rekha karri

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यह कैसा बंधन है

यह कैसा बंधन है

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प्रमोद ने कहा—माँ आपको याद है न कल हमें स्कूल जाना है। अब मैं मिडिल स्कूल से हाई स्कूल में जा रहा हूँ।

सुरभि ने कहा— मुझे याद है प्रमोद कल चलेंगे।

सुरभि और प्रमोद दूसरे दिन सुबह स्कूल के लिए निकल गए। जैसे ही वे स्कूल पहुँचे प्रिन्सपल ने उन्हें अपने कमरे में बुलाया दोनों कमरे में पहुँच गए। पिछली कक्षा के अंकों के बारे में बातें हुई फिर उन्होंने कहा कि कल अपने पिता को लेकर आ जाइए और नई कक्षा में इसका एडमिशन करा लीजिए।

सुरभि ने प्रमोद के कान में कहा— तुझे तो एडमिशन मिलने से रहा। कहते हैं न कि न रहेगा बांस न रहेगी बाँसुरी के जैसे तुम्हारे पिता आएँगे नहीं और न तुम्हारी एडमिशन होगी।

प्रमोद का मुँह ग़ुस्से से लटक गया था। सुरभि ने प्रिन्सिपल जी से बात की और उनसे वादा किया कि प्रमोद के पिता बाहर टूर पर गए हैं वहाँ से आते ही उन्हें स्कूल लेकर आएगी। इस तरह उसने प्रमोद का एडमिशन करवा दिया था। यह आए दिन की बात थी कि सुरभि के पति रामनाथ एक सरकारी ऑफिस में बहुत बड़े पोस्ट पर थे। उनका काम पूरे भारत में था इसलिए महीने में पच्चीस दिन टूर पर ही रहते थे। इसलिए बच्चे अपनी माँ से ज़्यादा मिले हुए थे। पिता तो कभी कभी ईद के चाँद के समान दिखते थे।

बच्चों की हर जिद हर ख़्वाहिश सुरभि ही पूरा करती थी।प्रमोद बड़ा बेटा था वह नवीं कक्षा में पढ़ता था। उसका छोटा भाई प्रवीण सातवीं कक्षा में पढ़ता था।

इसी तरह साल गुजर गए थे। रिश्ते नाते, बच्चे, पूरे घर की बागडोर सुरभि ही सँभाल रही थी। अब रामनाथ के काम में कोई सुधार नहीं हुआ पर प्रमोद ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और एम एस करने अमेरिका पहुँच गया था। दूसरा बेटा प्रवीण भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था। सुरभि ने बहुत सोचा था कि प्रमोद की शादी तय कर दूँ परंतु उसने शादी करने से इनकार कर दिया था।

दूसरे बेटे ने अपनी पढ़ाई पूरी की और नौकरी पर लग गया था।

सुरभि ने उससे पूछा कि —- वह तो शादी के लिए तैयार है न या फिर अपने बड़े भाई के समान ही शादी न करने की बात करेगा।

उसने कहा कि— नहीं माँ ऐसा कुछ नहीं है आप जब बोलो जिसके साथ बोलो मैं शादी के लिए तैयार हूँ। सुरभि खुश हो गई और उसके लिए लड़कियाँ ढूँढने लगी।

उन्हें उनके ही बिरादरी में एक लड़की मिल गई जो पढ़ी लिखी थी और सुंदर भी थी।

सुरभि ने अपने छोटे बेटे प्रवीण की शादी बहुत ही धूमधाम से करने का फ़ैसला किया था। इसी बीच उसे पता चला कि प्रमोद ने चायनीस लड़की से शादी कर ली है और वह उसे अपने साथ प्रवीण की शादी में ला रहा है। पहले तो उसे अच्छा नहीं लगा पर बाद में सोचा कि चलो नहीं करूँगा कह रहा था पर कर तो लिया है।

प्रमोद अपनी पत्नी को लेकर आया जिसका नाम जिया था। उसे देख कर सुरभि खुश हो गई थी। प्रवीण की शादी में सुरभि ने सबसे अपनी बड़ी बहू का परिचय गर्व से कराया।

प्रवीण की शादी के बाद थोड़े दिन रहकर प्रमोद अपनी पत्नी के साथ चला गया था। प्रवीण की पत्नी बेला बहुत ही अच्छी लड़की थी। रामनाथ के साथ मार्निंग वॉक पर जाती थी दोनों की बहुत पटती थी। घर में बेला के आते ही रौनक़ सी हो गई थी। सुरभि के घर ज़्यादा दिन ख़ुशियाँ नहीं रुकी क्योंकि प्रवीण भी अपने भाई के पास अमेरिका जाने वाला था। उसे उसके ऑफिस की तरफ़ से जाने का मौक़ा मिला था।

अब उनके जाने की तैयारियाँ शुरू हो गई थी। सुरभि उदास हो गई थी क्योंकि इतने दिनों में बेला से उसे लगाव सा हो गया था।

प्रवीण और बेला के जाने का दिन आ गया था। सुरभि और रामनाथ ने बड़े ही बुझे दिल से उन्हें बिदा किया। दोनों ने भी इन्हें वहाँ आने का वादा लिया था कि जब भी बुलाएँगे बिना आना कानी किए ज़रूर आएँगे। रामनाथ ने वादा किया और उन्हें बॉय किया और घर वापस आ गए थे।

सुरभि घर में अकेली हो गई थी। रामनाथ तो अभी भी टूर पर निकल जाते थे। अब उनके जीवन में थोड़ा सा बदलाव यह आया है कि रामनाथ जहाँ भी जाते थे सुरभि को भी ले जाने लगे। अब सुरभि भी खुश हो गई थी क्योंकि उसे अलग अलग स्थानों को देखने का मौक़ा मिल रहा था। उसे रामनाथ से शिकायत तो अब भी थी। पुराने दिनों को याद करते हुए वह उन्हें ताने देती रहती थी।

फ़ोन की घंटी बजी देखा तो प्रमोद का फ़ोन था। सुरभि उससे बात कर रही थी तब उसने बताया कि आप दोनों के लिए टिकट ख़रीद लिया है पापा से बात कर लीजिए और यहाँ आ जाइए।

सुरभि ने कहा कि—- प्रमोद बेटे तुम ख़ुद एक बार पापा को बोल दो न उन्हें भी अच्छा लगेगा वैसे भी उन्हें हमेशा से यही शिकायत रहती आई है कि बच्चे सिर्फ़ तुमसे ही बात करते हैं मुझसे नहीं करते हैं।

बच्चे कहते हैं कि— उन्होंने कभी हमारे बारे में सोचा ही नहीं है। आपके ऊपर पूरी तरह से ज़िम्मेदारी सौंपकर खुद घुमक्कड़ बनकर घूमते रहे हैं और उसे ऑफिस का नाम दे दिया है। इसीलिए हमें उनसे बातें नहीं करनी है। अगर आप कहती हैं कि करना है तो क्या बात करें हमारे समझ में नहीं आता है क्योंकि हमने उनसे कभी बैठकर दो मिनट बातें ही नहीं की थी। तो प्लीज़ हमें बख्श दीजिए।

सुरभि दो पाटों के बीच पिसे जैसे पिसती थी कि रामनाथ शिकायत करते थे कि बच्चे मुझसे बात नहीं करते हैं और बच्चे शिकायत करते हैं कि हम उनसे क्या बात करें समझ में नहीं आता है।

रामनाथ को सुरभि ने टिकट की बात बताई और नहीं मालूम क्यों रामनाथ जाने के लिए तैयार हो गए थे। सुरभि खुश हो गई थी और दोनों अमेरिका जाने की तैयारी करने लगे। रामनाथ ने अपने काम से थोड़े दिनों की छुट्टी ले ली और दोनों अमेरिका अपने बच्चों के पास पहुँच गए थे। उनके दोनों बच्चों के घर पास पास ही थे। पहले बड़े बेटे के घर में रहने गए। सुरभि ने उस घर में देखा कि जिया रसोई में खाना बनाती ही नहीं थी। सुबह दोनों ऑफिस में खा लेते थे और शाम को वह घर आकर नूडल्स बना लेती थी। प्रमोद को नूडल्स नहीं पसंद थे इसीलिये ऑफिस आते समय वह अपने लिए कुछ खाने के लिए पिक करके आ जाता है। दोनों अपना अपना काम करते हुए ही खाना खा लेते थे।

सुरभि को बुरा लगता था क्योंकि प्रमोद को गरम खाना खाने की आदत थी। सुरभि का व्यवहार बहुओं के साथ बहुत अच्छा था पर वह एक ही बात को बार-बार कहकर सता देती थी इसलिए थोड़े दिनों में ही वे लोग सुरभि से तंग आ गए थे। सुरभि पति के साथ कुछ दिन प्रमोद के घर रहकर वे दोनों छोटे के पास पहुँच गए। सुरभि ने देखा कि बेला बहुत ही अच्छा खाना बनाती थी जबकि प्रवीण खाने का शौक़ीन नहीं है ईश्वर की माया देखो के प्रमोद खाने का शौक़ीन ही नहीं है उधर प्रमोद की पत्नी को खाना बनाना नहीं आता है। कई बार सुरभि ने उसे समझाया भी था कि इंडियन लड़की से शादी करेगा तो पूरी सब्ज़ी या इडली दोसा या ढोकला कुछ तो खाने को मिलेगा किंतु क़िस्मत के आगे किसी की भी नहीं चलती है। सुरभि ने यहाँ भी वही बातें दोहराई जो प्रमोद के घर किया था। यहाँ भी प्रवीण थक गया था माँ को समझाकर कि माँ आप बहुओं की कामों में टाँग मत अड़ाइए उन्हें जैसे रहना है रहने दीजिए आप हैं कि मेरी सुनती ही नहीं है।

ख़ैर ! अब सुरभि और रामनाथ को यहाँ आए हुए पाँच महीने हो गए थे। उनके वापस आने का समय हो गया था। सुरभि थोड़ी सी उदास तो हो गई थी पर वापस तो आना ही था तो दोनों वहाँ से ख़ुशी ख़ुशी वापस आ गए थे।

रामनाथ इंडिया आकर अपने कामों में व्यस्त हो गए थे। सुरभि भी जहाँ तक हो सके उनके साथ चली जाती थी।

यहाँ आने के थोड़ी सी समय में ही रामनाथ रिटायर हो गए थे। उन्होंने अपने काम से भी छुट्टी ले ली थी। रामनाथ घर में रहकर बोर हो जाते थे ऊपर से सुरभि के ताने कि तुमने जवानी में मेरे लिए कुछ नहीं किया है वह पुरानी बातों का पिटारा खोल कर बैठ जाती थी।

रामनाथ को ऐसा लगता था कि वे ज़िंदा ही क्यों हैं।

इसी चिंता में एक दिन उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वे सबको छोड़ कर चले गए थे। उन्होंने बहुत लोगों की मदद की थी उनके चाहने वाले बहुत थे। यह बात सुरभि को तब पता चला जब हज़ारों की संख्या में लोग उन्हें देखने आए थे। रामनाथ के दोनों बेटे अपनी पत्नियों के साथ मिलकर आए थे। उनके बेटों ने देखा हज़ारों लोग थे और वे सब रामनाथ के बारे में कुछ न कुछ अच्छा कह रहे थे। अंत में उन्होंने प्रमोद से भी अपने पिता के बारे में दो शब्द कहने के लिए कहा तो उसने सब लोगों के सामने कहा था कि मेरे पिताजी सिर्फ़ अपने लिए ही जिया था कभी उन्होंने अपने परिवार के बारे में नहीं सोचा था वह तो हमारी माँ थी जिनके कारण हम यहाँ तक पहुँचे हैं।

वह यह भूल गया था कि प्रत्यक्ष नहीं परंतु परोक्ष रूप से उन्होंने ही बच्चों की मदद की थी। माँ ने भी उन्हें पिता के बारे में उनसे यह नहीं कहा कि पिता ने भी उनकी मदद की थी क्योंकि वह अपने पति से ग़ुस्से में थी।

दूसरे बेटे ने बड़े भाई की हाँ में हाँ मिला दिया कुल मिलाकर सबने रामनाथ को सबके सामने बुरा बना दिया था। लोगों ने भी रामनाथ के बच्चों की निंदा की थी कि इतना करने पर भी उन्होंने पिता को इतना बुरा बना दिया है सबके सामने ! ऐसे बच्चे किसी के लिए कुछ नहीं कर सकते हैं।

पिता के सारे कार्यक्रम ख़त्म होते ही बच्चों ने माँ को अकेले छोड़कर अमेरिका वापस यह कहकर चले गए कि हम आपके लिए टिकट भेज देंगे आप आ जाना।

सुरभि अकेले ही अपना जीवन बिताने लगी बच्चों ने टिकट भेजा ही नहीं था। अब सुरभि को लगता है कि जब तक पति थे उनसे लड़ते हुए ही ज़िंदगी बिता दिया था और आज जब वे इस दुनिया में नहीं हैं तो उनकी याद आ रही है।

जिन बच्चों के लिए उन्होंने इतना किया था यहाँ तक कि पति को भी नज़रअंदाज़ किया था आज वे ही बच्चे उन्हें नज़रअंदाज़ कर रहे हैं। हे भगवान कैसा ज़माना आ गया है। वह सोचती है कि मुझे मेरे किए की सज़ा तो मिल गई है और उसे भुगतना ही पड़ेगा।

दोस्तों कई ऐसे पेशे होते हैं जहाँ पिता को अपने परिवार से दूर रहना पड़ता है परंतु इसका मतलब यह नहीं है कि पिता को अपने बच्चों की फ़िक्र नहीं होती है। वे अपने बच्चों के लिए सब कुछ करने के लिए तैयार रहते हैं।

हमें यह भी सोचना है कि पति ही हमारे लिए सब कुछ होते हैं। पति पत्नी के बीच बच्चों को भी नहीं आने देना चाहिए क्योंकि बच्चे बड़े होते ही वे माता-पिता को छोड़कर अपनी अलग दुनिया बसा लेते हैं और अंत में बच जाते हैं तो सिर्फ़ पति पत्नी ही इसीलिए उन्हें एक दूसरे की कद्र करनी चाहिए। 


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