Saroj Verma

Romance Others

4.0  

Saroj Verma

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वो जो अधूरी सी बात बाकी है...

वो जो अधूरी सी बात बाकी है...

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पापा! जल्दी चलिए ना, वैसे भी बहुत देर हो चुकी हैं, स्कूल का पहला दिन है, पहला दिन और लेट, बहुत खराब इम्प्रेशन पड़ेगा, संस्कृति अपने पापा सौरभ से बोली।

नहीं बेटा! ऐसे कैसे? मेरे रहते हुए तो स्कूल देर से कैसे पहुंच सकती है, सौरभ बोला।

तो पापा! कार की स्पीड थोड़ा और बढ़ा लिजिए ना, संस्कृति बोली।

 ठीक है.... ठीक है... ले बढ़ा ली, सौरभ बोला।

और थोड़ी ही देर में सौरभ ने संस्कृति को स्कूल पहुंचा दिया, संस्कृति सौरभ को बाय करके स्कूल के गेट के अन्दर चली गई।

संस्कृति बारहवीं की छात्रा है, सौरभ का अचानक प्रमोशन हुआ और उसे नए शहर भेज दिया गया, जहाँ उसे आँफिस का बंगला और कार मिली है, घर व्यवस्थित करने के लिए एक हफ्ते की छुट्टी पर है, इसलिए संस्कृति के साथ ही सारा समय बिता रहा है, बस तो लगा ली संस्कृति के स्कूल आने जाने के लिए लेकिन अभी फ्री हैं इसलिए स्कूल छोड़ने आ गया।

           सौरभ की पत्नी स्नेहा बहुत ही महत्वाकांक्षी थी, उसके सपने उसके लिए परिवार से ज्यादा बढ़कर थे इसलिए वो सौरभ से तलाक लेकर विदेश चली गई और वहाँ उसने किसी बडे़ बिजनेस टाइकून से शादी कर ली, यहाँ तक कि उसने संस्कृति से भी हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ लिया, वो उसे ना कभी फोन करती हैं और ना कभी याद करती है।

      संस्कृति अपनी क्लासरूम पहुंची, उसे बहुत ही अजीब लग रहा था, सब उसे घूर घूरकर देख रहे थे तभी उससे किसी ने पूछा___

  न्यू एडमिशन!!

संस्कृति ने पीछे मुड़कर देखा तो लगभग उसकी ही हम उम्र की एक लड़की खड़ी थी।

 संस्कृति बोली, हां!

वो लड़की क्लास के सभी बच्चों से बोली___

देखो! बच्चों, नया पंक्षी आया है।

सब बच्चे हंसने लगे, संस्कृति को थोड़ा इम्ब्रेसिंग सा लगा।

 उस लड़की ने पूछा, नाम क्या है तेरा?

 संस्कृति! संस्कृति बोली।

फिर वो लड़की बोली, देखो बच्चों !ये हैं हमारे देश की धरोहर और जानती हैं मैं कौन हूँ?

 संस्कृति ने ना में सिर हिलाया___

मैं हूँ, नैनसी! और इस क्लास में जो मैं कहतीं हूँ, सब वही करते है, आज से तुझे भी वही करना होगा, जा अब बैठ जा अपनी सीट पर, किसी से कोई शिकायत या कम्पलेन की तो मुझसे बुरा कोई ना नहीं होगा, समझी।

  और तब तक टीचर क्लास में पहुंच चुकीं थीं और उन्होंने सबसे संस्कृति का इन्ट्रोडक्शन कराया।

  दोपहर मे लंच के समय संस्कृति कैन्टीन पहुंची, वो आज लंचबॉक्स नहीं ला पाई थीं, बहुत देर हो गई थी तैयार होने में ही इसलिए चाय और टोस्ट खाकर ही आ गई थी।

     कैन्टीन से एक प्लेट चाउमीन, एक समोसा और एक फ्रूटी लेकर वो खाने बैठी ही थी कि नैनसी अपने दो दोस्तों के साथ आकर बोली, अकेले ही खाओगी, हमें भी भूख लगी है, हम भी खाना चाहते हैं और उनमें से एक चाउमीन उठाई, एक ने समोसा, एक ने फ्रूटी उठाई और खा पीकर चलती बनी, संस्कृति उन सबका मुंह देखकर रह गई, अब उसके पास और पैसे भी नहीं थे कि वो कुछ खरीद कर अपनी भूख मिटा सकें।

     नैनसी ने दूसरे दिन भी यही किया, अब तीसरे दिन संस्कृति ने सुबह सुबह उठकर अपने और सौरभ के लिए आलू के परांठे बना लिए, कुछ खाए और कुछ स्कूल के लिए टिफिन में पैक कर लिए लेकिन सौरभ से अभी तक कुछ नहीं बताया।

    नैनसी फिर कैन्टीन पहुंची लेकिन वहाँ उसे संस्कृति नहीं दिखी, वो क्लासरूम वापस आई, देखा तो संस्कृति अपने टिफिन से लंच कर रही थी, नैनसी उसके पास पहुँची और जोर का धक्का देकर संस्कृति का लन्चबाँक्स गिरा दिया, अब तो संस्कृति का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुँचा, उसने नैनसी को जोर का थप्पड़ लगाया, अब तो नैनसी का गुस्सा भी कहाँ थमने वाला था, वो सीधे प्रिन्सिपल के पास पहुँच गई, दोनों के पेरेंट्स को बुलाया गया।

      नैनसी की मम्मी को देखकर सौरभ आश्चर्यचकित हुआ, नैनसी की मम्मी भी सौरभ को देखकर थोड़ी परेशान हो उठी, दोनों के हाव भाव देखकर ऐसा लगा कि वो दोनों शायद एक दूसरे को पहले से जानते हैं।

      झगडे़ का निपटारा हुआ तो सारी गल़्ती नैनसी की ही नज़र आई, नैनसी की मम्मी ने प्रिन्सिपल और सौरभ से माँफी माँगते हुए कहा कि____

 मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ, अपनी बेटी के व्यवहार से।

प्रिन्सिपल बोली__

  ऐसा कई बार हो चुका है, मिसेज माथुर, नैनसी ने सारी क्लास को तंग कर रखा है, कितना समझा चुके, कितने बार समझा चुके लेकिन वो समझने को तैयार ही नहीं है।

     जी, मैं एक बार फिर से उसे समझाने की कोशिश करूँगी, मिसेज माथुर बोली।

आपकी छोटी बेटी को ही देखिए, उसकी कभी कोई शिकायत नहीं आती और एक ये है आए दिन कोई ना कोई प्राब्लम खड़ी करती रहती है, प्रिन्सिपल बोली।

    अबसे ऐसा नहीं होगा, मैं वादा करती हूँ, मिसेज माथुर बोली।

ओके, आप कह रहीं हैं तो ठीक है, प्रिन्सिपल बोली।

   ठीक है तो मैडम, हम चलते हैं, सौरभ बोला।

प्रिन्सिपल से इतना कहकर दोनों पेरेंट्स गेट के बाहर आ गए और दोनों बच्चे क्लासरूम में चले गए।

     तभी मिसेज माथुर आँटो को देखने लगी लेकिन कोई भी आँटो वाला नहीं दिखा, तब सौरभ बोला।

 क्या मैं आपको छोड़ दूं, अगर आपको कोई एतराज ना ह़ो तो।

    जी, ऑफिस बीच में छोड़कर आ गई थी, आँफिस दोबारा जाना होगा, मिसेज माथुर बोली।

जी आइए, मैं आपको छोड़ देता हूँ, सौरभ बोला।

मिसेज माथुर के पास और कोई चारा नहीं था सिवाय सौरभ की कार के और दोनों कार में आ बैठे।

     हाँ, तो कैसी चल रही है लाइफ, खुश तो हो ना अब अपने फैसले पर, जो तुमने सालों पहले लिया था, सौरभ ने मिसेज माथुर से पूछा।

    सौरभ तुम्हें अच्छी तरह से पता है कि जो रास्ता मैंने चुना था उसके लिए मुझे मजबूर किया गया था, मिसेज माथुर बोली।

      अराध्या! अपनी मजबूरी तो आकर मुझे बताई होती, मैं बात करता तुम्हारे बाबूजी से, लेकिन तुमने तो पहले ही हार मान ली और चली गईं मेरा दिल तोड़कर, काश तुम ने अपनी मजबूरी मुझसे कही होती तो हम आज साथ होते, सौरभ बोला।

     लेकिन सौरभ अब इन बातों का कोई मतलब नहीं, तुम अपनी बीवी और बच्ची के साथ खुश हो और मैं अपने बच्चों के साथ, अराध्या बोली।

      मैं और खुश, तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे कि तुम्हें सब पता हैं, सौरभ बोला।

क्यों ऐसा नहीं है क्या? अराध्या ने पूछा।

     मेरी बीवी तो शादी के दो साल बाद ही, मुझे और संस्कृति को छोड़कर विदेश चली गई, बहुत महत्वाकांक्षी थी वो, रईस बाप की बेटी थी, अपने बाप के कहने पर मुझसे मजबूरी में शादी कर ली, लेकिन वो कुछ और ही चाहती थी, बेटी भी मजबूरी में हुई, वो कभी बच्चा तो चाहती ही नहीं थी, विदेश जाकर किसी बूढ़े बिजनेस मैन से उसने शादी कर ली, जिसके दो जवान बच्चे थे, अब मैं और संस्कृति है बस और मां भी दो साल पहले हमें छोड़कर चली गई, सौरभ ने अपनी सारी दास्ताँ अराध्या को सुना दी।

      अब तुम कुछ सुनाओ, तुम्हारे पति कैसे हैं, सौरभ ने पूछा।

  मेरे पति को दस साल हो गए, प्लेन क्रैश में उनकी मृत्यु हो गई, दो बेटियाँ हैं, बड़ी से तुम तो मिल ही चुके हो, छोटी बहुत शांत हैं, जिन्दगी यूं ही गुजर जाती है, पता ही नहीं चलता, हमलोग भी शायद बीस सालों के बाद मिल रहे होगे, बहुत लम्बा अरसा बीत गया है, अराध्या बोली।

    हां सही कहा, सौरभ बोला।

ऐसे ही बातों ही बातों में अराध्या का आँफिस आ गया और वो कार से उतर कर चली गईं।

     सौरभ घर पहुंचा और अराध्या को लेकर थोड़ा खुश भी था और थोड़ा परेशान भी था, अराध्या मिली भी तो अब, जब जिन्दगी ने एक नया मोड़ ले लिया है, उसे देखकर ना जाने कितनी यादें ताजा हो गईं, जिस जख्म को सालों से भरने की कोशिश कर रहा था, उसमे आज फिर दर्द महसूस हो रहा है, मिली हो तो इस उम्र में और इसी उलझन में उलझते उलझते सौरभ को नींद ने घेर लिया।

     कुछ देर में दरवाज़े की घंटी बजी, शायद संस्कृति आ गई थी, सौरभ ने दरवाजा खोला।

आ गई बेटा, सौरभ बोला।

  हां, पापा! कुछ खाने को हैं, बहुत जोर की भूख लगी है, उस चुडै़ल ने मेरा खाना गिरा दिया था, संस्कृति बोली।

    हाँ, तेरे स्कूल जाने के बाद मैंने भिण्डी, दाल और कुछ रोटियाँ बनाई थीं, मुझे भी भूख लग रही है, मैं खाना लगाता हूँ, तुम चेन्ज कर के जल्दी से आओ, सौरभ बोला।

  ओके, पापा! अभी आई, संस्कृति इतना कहकर चेन्ज करने चली गई।

  थोड़ी देर में दोनों खाना खाने बैठे, तभी सौरभ ने पूछा__

इतना सब कुछ हो रहा था, तूने पहले क्यों नहीं बताया मुझे।

   मुझे लगा क्लास का मामला हैं, सोल्व हो जाएगा लेकिन वो तो पीछे ही पड़ गई, संस्कृति बोली।

आज मैं उसकी मम्मी से मिला, उन्हें मैंने उनके आँफिस तक छोड़ा, उसके पापा नहीं हैं, सब कुछ मम्मी को ही सम्भालना पड़ता है, सौरभ बोला।

        जो भी हो पापा! बहुत ही बिगड़ी हुई लड़की हैं, उसकी मम्मी ने उसे कोई मैनर्स नहीं सिखाएं, संस्कृति बोली।

   नहीं बेटा! ऐसा मत बोलो, अराध्या ऐसी बिल्कुल भी नहीं हैं, मैं तो उसे सालों से जानता हूँ, सौरभ भावनाओं में बहकर सब कुछ बोल गया।

     अच्छा तो क्या? आप उन्हें पहले से जानते हैं, संस्कृति ने पूछा....

    संस्कृति की बात सुनकर सौरभ बोला___

हाँ, बेटा मैं और अराध्या एक साथ पढ़ते थे, पहले स्कूल में फिर काँलेज में, साथ साथ बहुत गहरी मित्रता हो गई और काँलेज में पढ़ते पढ़ते उस मित्रता ने प्यार का रूप ले लिया, फिर हमने सोचा कि कुछ बन जाएं, अपने पैरों पर खड़े हो जाएं तो ये बात घरवालों को बता देंगे लेकिन इससे पहले ही...

    लेकिन इससे पहले ही क्या हो गया पापा! संस्कृति ने पूछा।

मुझसे बिना कुछ कहे ही अराध्या ने अपने पिता के कहने पर किसी और से शादी कर ली, मुझसे एक बार पूछा भी नहीं, कुछ भी नहीं कहा और यूँ ही रिश्ता तोड़कर चली गई, सौरभ बोला।

    फिर आपने वजह जानने की कोशिश नहीं की, संस्कृति ने पूछा।

नहीं फिर मैंने उसकी जिन्दगी में दखल नहीं दिया और मैंने भी तुम्हारी माँ से शादी कर ली, सौरभ बोला।

   मतलब बात अधूरी रह गई, संस्कृति बोली।

 उधर नैनसी को अराध्या ने बहुत डाँटा___

  मैं जानती हूँ, तूने ही शुरूआत की होगी, सौरभ बहुत अच्छा इंसान है वो अपनी बेटी को ऐसे संस्कार नहीं सिखा सकता, बेचारी की मां भी उसे बचपन में छोड़कर जा चुकी हैं, बिन माँ की बच्ची को तूने कितना परेशान किया, पता है वो परांठे जो तूने गिराए थे, वो उसने खुद बनाएं थे।

   तो क्या आप संस्कृति के पापा को पहले से जानती है, नैनसी ने पूछा।

तब मजबूरी में अराध्या को अपनी सारी बातें बतानी पड़ी,

   तो क्या मजबूरी थी मम्मा! जो आमलोगों को अलग होना पड़ा, नैनसी ने अराध्या से पूछा।

 बस, बेटा! कुछ सामाजिक चीजें होतीं हैं, जिनके आगे ना चाहते हुए भी इंसान को झुकना पड़ता है, ऐसा ही मेरे साथ हुआ, मुझे सौरभ को भुलाकर तुम्हारे पापा से शादी करनी पड़ी, अराध्या बोली।

  तो क्या नाना नहीं चाहते थे कि आप सौरभ अंकल से शादी करें, नैनसी ने अराध्या से पूछा।

उन्हें तो पता ही नहीं थी ये बात, जब उन्हें ये बताने की बारी आई तो तब तक बाबूजी मेरी शादी तुम्हारे पापा से कराने का फैसला ले चुके थे, अराध्या बोली।

    ऐसा क्या हुआ था, मम्मा! पूरी बात बताओ ना, नैनसी बोली।

 ठीक है तो सुन और इतना कहकर अराध्या ने बोलना शुरू किया___

  हमारे काँलेज खत्म होने वाले थे, तब मैंने और सौरभ ने सोचा कि अब घरवालों को ये बात बता देनी चाहिए, वो हमारी सगाई कर देंगे और जैसे ही हम दोनों को नौकरी मिलती हैं, हम शादी कर लेंगे और उस दिन मैं बाबूजी को सब बताने ही वाली थीं कि उन्होंने मेरे बोलने से पहले कह दिया कि खुशखबरी हैं। मैंने पूछा कि क्या खुशखबरी है? तो वो बोले कि मैंने तेरी शादी नीरज के साथ पक्की कर दी हैं, कितना अच्छा लड़का है फिर मैं कुछ ना बोल सकी और चुपचाप उनकी मर्जी को स्वीकार कर लिया।

      नीरज बहुत ही अच्छा और सीधा सादा लड़का था, अनाथ था बेचारा, बाबूजी ने ही उसकी पढ़ाई का पूरा खर्च उठाया था, अपनी मेहनत से इंजीनियर भी बन गया और बाद में उसने पिताजी की हर संभव मदद की, यहाँ तक कि मेरे भाई की पढ़ाई का सारा खर्च उसने ही उठाया, इसलिए मेरा भाई डाँक्टर बन सका और बाबू जी इस कर्ज को नीरज से मेरी शादी कराकर उतारना चाहते थे और नीरज था भी स्वभाव का बहुत अच्छा और मुझे बहुत पहले से पसंद भी करता था इसलिए मैं बाबूजी को मना नहीं कर पाई और नीरज से शादी के लिए हाँ कर दी और फिर कभी सौरभ से मिलने नहीं गई।

      अच्छा तो ये बात हैं, नैनसी बोली।

हाँ, यही बात है, अब सो जा ,बहुत रात हो गई हैं, अराध्या नैनसी से बोली।

   और नैनसी करवट लेकर लेट गई और कुछ सोचने लगी, उसने मन में सोचा कि अगर मम्मा और सौरभ अंकल फिर से एक हो जाए तो कितना अच्छा हो, हमारा परिवार फिर से पूरा हो जाएगा और संस्कृति इतनी भी बुरी नहीं है, कल ही मैं उससें साँरी बोलकर दोस्ती कर लेती हूँ और उसे सारी बात बताऊँगी कि हमारे पैरेंट्स पहले से ही एक दूसरे को जानते हैं।

      सुबह हुई, दोनों बच्चे स्कूल पहुँचे, सोच तो दोनों ही रहीं थी कि शुरुआत करें दोस्ती की लेकिन दोनों की ही हिम्मत नहीं हुई, लंच ब्रेक में नैनसी अपना लंचबॉक्स लेकर संस्कृति के पास पहुँचकर बोली___

    आओ! साथ में लंच करते हैं।

 संस्कृति भी दोस्ती करने के लिए तैयार ही बैठी थी और उसने तुरंत हाँ में सिर हिला दिया, इस तरह से हफ्ते भर में दोस्ती बहुत गहरी होती चली गई और जो बात दोनों के मन में थी वो भी सामने आ गई।

      अब धीरे धीरे दोनों ने एक दूसरे के घर जाना भी शुरू कर दिया इस तरह से दोनों पैरेंट्स भी कभी कभार मिल ही जाते।

    दोनों बच्चे जानते थे कि दोनों अब भी एक दूसरे को पसंद करते हैं लेकिन दिल की बात जुबान नहीं लाएंगे क्योंकि दोनों के ही बच्चे थे और समाज का भी डर था दोनों को।

     इसलिए दोनों बच्चों ने प्लानिंग की__

कुछ दिनों बाद संस्कृति का बर्थडे आने वाला था, संस्कृति ने नैनसी, उसकी छोटी बहन और अराध्या को बुलाया, केक काटा गया, अराध्या ने संस्कृति को बहुत खूबसूरत सी वाच गिफ्ट की और सौरभ ने सुन्दर सी ड्रेस संस्कृति को दी।

    तब संस्कृति बोली___

 आंटी ! आपसे कुछ और माँगू तो मिलेगा।

  अराध्या बोली__

हाँ, बेटा माँगो।

  संस्कृति बोली__

क्या आप मेरी माँ बनेंगी?

  अराध्या बोली, अब मैं क्या बोलूँ।

 सौरभ बोला__

 रहने दे संस्कृति, शायद तेरी आंटी को मैं पसंद नहीं हूँ।

  ऐसी बात नहीं हैं, अराध्या बोली।

तब तक नैनसी बोल पड़ी तो मम्मा की हाँ हैं, सालों पहले वो जो अधूरी सी बात बाकी़ थी वो अब पूरी होगी।

 और उस रात सबने एक परिवार होकर संस्कृति का बर्थडे मनाया।



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