा की तरफ़ से स्वीकृति मिलने पर दोनों ने अपने माता-पिता को मना लिया और विवाह कर लिया ।
ज़िंदगी मौज मस्ती से आराम से कट रही थी । रंजन के घर में लड़की आई और राकेश के घर लड़का । दोनों परिवार ख़ुश थे । जब भी समय मिलता एक दूसरे के घर आना -जाना लगा रहता था । बच्चे भी अच्छे मित्र बन गए । समय पंख लगाकर उड़ गया और रंजन तथा देवकी का तबादला दूसरे शहर में हो गया । उनके जाने के बाद राकेश और सुचित्रा एकदम मायूस हो गए थे पर नौकरियों की वजह से दिन गुजरते जा रहे थे ।बेटा पंकज भी अब इंजीनियरिंग की आख़िरी साल में था ।
इंजीनियरिंग के बाद अमेरिका जाकर उसे एम . एस भी करना था । राकेश और सुचित्रा भी यही चाहते थे । रंजन का भी फ़ोन आया था कि उनकी बेटी करीना भी अमेरिका जाना चाहती है एम . एस करने तो दोनों बच्चों को एक साथ एक ही यूनिवर्सिटी में पढ़ने भेजे तो दोनों को मदद हो जाएगी और हमें फ़िक्र भी नहीं रहेगा ।
इधर बच्चे भी ख़ुश थे साथ जाने के लिए । इस तरह दोनों ने टेक्सस यूनिवर्सिटी में एप्लाय किया और दोनों को सीट भी मिल गया । दोनों जाने की तैयारी साथ -साथ करने लगे । वहाँ पहले से ही गए उनके दोस्तों ने इनके लिए सारा इंतज़ाम कर दिया था ।
पंकज और करीना के जाने का समय निकट आ गया । और दोनों सही समय पर अपनी मंज़िल की तरफ़ बढ़ गए । जल्दी ही वे यूनिवर्सिटी में जॉइन भी हो गए और अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गए इधर रंजन और देवकी का तबादला फिर से वापस उसी जगह हो गया । अब दोनों परिवार ही एक दूसरे की सहायता करते हुए अपनी ज़िंदगी जी रहे थे । बच्चे भी वीकेंड पर बात करते थे ।
दोनों बच्चों की पढ़ाई ख़त्म होते ही रंजन ने करीना के लिए अमेरिका में ही सेटल्ड विजय से रिश्ता कर दिया । विजय ने वहीं रहकर पढ़ाई पूरी की और अब वहीं नौकरी भी कर रहा था । उन्हें भी वहीं पर पढ़ाई की हुई लड़की की ज़रूरत थी तो दोनों की चट मँगनी पट ब्याह हो गया । सिर्फ़ शादी के लिए ही दोनों आए थे । शादी करके चले गए । उनकी ही शादी में पंकज भी आया था । सुचित्रा के विवाह की बात चलाने पर उसने एक साल तक न करने की बात कही उसने कहा मुझे भी वहीं से पढ़ी लड़की चाहिए मिल गई तो अगले साल कर लूँगा । पंकज के जाते ही सुचित्रा ने लड़कियों को ढूँढना शुरू किया । अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से कहकर रख दिया कि उसे किस तरह की बहू चाहिए । कहते हैं कि शादी का समय आया तो किसी के लिए नहीं रुकता ज़्यादा ढूँढने की ज़रूरत भी नहीं पड़ी और एक सुंदर पढ़ी लिखी लड़की पंकज को भी मिल गई । जैसे ही पंकज के बताया हुआ समय समाप्त हुआ पंकज और रुक्मिणी की शादी धूमधाम से हो गई । पंकज भी अपनी नई नवेली दुल्हन के लेकर अमेरिका चला गया । रिश्तेदार और दोस्तों ने कहना शुरू कर दिया अकेला लड़का है और उसे सात समुंदर पार भेजने की क्या ज़रूरत है । पढ़ाई के बाद यहीं नौकरी कर लेता तो अच्छा था न । इसीलिए पहले ही यह सब बताकर बच्चों को भेजना चाहिए कि पढ़ाई होते ही यहीं वापस आना है क्योंकि बुढ़ापे में आप ही हमारा सहारा हो । उन्हें उनकी ज़िम्मेदारियों का एहसास दिलाना चाहिए ।इस तरह खुली छूट देने से ये बच्चे वहीं बस जाएँगे ।हम लोग यहीं रह जाएँगे बेबसी से उनका इंतज़ार करते हुए । जितने लोग उतनी बातें । वे लोग यह भूल जाते हैं कि भारत में रहकर भी उनके बच्चे उनसे फ़ोन पर भी अपनी व्यस्तता का बहाना बना कर बात नहीं करते हैं । बच्चे तो शादी करके अपनी ज़िंदगी आराम से जी रहे थे । इधर राकेश सुचित्रा और रंजन, देवकी भी रिटायर हो गए । बच्चों ने उन्हें अपने पास बुलाया चारों एक साथ मिलकर गए पूरा घूम फिरकर वापस मदरलेंड आ गए । सब दिन एक समान हो तो फिर क्या । एक रात सोते समय अचानक राकेश उठता है और सुचित्रा से कहता है मेरे सीने में दर्द हो रहा है पंकज को फ़ोन कर दो वह आ जाएगा । पंकज और देवकी आते हैं और राकेश को अस्पताल ले जाते हैं ।
अस्पताल पहुँचने से पहले ही राकेश की मृत्यु हो जाती है । राकेश के पार्थिव शरीर
को घर लाते हैं । पंकज को खबर दी जाती है । पंकज अकेले ही आता है क्योंकि रुक्मिणी को छुट्टी नहीं मिली और बच्चे की परीक्षा भी थी ।उसके आने से पहले ही राकेश की बड़ी बहन और दूसरे रिश्तेदार पहुँच जाते हैं । अब तो सब लोगों को बातें करने का मौक़ा मिल गया था । सुचित्रा पति के गुजरने के दुख में थी और लोगों की बातें सुन -सुनकर परेशान हो गई थी ।
पंकज के आने के बाद कार्यक्रम पूरे किए गए । सारे रिश्तेदार चले गए । जाते जाते सबने बिन माँगे ही उचित सलाह देने लगे कि पिता तो रहे नहीं अब माँ का ख़याल तो कर ले और यहीं आजा । यहाँ भी नौकरियों की कमी नहीं है । पंकज ने कुछ नहीं कहा । चुपचाप उनकी बातों को सुनता रहा । रात को सब साथ बैठे थे माँ के बारे में बात करने के लिए बुआ ने कहा देख बेटा यहीं आ जा माँ की सेवा कर ले पुण्य मिलेगा । बुआ भूल गई कि पिछले साल फूफाजी की तबियत बहुत ख़राब हो गई थी और सुबोध भैया समय पर नहीं पहुँच सके । जब तक वे पहुँचते फूफाजी की मौत हो चुकी थी । दूसरों को सीख देना आसान होता है । इसीलिए कहते हैं देत सिख , सिखियो न मानत ।
इन लोगों की बातें हो रही थी । पंकज मुँह लटकाकर बैठा था और सुचित्रा आँखों में आँसू भरकर तभी रंजन और देवकी आए रंजन ने कहा - देख सुचित्रा लोगों की बातों पर ध्यान मत दे ।पंकज को देख कैसे उदास हो गया है । सुमन दीदी आप भी क्या बातें करते हैं ।इंडिया में रहकर सुबोध जीजा जी के गुजरने पर नहीं आया क्रियाकर्म भी नहीं कर सका । पंकज सात समुंदर पार रहकर भी समय पर पहुँच कर उसने सारी विधियों को विधिवत पूरा किया । मैं ग़लती नहीं दिखा रहा पर बता रहा हूँ कि अपने ही इस तरह की बातें सुनाए तो बच्चे कहाँ जाएँगे और सुमित्रा बच्चों को बाहर भेजने का निर्णय हमारा था ।हमने बड़े ही शौक़ से बच्चों को अमेरिका भेजा था ।अगर हमें उन्हें अपने साथ ही रखना था तो पहले से ही उन पर पाबंदी लगा सकते थे पर नहीं हमें उनके भविष्य को उज्ज्वल बनाना था ,फिर आज जब सब लोग बच्चों को इतनी बातें सुना रहे हैं तो हमें चुप रहकर उनका साथ नहीं देना है । मेरी बातें अगर किसी को बुरी लगी हैं तो मुझे माफ़ कर दीजिए । सुमित्रा अगर तुम पंकज के साथ जाकर रहना चाहती हो तो ठीक है ।वह तुम्हें अपने साथ ले जाने के लिए तैयार है ।अगर यहीं रहोगी तो मैं और देवकी तो हैं ही तुम्हें कोई तकलीफ़ नहीं होने देंगे ।तुम खुद विचार करो और फ़ैसला तुम्हारा है ।
दोस्तों बच्चों को क़सूरवार मत ठहराओ । उन्हें अपराध बोध से ग्रस्त न होने दो । उन्हें अपनी ज़िंदगी जीने दो । आप चाहे तो वे जहाँ हैं वहीं जाकर उनके साथ रहिए । नहीं तो इंडिया में ही अपनी ज़िंदगी आराम से अपनी इच्छा से जी लीजिए,हर वीकेंड पर उनसे बात कीजिए, अगर जा सकते हैं तो छह महीने में एक बार उनके पास जाकर उनके साथ रहकर पोते नाती के साथ मज़े कीजिए और ख़ूबसूरत पलों को संजोइए । जब वे यहाँ आते हैं तो उनके साथ ख़ुशियों के पल गुज़ारें , पर अपने बच्चों के लिए दूसरों को कुछ कहने का मौक़ा मत दीजिए । वे हमारे हैं !हमारी ज़िंदगी हैं । उनके साथ उनका साथ कभी न खोएँ ......यही मेरी तमन्ना है ।