Leena pendharkar

Inspirational

3.1  

Leena pendharkar

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वो अजनबी

वो अजनबी

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जिंदगी में कब ,कौन ?आपका साथ निभा जाए कह नहीं सकते। जिससे कोई जान -पहचान नहीं होती ,जिसे हमने कभी देखा भी नहीं होता पर अचानक ही वो हमारे जीवन में प्रवेश कर जाता है ।जिस तेजी से उसका प्रवेश होता है, उसी तेजी से उसका निर्गम भी हो जाता है। हम उसे समझते हैं तब तक वह कहीं का कहीं जा चुका होता है। बाद में रह जाती है, तो वह याद जिसे हम दोहरा कर उस अजनबी को धन्यवाद करते रह जाते हैं ।

बात उस समय की थी, जब रीना बी.एड कॉलेज में पढ़ रही थी। उसका कॉलेज घर से लगभग 30किलोमीटर दूर था ।यह दूरी वह दो बसों द्वारा तय करती थी। ऐसे ही एक दिन सुबह वह और उसकी सहेली वाजिदा दोनों घर से निकली। बस स्टॉप पहुंचते-पहुंचते सामने ही उनकी बस खड़ी थी। जल्दी-जल्दी दोनों ने बस पकड़ी और अपने गंतव्य की ओर रवाना हुई। जाते समय सब सामान्य- सा था ।कहीं ऐसा कोई लक्षण नहीं था कि तूफान आने वाला है। कॉलेज पहुंचते-पहुंचते उन्हें इस बात का आभास तक नहीं था ,कि आने वाले समय ने उनके लिए क्या -क्या परोस कर रखा है? रोज की तरह कक्षा शुरू होने में थोड़ी देर थी। आज भी दोनों जल्दी पहुंच गई थी, इसलिए वहीं बैठ कर इंतजार करने लगी। पर देखते ही देखते सारे कर्मचारी कॉलेज बंद करके वापस जाने लगे उन्हें समझ नहीं आया कि यह क्या हो रहा है? 

 उन्होंने जाते हुए कर्मचारी से पूछा- "आप सब कहां जा रहे हैं? "

तो उसने बताया अभी-अभी शहर को बंद करने की घोषणा की गई है शहर में कुछ उपद्रवियों ने आगजनी और उपद्रव मचा रखा है, जिसकी वजह से पुलिस ने शहर को बंद करने की घोषणा की है ।अब इन दोनों को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें? दोनों वैसे ही निकली चलते -चलते काफी दूर निकल आई पर उन्हें कोई वाहन नहीं मिला ।बसों को तो पहले ही बंद कर दिया गया था ।कोई सवारी भी आसपास नजर नहीं आ रही थी पर उनका ध्येय तो यही था कि किसी भी तरह घर पहुंचा जाए ।उस दिन दोनों ने ठान रखा था कि कुछ भी हो जाए चलते -चलते ही सही पर वह घर जरूर पहुंचेंगे। तभी अचानक उन्हें एक सवारी नजर आई जिसमें काफी लोग लदे हुए थे । उस टेंपो वाले ने किसी तरह इन दोनों को भी बिठाया और इस तरह वे दो चार किलोमीटर उस सवारी के द्वारा आगे पहुंची । उसे शुक्रिया अदा कर फिर से चलने लगी |किसी तरह गिरती- पड़ती हम दोनों शहर के निकट पहुँची । इन दोनों ने उस दिन वास्तव में उपद्रव क्या होता है ?आगजनी क्या होती है? इसकी साक्षी बनी। 

थोड़ी दूर चलने पर उन्हें पैंतालीस- पचास के आसपास एक अधेड़ उनके पास आया ।उसने इन दोनों को डरते- सहमते देखा था ,इसलिए उसने पूछा- "तुम दोनों को कहाँ जाना है? "

रीना ने कहा ,"हमें प्रताप नगर जाना है।"

 तो उस अजनबी का चेहरा एकदम से खिल गया। उसने खुश होकर कहा, कि चलो मैं भी वहीं जा रहा हूं ।मैं तुम लोगों को तुम्हारे घर तक छोड़ दूंगा। बिलकुल डरने की जरूरत नहीं है। परंतु दोनों पहले ही डरी हुई थी और इस तरह किसी और व्यक्ति पर भरोसा करना उन्हें पसंद नहीं आ रहा था। परंतु कहते है न" मरता क्या न करता" उनके इस विकट काल में एक यही उम्मीद की लौ थी इसके भरोसे वे अपने घर तक पहुंचने में कामयाब हो सकती थी ।इसलिए दोनों उसके पीछे- पीछे चलने लगी। उसके हाथ में साइकिल थी परंतु वह हमारे साथ साइकिल हाथ में लिए पैदल ही चल रहा था ।धीरे -धीरे उसने बातें करना शुरू किया और हम चाह कर भी उसके पूछे गए सवालों का गलत उत्तर नहीं दे पाई। उस समय ध्यान नहीं आया कि इस जानकारी का कहीं वह गलत उपयोग तो नहीं करेगा ?उस समय ध्येय एक ही था कि किसी भी तरह घर पहुंचा जाए। पता नही यह सब भगवान की कृपा ही थी या फिर वे खुद अजनबी के रूप में हमारी रक्षा के लिए आ खड़े हुए थे ।क्योंकि उसने हमारे बारे में इतनी जानकारी एकत्रित की परंतु हमने उनका नाम तक नहीं पूछा ।आखिर गिरते पड़ते किसी तरह हम रात को 9:00 बजे अपने घर पहुंचे। तब कहीं जाकर हमारी जान में जान आई। उस व्यक्ति ने हम दोनों को सही सलामत अपने घर पहुंचाया और फिर वहां से अपने घर के लिए रवाना हुआ ।आज यह प्रसंग याद करते हुए उस अजनबी के प्रति श्रद्धा से सिर झुक जाता है।और आंखें नम हो जाती हैं।


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