वो तीन सिक्के
वो तीन सिक्के
बहुत मीठे स्वर में उसने लालाजी से तीन पेंसिल के लिए कहा। कहा कि मुझे 3 रुपए की दो पेंसिल दे दो, लेकिन लाला जी ने ईमानदारी दिखाते हुए तीन रुपए की जगह दो रुपए की ही पेंसिल के होने की बात कही। इस पर बच्ची ने तीन रुपए की ही पेंसिल की मांग की तो लाला जी ने पेंसिल के डब्बों में से कुछ पेंसिल निकालकर सामने रख दी। अब लड़की ने थोड़ा सोचा और झट से हां कर दी। उसने अपनी मुठ्ठी ऐसे कुछ 3 सिक्के निकालकर सामने रखें और पेंसिल उठाकर वहां से तेजी से चली गए लेकिन लालाजी ने ना जांचा ना परखा, बस दो-दो रुपए के सिक्के समझकर ज्यों के त्यों गल्ले में एक तरफ रख दिए।
थोड़ी देर के बाद बच्ची वापस आई और किसी कारणवश पेंसिल लौटाते हुए अपने पैसे मांगने लगी। लाला जी ने वही ज्यों के त्यों रखे हुए सिक्कों को उठाए और बच्ची को थमा दिए। इस बार भी लाला जी ने नहीं जांचा परखा। बच्ची ने पैसे वापस लिए और चली गई। लेकिन कुछ दूर जाकर उसने लाला जी के द्वारा दिए सिक्कों को गिनकर एक साइड अपनी जेब में रखकर दूसरी हथेली में से कुछ सिक्के लेकर वापस दुकान पर आई।
उसने कहा,' मैंने आपको तीन पेंसिल के छह रुपए दिए थे पर आपने मुझे चार रुपए ही दिए। मुझे दो रुपए और दो। इतना कहकर उसने सिक्के आगे काउंटर पर रख दिए। लाला जी ने सिक्के उठाकर गिने तो उसमें एक रुपए के दो सिक्के और दो रुपए का एक सिक्का था। लाला जी थोड़ी परेशानी में पड़ गए क्योंकि उन्होंने पहले गिना भी नहीं था। उन्होंने अपना पक्ष रखने के लिए कहा,' नहीं बेटा तुमने जो पैसे दिए थे वह मैंने एक तरफ रखें थे और जब वापस मांगे तो वही पैसे उठा कर दे दिए।' लाला जी ने अपनी बात में और दम रखने के लिए कहा ,'जरूर तुमने मुझे ₹4 दिए होंगे।'
लेकिन बच्ची अपनी बात पर अड़ी रही। वह कहती रही की आपने मुझे चार रुपए ही दिए हैं मुझे दो रुपए और दो। लालाजी समझाते रहे अपनी सफाई झाड़ते रहे, एक वक्त को सोचते भी कि डांट फटकार के भगा भी दूं ,लेकिन गलती तो लालाजी की भी रही क्योंकि उन्होंने गिनते वक्त भी नहीं देखा था।मजबूरन लालाजी को गल्ले में से दो रुपए का सिक्का निकालकर बच्ची को देना पड़ा और वह बच्ची वहां से बिना किसी सवाल के उठे बिना ही वहां से चली गई लेकिन वह तीन सीक्के एक सबक जरूर छोड़ गए।