वसंत कुंज
वसंत कुंज
“हैलो!अरे बेटा ये सब रहने दो।”
हर साल की तरह इस बार भी हम “करूणालय आश्रम “ही जाएँगे ये सब चोचले मुझे नहीं भाते…बस तुम लोग आ जाओ।”
“अच्छा !अच्छा !ठीक है जिसमें तुम लोगों की ख़ुशी।”कला जी ने फ़ोन रख दिया।
“चंदा,क्या बोल रही थी?”
विमल जी ने कला से पूछा।
“देखिए ना सब बच्चे ज़िद पर अड़े हैं।होटल आदि सब बूक कर दिए हैं ।कह रहे हैं कि होटल मेंधूमधाम से मनाएँगे।”बच्चों की इच्छाओं के आगे कला ने भी अपने भावनाओं के अरमानों पर लेपलगा दिया।
घर में उल्लास और उमंग का माहौल था।पूरे घर को पीले गेंदें और गुलदाउदी के फूलों से सजायागया था।‘कला कुंज’आज ‘वसंतकुंज’सा प्रतीत हो रहा था।चारों तरफ़ वासंती छटा की बहारथी।कोई मेहंदी लगा रहा था तो कोई पार्लर जाने की तैयारी...रीना बुआ पर फूफाजी नाराज़ हो रहेथे उनकी टाई नहीं मिल रही थी।सभी बेहद उत्साहित थे क्योंकि सबकी चहेती कला जी की शादीकी पचासवीं वर्षगाँठ जो थी।उत्सव में शामिल होने के लिए कई रिश्तेदार आए थे।वसंत पंचमी केदिन ही पाणिग्रहण हुआ था।कला जी सोच रहीं थी कैसे पचास वर्ष बीत गए ?पीछे मुड़कर देखनेपर उबड़ खाबड़ रास्ते और हरे भरे गलीचे नज़र आ रहे थे।कला और विमल जी कि जीवन कीबगिया फूलों और फलों से लदे हुए थे।जीवन के पचास वसंत में कला और विमल जी दोनों कभीएक दूजे से अलग नहीं हुए थे।
विमल जी ने जब सजी -धजी वासंती साड़ी में कला को देखा तो सहसा उनका मन सरसों के खेतकी तरह लहराने लगा।“इस उम्र में भी ग़ज़ब की सुंदर लग रही हो” विमल जी के कहने पर कला जीके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कुराहट आ गई ,मानो वो भी अपनी सहमति दे रही हों।वैवाहिकवर्षगाँठ की गोल्डन जुबली ख़ूब धूमधाम से सम्पन्न हुआ।
“कला,उठो !आज कितना सो रही हो?”जाओ देखो तो विहान क्यों रो रहा है?दो साल का पोता जोऑस्ट्रेलिया से कल ही आया था।मगर कला तो अपनी कला दिखा कर पचास वसंत का साथनिभा,सबको बुला कर ख़ुद अंतिम सफ़र पर निकल गई थी...।
कला जी के इच्छानुसार तेरहवीं के दिन सभी ने करूणालय आश्रम जाकर प्रार्थना सभा रखा औरभोजन ,कपड़ों का दान किया।जिसे पाकर आश्रम के बच्चों और बुजुर्गों के मुखमंडल पर वसंत कारंग बिखर गया।