Sriram Mishra

Tragedy Inspirational Others

4.0  

Sriram Mishra

Tragedy Inspirational Others

वक्त

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इस कहानी का सफर 1950 से शुरू होता है 2010 में खत्म होता है। एक गाँव देवनगर जमींदारो का गाँव था उस गाँव में एक परिवार ऐसा था जिनके पास खेत तो लगभग 15 एकड थी पर पैसे का आभाव था। उस परिवार के मुखिया देवी प्रसाद थे। उनके चार पुत्र और एक पुत्री थी।  

जिनका नाम क्रमशः शरद, जयराज, मधुर, हेमराज उनकी पुत्री का नाम माया जो बच्चों में तीसरे स्थान पर थी। देवी प्रसाद के बड़े बेटे शरद बगल के गाँव के सरकारी स्कूल में पढ़ते थे। देवी प्रसाद के परिवार में एक समय ऐसा आया। जब देवी प्रसाद का आंगन सहीत पाँच कमरों का खपरैल का मकान जमीदोज हो गया। अब देवी प्रसाद जी की हिम्मत टूटने लगी और वो बीमार रहने लगे उनके दो पुत्र शरद और जयराज अपने पिता की सेहत खराब होने के बाद घर के काम में हाथ बंटाने लगे।

जयराज का मन पढ़ाई में नहीं लगता था इसलिए वो पढ़ाई छोड़ अपने पिता जी की सेवा में लग गये। देवी प्रसाद का सेहत दिन प्रतिदिन बिगडता जा रहा था उनकी धर्मपत्नी भानुमति का स्वास्थ्य भी कुछ खराब था उनको दमा की बीमारी थी। उनके बड़े पुत्र शरद के उपर पूरे घर की जिम्मेदारी आ गयी अब शरद ने फैसला किया कि अब वो पढ़ाई छोड़ कर बाहर नौकरी करने जायेंगे और अपने छोटे भाई बहन को पढ़ायेगा और माता पिता का इलाज कराएगा।

एक दिन शरद सुबह चार बजे बिना बताये घर से निकल गये उस समय कोई साधन नहीं चलता था वो पैदल ही पांच घन्टे का सफर पूरा कर वशिष्ठ नगर रेलवे स्टेशन पहुँचे। अब खाना खाने का टाइम हो गया था। शरद के जेब में एक रूपये नही थे और बहुत जोर की भूख लगी थी अब उन्हें अपने माता पिता और भाई बहन की याद आने लगी। उनका मन बदलने लगा वो फिर घर वापस जाने के लिए सोचने लगे लेकिन उससे पहले उन्हें अपना भूख मिटाना था।

तभी शरद को सामने एक होटल दिखाई देता है। शरद होटल के मालिक के पास पहुंचे और बोले मुझे काम चाहिए। होटल के मालिक को भी काम करने वालों की जरूरत थी।

होटल के मालिक ने पूछा- क्या तुम बर्तन साफ कर सकते हो ?

शरद ने कहा -हाँ मैं बर्तन साफ कर सकता हूँ लेकिन इस समय मुझे बहुत भूख लगी है। क्या आप मुझे खाना खिला सकते हैं ?

होटल के मालिक ने शरद को खाना खिलाया और शरद को उनके काम पर लगा दिया।

शरद जैसे तैसे दो चार बर्तन साफ करते हैं क्योंकि झूठे बर्तन का खेप भी बहुत ज्यादा था। शरद को दूसरों के झूठे बर्तन धुलने का काम भी कुछ अटपटा लग रहा था क्योंकि जमींदार परिवार से थे और शरद का पेट भी भर गया था। अब शरद को वहां से निकलने का बहाना चाहिए था।

शरद होटल मालिक के पास पहुंचे और बोले मुझे शौचालय जाना है।

होटल मालिक ने कहा-बेटा शौचालय तो दूर है आप रेलवे लाइन के किनारे खाली जगह है वहां चले जाओ।

 शरद -पानी का डब्बा भर कर रेल लाइन की तरफ जाते है  

 अब शरद को शौचालय कहाँ जाना था उन्हें तो केवल भागने का बहाना चाहिए था।

 शरद -पानी का डब्बा सड़क के किनारे फेंक कर अपने घर वापस निकल लेते हैं।

इधर शरद के घर वालों का रो रो कर बुरा हाल हो गया था। पूरे गाँव के लोग तालाब, नदी हर जगह ढूंढ कर थक चुके थे। गाँव के कुछ लोग तो ये बोलते हैं कि कहीं नदी में उस बच्चे की लाश बह कर कहीं दूर निकल गया होगा।

उनके माता पिता आस छोड़ चुके थे की उनका बेटा वापस आयेगा।

शरद फिर पाँच घंटे की पैदल यात्रा कर रात 9 बजे अपने घर पहुंचते हैं। घर के लोग उन्हें देखकर खुश हो जाते हैं उनकी माता जी उनको गले से लगा कर खूब रोती है और ममता भरे शब्दों में कहती हैं तू कहाँ चला गया था मेरे लाल तुझे पता है हम लोग कितना घबरा गये थे। अब वादा करो बिना बताये कभी नहीं जाओगे। शरद भी अपनी माँ से वादा करते हैं 

अगले दिन से घर में फिर हँसी खुशी का माहौल हो गया लेकिन कुछ दिनों बाद देवी प्रसाद का स्वास्थ्य बिगड़ गया। घर में इलाज के लिए पैसों का आभाव था ज्यादा कर्ज होने की वजह से उन्हें कोई पैसा भी नहीं दे रहा था। देवी प्रसाद की धर्मपत्नी भानुमति अपने कुछ गहने बेच कर देवी प्रसाद का इलाज कराती हैं और कर्जदारों का कर्ज लौटाती हैं।

 शरद जी के मन में फिर चिन्ता बढ़ने लगी की यदि मेरे पिता जी की तबियत फिर खराब हो जाए तो अब मेरे माँ के पास तो गहने भी नही हैं।  फिर से शरद शहर जाकर नौकरी करने का फैसला करते हैं। मगर इस बार बिना माता पिता के अनुमति के नहीं जाउँगा शरद ने सोचा और शाम को सोने से पहले शरद अपने पिता के पास पहुंचे और बोले पिता जी मैं शहर जाकर नौकरी करना चाहता हूँ। देवी प्रसाद की आंखों में आँसू आ गए। देवी प्रसाद बोले बेटा अभी तुम्हारी उम्र महज 14 साल है। मैं अभी तुम को शहर जाकर काम करने की इजाज़त नहीं दे सकता। उसके बाद शरद अपने पिता से कुछ नहीं बोलते हैं क्योंकि शरद की आंखों में आँसू आ गए और गला भर गया था। वे अपने आंसूओं को छिपाकर अपने बिस्तर पर जाकर चादर ओढ़ कर अपने आवाज़ को दबा कर खूब रोते हैं। सुबह उठकर वे मवेशियों के लिए घास काटने के लिए बगल के गाँव के शिवान में पहुँचते जाते है। तभी वहां एक व्यक्ति और घास काट रहा था। उस व्यक्ति को शरद पहचानते थे और काफी समय बाद मिलें थे। शरद जी ने हाल चाल लिया और पूछा शिव भजन बाबू आप बहुत दिन के बाद दिखाई दे रहें हैं।

शिव भजन बोले- हां बाबू मैं गोहाटी शहर में फल व सब्जी बाजार में काम करता हूँ।

शरद इतना सुनते खुश हो गये और बोले-शिव भजन बाबू मुझे भी अपने साथ ले चलो मुझे भी काम करना है।

शिव भजन ने कहाँ- अरे नहीं बाबू आप जमींदार है आप ज्यादा मेहनत का काम नहीं कर पायेंगे। लेकिन शरद के ज़िद करने पर शिव भजन मान जाते हैं और दो दिन बाद चलने का वादा करते हैं।

           

शरद घर पहुंचते हैं और शहर जाने की तैयारी करने लगते हैं। इस बार शरद सोच लिए थे की घर से निकलने के बाद ही पिता जी को सूचना दूँगा नहीं तो पिता जी मुझे फिर नहीं जाने देंगे। दो दिन बाद शरद ने वैसे ही किया जैसा उन्होंने सोचा था। घर से निकलने के बाद गाँव के एक व्यक्ति के माध्यम से अपने घर पर सूचना भेज देते हैं की मैं बगल गाँव के मंगल के पुत्र शिव भजन के साथ शहर जा रहा हूँ मैं पैसा भेजता रहूँगा आप लोग अपना ख्याल रखना। देवी प्रसाद भी अपने पुत्र के ज़िद पर मजबूर हो गये।

इधर शरद, शिव भजन के साथ रेलगाड़ी से लम्बी यात्रा करने के बाद गोहाटी शहर पहुचते हैं। एक दिन आराम करने के बाद दूसरे दिन बाजार में पहुँचते है। सब्जी को मालवाहन पर लादने का काम मिल जाता है। शिवभजन जी अपने सिर पर सब्जियों का गट्ठर लाद कर आगे बढ़ते हैं अब बारी शरद की आती है शरद के सिर पर भी सब्जियों का गट्ठर लाद दिया जाता है। शरद सब्जियों के गट्ठर को कुछ दूर तक ले जाते हैं गट्ठर का भार ज्यादा होने के कारण वो गट्ठर को बीच रास्ते में ही जमीन पर पटक देते हैं।  

शरद बाबू का ये हाल देखकर शिव भजन ने कहा-आप ये काम नहीं कर पायेंगे मालिक बाबू (शरद जी को)

शरद मायूस हो जाते हैं और कमरे पर आ जाते हैं। शिव भजन भी काम खत्म कर अपने कमरे पर पहुंचते हैं।

शरद से शिव भजन हिम्मत करके बोलते हैं मालिक बाबू मैंने आप से कहा था आप ज्यादा मेहनत का काम नही कर पायेंगे।   

शरद अपनी गलती महसूस करते हैं लेकिन करें भी तो क्या। पैसा कमाना शरद के लिए बहुत जरूरी हो गया था। शरद को समझ में नहीं आ रहा था।

शिव भजन ने कहा-मालिक बाबू आप ये ढाई रूपया लीजिए और आप घर चले जाइए। (आज से 50 साल पहले 2.50 रूपये की कीमत बहुत ज्यादा हुआ करती थी)

शरद ढाई रूपये लेकर रेलवे स्टेशन पहुंचते हैं फिर उनका मन बदल जाता है। वे मन में सोचते हैं की आया हूँ तो पैसा कमाकर ही घर जाऊँगा।  

शरद स्टेशन से बाहर आते हैं और काम की तलाश करते हुए एक लोहे के गोदाम पर पहुंचते हैं जहाँ उनके बुआ जी के लड़के तपन से मुलाकात होती है। तपन उनका काम उसी लोहे के गोदाम में लगवा देते हैं। अब शरद लोहे के गोदाम में काम करने लगे और खाली समय में आइसक्रीम बेच लिया करते थे।

एक दिन शरद के बुआ के लड़के तपन और कुछ मज़दूर गाँव चले गये। गोदाम में काम बढ़ गया। शरद अपना काम कर रहे थे तभी लोहे का लम्बा पाइप उतारते समय लोहे का पाइप बिजली के तार से चिपक गया जिससे लोहे के पाइप में करेंट दौड़ गया और शरद जी की सांस रूक गयी। गोदाम के मालिक ने सोचा की शरद मर गये। ये सोचकर गोदाम के मालिक ने कहा इसे ब्रह्मपुत्र नदी में ले जा कर फेंक दो।

 

इधर शरद का मृत शरीर एक स्वप्न देख रहा था। कि कुछ लोग सफेद वस्त्र में आते हैं और एक अजीब से दिखने वाले वायुयान में बैठाकर एक सोने जैसे महल में ले जाते हैं जो हवा में रूका हुआ था और सामने एक दिव्य रूप में राजा बैठे हुए थे। जो लोग शरद को ले गये थे। उन लोगों से महल के स्वामी ने कड़क आवाज़ में कहा -ये तो अभी कम उम्र का युवा है। लगता है तुम लोग किसी दूसरे व्यक्ति को ले आये हो इसे जल्द से जल्द वापस पृथ्वी पर भेज दो। यमदूत वायुयान से तेज गति में पृथ्वी की ओर वापस आते हैं और शरद के आत्मा को मृत शरीर के पास छोड़कर चले जाते हैं।

इधर कुछ लोग शरद को नदी में फेंकने वाले थे तभी अचानक शरद को होश आ गया। जो लोग उन्हें नदी में फेंकने जा रहे थे वही लोग उन्हें हाॅस्पीटल ले गये। इस तरह से शरद की जान बच गयी। अब शरद जी केवल आइसक्रीम बेचते और नया काम ढूंढते। एक दिन उनकी मेहनत रंग लायी उन्हें सरसों तेल के उत्पादन कम्पनी में मशीन चलाने का काम मिला।

शरद इस कम्पनी में काम करने लगे। और शरद के घर की आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगा। शरद का भाग्य रेखा बदलने लगा। एक दिन शरद अपने ड्यूटी के लिए निकले थे की कुछ दूरी पर रास्ते में भीड़ लगी हुई थी। रास्ते में भीड़ देख कर एक व्यक्ति से शरद ने पूछा भाई यहां इतनी भीड़ क्यों है। व्यक्ति ने जवाब दिया - थलसेना की खुली भर्ती चल रही है । शरद भी कम्पनी न जाकर कम्पनी से छुट्टी मारकर लाइन में लग गये। इनका नम्बर आया शारीरिक दक्षता की प्रथम श्रेणी पार कर द्वितीय श्रेणी में इनके हाथ में कटे का निशान होने के कारण सेना भर्ती में शरद को अनफिट कर दिया गया।

कुछ महीनों बाद फिर सेना की खुली भर्ती चल रही थी। शरद जी फिर भाग्य आजमाने के लिए लाइन में खड़े हो गये। उनका नम्बर आया इस बार सेना के अधिकारी ने बन्दूक की ट्रिगर दबाने वाले अन्दाज़ में तर्जनी अंगुली को मोड़ने के लिए बोला यही प्रक्रिया 50 बार लगातार करने के लिए आदेश दिया। जिनमें सबका स्वास्थ्य परीक्षण कर स्वस्थ व्यक्तियों को आर्मी ट्रेनिंग के लिए भेज दिया गया। शरद भी इस ट्रेनिंग का हिस्सा बने। अब सत्यापन के लिए सभी सैनिकों के गाँव में कागज भेज दिया गया।

शरद के गाँव में भी पुलिस आरक्षी और दारोगा सत्यापन के लिए सरपंच के घर पहुंचते हैं। सरपंच से पूछते हैं आप के गाँव में कोई शरद पुत्र देवी प्रसाद है। सरपंच जी शरद नाम के किसी व्यक्ति को नहीं जानते थे क्योंकि शरद का घर का शोभन था और पिता का नाम सरपंच जी ने ध्यान नही दिया। पुलिस विभाग के दोनो सिपाही वापस जा रहे थे तभी गाँव के बाहर एक व्यक्ति को देख कर दोनों सिपाही रूक गये। वो व्यक्ति गाँव के पुलिस मित्र थे (पहले गाँव में एक पुलिस मित्र नियुक्त किया जाता था )। पुलिस मित्र महोदय सिपाहीयों से पूरी जानकारी प्राप्त करने के बाद बोले "की शरद नाम के व्यक्ति को तो नहीं जानता मगर देवी प्रसाद नाम के एक व्यक्ति हमारे गाँव में रहते हैं उनके बड़े पुत्र शोभन भी काफी समय से नही आयें हैं हो सकता है उन्ही का नाम शरद हो। इधर शरद के घर पर एक दिन पहले ही तार (पत्र)आ चुका था। घर में सबको जानकारी हो गयी थी।      


पुलिस के लोग पुलिस मित्र महोदय के साथ देवी प्रसाद जी के घर पहुंचते हैं और सत्यापन करते हैं। देवी प्रसाद ने आगन्तुकों को जलपान करा कर विदा कर दिये। कुछ महीनों बाद शरद की ट्रेनिंग खत्म होती है और उन्हें घर आने का मौका मिलता है। घर के लोग भी वर्षो से शरद का इन्तजार कर रहे थे।

शरद को 45 दिन की छुट्टी मिली थी इसी बीच वे अपने बहन की शादी कर देते हैं पर लड़की विदाई अगले साल होना था इसलिए शरद के उपर ज्यादा भार नही था। अभी उनको घर आये एक महीने हुये थे। अचानक उनके आर्मी हेडक्वाटर से तार(पत्र) आता है। पत्र के माध्यम से उनको इमरजेन्सी में बुलाया जाता है क्योंकि 1971 के युद्ध का आगाज हो चुका था। शरद जल्दी जल्दी अपना सामान रख कर अपने आंखों के आंसूओं को छिपाकर अपने माता- पिता का आशीर्वाद लेते हैं और निकल पड़ते हैं देश के लिए अपने वतन के लिए। उनके माता-पिता भाई बहन गाँव के सरहद तक शरद को विदा करने आते हैं।

अब शरद रेजीमेंट में पहुँचते हैं जहाँ से उन्हें सेना के खाने पीने का सामान ट्रक में रख कर उस ट्रक के साथ शरद को युद्ध स्थल के लिए रवाना कर दिया जाता है।

शरद शाम को युद्ध स्थल पर पहुंचते ही अपनी पोजीशन सम्भाल लेते हैं। रात भर गोलियां चलती है  जिसमें शरद जी के दोस्त सुखविंदर और थापर (काल्पनिक नाम) शहीद हो जाते हैं। फिर भी शरद का हिम्मत और हौसला टूटता नही है। भारतीय सेना के जवान दुश्मन को काटते पीटते और अपने झन्डे को लहराते हुए पाकिस्तान की सीमा में बहुत अन्दर प्रवेश कर जाते हैं जहाँ से लाहौर केवल पाँच किलो मीटर रह जाता है। सुबह कम्पनी कमान्डर के पास वायरलेस से सूचना मिलती है की पाकिस्तान की फौज हमारे सामने हथियार डालने को तैयार है पूरे रेजिमेंट में जीत की खुशी थी।

अब युद्ध विराम के बाद शरद अपने दोस्तों के पार्थिव शरीर को लाशों के ढेर में ढूढते हुए उनके पास पहुँचते हैं और अपने दोस्तों के मृत शरीर को अपने सीने से लगाकर कर खूब रोते हैं। शरद जी के वो साथी जिनके साथ वे अपने बातों के शेयर करते थे हंसी मजाक करते थे वे अब शरद का साथ छोड़ कर हमेशा के लिए जा चुके थे। रह गयी थी केवल उनकी यादें।

इधर गाँव में काफी समय से शरद का कोई तार(पत्र)नही आया था। इसी बीच शरद जी के बहन की विदाई और पिता का देहान्त हो गया था। शरद जी को चिट्ठी के माध्यम से सूचना पहुँचा दिया गया था। उनके माता जी का भी स्वास्थ्य खराब चल रहा था।

शरद के अनुपस्थिति में शरद से चार साल छोटे भाई जयराज के उपर जिम्मेदारी का बोझ आ गया था। इधर गाँव के लोग उनके भाई जयराज को बोलते थे। शरद अपने पिता की मौत की खबर सुनकर भी नही आये और न ही कोई चिट्ठी पत्र आया लगता है शरद बाबू भी शहीद हो गये। इन बातों को जयराज सुनकर घबरा जाते और घर आ कर अपनी माँ से और अपने भाइयों से लिपट कर खूब रोते। क्योंकि जयराज ,शरद को बहुत ज्यादा प्यार करते थे। इसलिए वे फिर से एक चिट्ठी भेजते हैं।

इधर पाकिस्तान से समझौता करने के बाद बटालियन को वापस अपने रेजीमेंट में भेज दिया जाता है। रेजीमेंट में पहुँचते ही शरद को हेड क्वाटर बुलाया जाता है। शरद हेडक्वाटर पहुँचते हैं मेजर साहब को सूचना दी जाती है। मेजर साहब सूचना पाकर खुद शरद के पास पहुंचते हैं।

मेजर साहब ने कहा- शरद आपको मैं तीन महीने की छुट्टी पर घर भेज रहा हूँ। क्योंकि तुम्हारे घर से युद्ध के दौरान एक चिट्ठी आयी थी जिसे मैं ध्यान नही दे पाया था फिर कुछ दिन पहले एक चिट्ठी और आयी थी। फिर हमने ये दोनों चिट्ठी पढ़ लिया है इसलिए मैंने फैसला किया है। आपको तीन महीने की छुट्टी दी जाये।

ये कहते हुए मेजर साहब शरद को छुट्टी के कागजात और दोनों चिट्ठी सौंप कर चले जाते हैं। मेजर साहब के जाने के बाद शरद पहले भेजी गयी चिट्ठी को पढ़ते हैं जिसमें पिता के देहान्त की खबर पा कर बहुत रोते हैं और दूसरे चिट्ठी को भी रोते हुए ही पढ़ते हैं। उसके बाद अपने कमरे पर पहुंचते हैं अपने समान व कपड़ों को व्यवस्थित करके तैयार होकर घर के लिए निकल पड़ते हैं और अगली सुबह वो वशिष्ठ नगर रेलवे स्टेशन पर पहुंचते हैं।

उधर गाँव में शरद के आंटे का पुतला बना कर दाह संस्कार करने की तैयारी चल रही थी। इधर शरद को साधन मिलने के कारण वे जल्द ही गाँव पहुँच जाते हैं। जैसे ही गाँव में प्रवेश करते हैं उधर लोग उनकी कल्पित अर्थी को अपने कन्धे पर उठा कर कुछ दूर चलते हैं।

तभी सामने शरद कन्धे पर किटबैग और हाथ में बैग लिए घर की तरफ बढ़ रहे होते हैं। उन्हे देखते ही जयराज जनाजे को छोड़ शरद के तरफ दौड़ पड़ते हैं। और दोनों भाई एक दूसरे के गले लगकर खूब रोते हैं। अभी इनके घर पे भीड़ थी। लेकिन शरद की आँखें किसी को ढूंढ रही थी और जयराज के आँखों से आंसूओ की धारा बह रही थी उनका गला इतना भरा हुआ था की उनके मुख से एक शब्द नही निकल पा रहे थे।

धीरे-धीरे भीड़ खत्म होती है पर शरद की निगाह जिन्हें ढूंढ रही थी वो दिखायी नही दे रहीं थी। अब शरद का सब्र टूटता है और अपने छोटे भाई जयराज से पूछते -भाई माँ कहाँ है इतना सुनते ही जयराज के आँखों से आंसूओं की धारा तेज हो जाती है और उनका गला भर जाने के कारण वे अब भी बोल नही पा रहे थे।  


तभी शरद के भाई मधुर रोते हुए बोलते हैं भईया आपको माँ ने दोबारा चिट्ठी भेजा था उसके कुछ दिन के बाद से माँ की तबियत कुछ ज्यादा खराब रहने लगी थी आज से एक दिन पहले माँ का भी देहान्त हो गया। इतना सुनते ही जैसे शरद के पैरों तले जमीन खिसक गयी हो। उस दिन शरद जी इतना रोते हैं जैसे आसमान से बारिश की बूँदें लगातार गिर रही हो। शरद के रोने की आवाज के आगे पूरा सन्नाटा पसरा हुआ था जैसे धरती वीरान हो गयी हो।  

फिर भी शरद हिम्मत करके अपने भाइयों को सम्भालते हैं और अपने माँ का क्रियाक्रम करते हैं। कुछ दिनों बाद शरद घर का निर्माण शुरू कर देते हैं। शरद जी के घर की उन्नति देखकर शादी के कई रिश्ते आने लगते है। शरद जी के माँ के देहान्त के बाद खाना बनाने वाला कोई नही था। जयराज अपने भाईयों का खाना बनाते और छोटे भाईयों को तैयार कर स्कूल भेजते थे। जिसके कारण जयराज का हाथ कई बार जल चुका था इसलिए शरद जी ने सोचा शादी कर लेते हैं ताकि हमारे भाईयों की देखभाल हो सके। शरद शादी की तारिख अगले साल जून में तय करके वापस अपने मातृभूमि की रक्षा के लिए निकल पड़ते हैं।

 अपनी बटालियन में पहुँचते ही शरद जी को उनके पदोन्नत की खबर मिलती है। शरद सामान्य पद से नायक पद की उपाधि के साथ सैन्य सेवा मेडल प्राप्त करते हैं और अब उन्हें आर्मी मेडिकल कोर (AMC)लखनऊ के लिए भेज दिया जाता है। समय चक्र चलता रहा जून का महीना नज़दीक आ गया। अब शरद जी 15 दिन की छुट्टी के लिए आवेदन करते हैं और छुट्टी मिल जाती है। शरद पूरी तैयारी कर घर के लिए निकल पडते हैं। घर पहुंच कर शादी की तैयारी शुरू हो जाती है।

अब शरद जी की शादी हो जाती है कुछ दिन बाद शरद जी की छुट्टी खत्म होने वाली होती है देखते देखते एक फौजी को अपने ड्यूटी पर जाने का समय आ जाता है। वे अपने भाई जयराज को बाहर की जिम्मेदारी और अपनी धर्मपत्नी अमरावती को अपने घर व छोटे भाईयों की जिम्मेदारी देकर लखनऊ के लिए निकल पड़ते हैं।  

अब शरद जी के जीवन में सब अच्छा हो रहा था। समय चक्र अपनी गति से आगे बढ़ रहा था। अब शरद जी के मन में विचार आ रहा था की इस बार मैं छुट्टी लेकर जाउंगा तो अपने भाई जयराज की शादी बड़े धूमधाम से करूंगा। और इधर जयराज की तबियत खराब रहने लगी। शरद जी के भाई मधुर भी अब समझदार हो गये थे और स्नातक प्रथम वर्ष के छात्र थे। मधुर जी अपने बड़े भाई शरद जी को पत्र के माध्यम से जयराज के खराब स्वास्थ्य के बारे में बताते हैं। दो दिन बाद शरद जी को पत्र मिलता है पत्र पढ़कर शरद तुरन्त छुट्टी के लिए आवेदन करते हैं छुट्टी मंज़ूर हो जाती है। शरद गाँव पहुँचते हैं और जयराज को फौरन लखनऊ लेकर आते हैं फिर उन्हें शहर के बड़े हॉस्पिटल में दिखाते हैं। जहाँ जयराज जी के पूरे शरीर की जाँच होती है अगले दिन शरद और जयराज सारे रिपोर्ट लेकर डाक्टर के पास पहुंचते हैं। डाक्टर सभी रिपोर्टों का गहन अध्ययन कर शरद को अकेले मिलने के लिए बोलते हैं और जयराज जी को बाहर बैठने के लिए बोलते हैं। जयराज बाहर जाकर बैठते हैं। इधर शरद को पहले से आभास हो गया था की कुछ बुरी खबर मिलने वाली है। अब डाक्टर और शरद ही उस कमरे में होते हैं।

 डाक्टर साहब ने शरद से कहा -देखिए मैंने आपके भाई की पूरी रिपोर्ट जाँच कर ली है आपके भाई जयराज के दिल में सुराख़ है जिसको केवल दवा से ठीक नही किया जा सकता है इसके लिए हमें बड़ा आपरेशन करना पड़ेगा जिसमें खतरा बहुत है इस आपरेशन में आपके भाई की जान भी जा सकती है।

शरद ने डाक्टर से पूछा- डाक्टर साहब आपरेशन कितने प्रतिशत सफल हो सकता है। ।   

डाक्टर ने जवाब दिया- देखिये अभी मैं कुछ नही कह सकता मगर अभी तक मैंने जो आपरेशन किये हैं उसमें से 20 प्रतिशत ही सफल हो पाया है। इतना सुनते ही शरद का शरीर एक दम शांत था शरीर में कोई हलचल नहीं थी लेकिन आँखो से आँसू लगातार बह रहे थे। शरद समझ नहीं पा रहे थे की वे अपने भाई जयराज को क्या बतायेंगे। लेकिन किसी तरह से अपने आंसुओं को रोककर वो बाहर आते हैं और अपने भाई जयराज को बोलते हैं चलो चलकर दवा ले लेते हैं और काफी टाइम हो गया खाना भी खा लेते हैं। अब जयराज को भी समझ में आ गया की कुछ गड़बड़ है क्योंकि आज शरद भईया मुझसे नजर छिपाकर बात कर रहे हैं। लेकिन जयराज कुछ नही बोलते हैं और अपने भाई के पीछे-पीछे चल कर भोजनालय पहुँच कर खाना खाते हैं और दवाई खरीद कर आवास पर पहुंचते हैं।

           

लेकिन जयराज जी के मन में वही बात चल रही थी। जयराज जी हिम्मत करके अपने बड़े भाई शरद से पूछते हैं।

भईया डाक्टर ने आपसे क्या कहा ? आप कुछ छिपा रहे हो भईया आज पहली बार आपने मुझसे नजर छिपाकर बात की है। बोलो न भईया क्या हुआ है मुझे मैं ठीक तो हो जाउंगा न। तभी शरद का सब्र टूट जाता है वे रोते हुए जयराज को बताते हैं की आपके दिल सुराख है यदि आपरेशन करायेंगे तो डाक्टर बोलते हैं मैं केवल 20 प्रतिशत गारंटी ले सकता हूँ अब आप बताओ बाबू मैं क्या करूँ मुझे कुछ समझ में नही आ रहा है और जयराज को गले लगा कर रोने लगते हैं और रोते हुए कहते हैं हे भगवान मैंने आप का क्या बिगाड़ा है जो सारे दुःख मेरे परिवार को दे रहे हो। जयराज के आँखों में भी आँसू थे पर जयराज जानते थे अगर मैं रोया तो मेरे भईया टूट जायेंगे। उन्होंने अपने दिल पर पत्थर रख कर शरद को समझाते हुए कहते हैं। जब तक मेरे पास आप जैसा भाई है मेरा कुछ नही होगा मैं आपरेशन नही कराऊंगा। मैं दवा से ही ठीक हो जाउँगा। और फिर जयराज जी हंसते हुए शरद से बोलते हैं लेकिन मुझे जल्द से जल्द मेरे साथ खेलने के लिए मुझे भतीजे की जरूरत है तभी मैं दवाई खाऊंगा। शरद कुछ नही बोलते बस जयराज के सर पर हाथ फेरते हुए बाहर चले जाते हैं।


शरद के भाई जयराज की दवा चलने लगी कुछ दिन बाद शरद के घर में भी नये मेहमान का आगमन होने वाला था। अब जयराज बहुत खुश रहते थे की मैं अब चाचा बन जाऊंगा और अपने भतीजे को जी भर कर देख लूंगा फिर चाहे मेरे प्राण ही क्यों न निकल जाए। अब जयराज के बीमारी के कारण छोटे भाई हेमराज को घर की जिम्मेदारी दे दी जाती है क्योंकि उनका मन पढ़ाई में नही लगता था लेकिन हेमराज कामचोर भी थे। दिन भर घूमते रहते थे और गाँव के लड़कों से मार पीट करते जिसके कारण जयराज कभी-कभी हेमराज को मार देते थे। हेमराज जयराज से रोकर बोलते आप मधुर से काम क्यों नहीं करने के लिए बोलते।       


जयराज बोलते हैं -मधुर मन लगा कर पढ़ाई कर रहा हैं। तुम भी मन से पढ़ाई करो काम के लिए नही बोलूंगा। जयराज को बीमारी के बाद जल्दी गुस्सा आ जाता था और हेमराज अपनी गलतीयों के कारण जयराज से रोज मार खाते। एक दिन हेमराज घर से भाग जाते है लोग बहुत ढूंढते लेकिन उनका कोई पता नहीं चलता। जयराज हेमराज के गायब होने का जिम्मेदार खुद को मानते हैं और ज्यादा सोचने लगे अब इनका रोग गम्भीर रूप लेने लगा था।

 एक दिन शाम को करीब तीन बजे जयराज के सीने में बहुत तेज दर्द उठता है वे अपने भाभी को जोर से आवाज़ लगाते है। भाभी जल्दी आओ मेरे सीने में बहुत तेज दर्द हो रहा है भाभी " अमरावती जयराज का दर्द देखकर घबरा कर रोने लगती हैं " अमरावती जल्दी से मधुर को डाक्टर को बुलाने के लिए भेजती हैं। इधर जयराज दर्द से कराहते हुए बोलते हैं, भाभी मेरा अन्तिम समय आ गया है लग रहा है अब मैं अपने भतीजे को नही देख पाऊंगा पर भगवान के पास पहुंच कर सिफारिश करूंगा की मुझे फिर से मेरे भईया और भाभी के पास उनका बेटा बना कर भेजना।  

इतना कहते हुए जयराज का शरीर ठंडा होने लग गया और साँस रूक गयी। तभी डाक्टर साहब पहुँचते हैं और स्टेथोस्कोप को जयराज के नब्ज पर रखते हैं और आवाक होकर लम्बी साँस भरते हुए कहते हैं जयराज अब इस दुनिया में नही रहे। इतना सुनते ही अमरावती और मधुर खूब रोते हैं। मधुर पढ़े लिखे थे उनके पास उनके भईया के हेडक्वाटर का नम्बर था वे साइकिल उठाते हैं और कोतवाली पहुंच कर थानेदार साहब से अपनी समस्या बता कर उनसे विनीत करते हैं (क्योंकि पहले सरकारी विभागों में फोन या बहुत अमीर लोगों के पास फोन हुआ करता था) । थानेदार साहब बड़े दयालु थे वे शरद के हेडक्वाटर में सन्देश भेजते हैं कि उनके भाई का देहान्त हो गया है। हेडक्वाटर सन्देश मिलते ही शरद के पास सन्देश भेज दिया जाता है शरद छुट्टी का आवेदन पत्र अपने वरिष्ठ अधिकारी को देकर चले जाते हैं दूसरे दिन सुबह अपने गाँव पहुँचते हैं। जयराज के पार्थिव शरीर के दाह संस्कार के लिए लकड़ी की व्यवस्था हो गयी थी।


 शरद घर पहुंचते ही अपने भाई जयराज के मृत शरीर को सीने से लगाकर खूब रोते हैं शरद जी पहली बार इस तरह रो रहे होते हैं जैसे पागल हो गये हो। किसी तरह से लोग शरद को समझाते हैं और जयराज के पार्थिव शरीर को लाल कपड़े में लपेट कर जनाजे के साथ कन्धे पर रखकर शमशान की ओर चल देते हैं। जयराज का दाह संस्कार होता है। शरद अपने भाई का क्रिया क्रम कर अपने ड्यूटी पर वापस आते हैं एक महीने बाद पत्र के माध्यम से शरद को शुभ समाचार मिलता है की उनके घर लक्ष्मी जी का आगमन हुआ है। शरद जी खुश होते हैं उनके दोस्त पान सिंह पत्र को पढ़ रहे होते है वह भी खुशी से झूम उठते हैं और बोलते हैं शरद अब तो मैं चाचा बन गया बोलो आज पार्टी सार्टी का इन्तज़ाम कर दूँ इतना सुनते ही शरद को जयराज की याद आ जाती है वे अपने दोस्त को गले लगा कर रोने लगते हैं और बोलते हैं पान सिंह मेरे दोस्त यही मेरे भाई जयराज का सपना था वो मुझे अकेला छोड़कर चला गया। शरद अपने भाई जयराज को भूल नही पा रहे थे। किसी तरह से पान सिंह उन्हें बाहर लेकर जाते और शरद को समझाते हैं की सैनिक कभी टूटता नही है उसके पास हिम्मत होती है। इस तरह से उनका हौसला बढ़ाते हुऐ पान सिंह ने मजाक किया शरद मेरी भी शादी करा दो भाई कब तक कुवारे बैठे रहेंगे। शरद जी अपने आंसुओं को पोंछ कर मुस्कुराते हुए मजाक भरे लहजे में पान सिंह से बोलते हैं भाई जब तू बीमार था तो गीता सिस्टर तेरा ख्याल रखती थी तू उनसे शादी क्यों नहीं कर लेता। पान सिंह भी हँसते हुए बोलते हैं भाई हाथी की सवारी मैं नही कर पाऊंगा।

कुछ दिनों बाद शरद छुट्टी लेकर घर आते हैं अपने भाई मधुर की शादी बड़े धूमधाम से करते हैं अब वे चाहते थे मधुर भी अपने पैर पर खड़े हो जाये। इन सपनों को दिल में लिए हुए फिर वो अपने ड्यूटी पर वापस आते हैं।  


मधुर जी भी राजनीति में अपना हाथ आजमाने लगते हैं जो धीरे-धीरे उनकी आदत बन गई थी मधुर जी अब राजनीति के अलावा कुछ नही करना चाहते। शरद बड़े भाई होने के नाते उन्हें समझाते और कभी-कभी मार भी देते थे। लेकिन शरद बाहर से सख़्त और अन्दर से उदार स्वभाव के थे। शरद जब कभी मधुर को मारते तो अलग कहीं एकान्त में जा कर रो लेते। पर मधुर की पत्नी चाँदनी को बहुत बुरा लगता था और चाँदनी अलग होना चाहती थी कई बार ये शब्द शरद को सुनने को भी मिलते थे लेकिन शरद अलग नही होना चाहता थे। इसलिए वे अपने परिवार को लेकर लखनऊ चले जाते हैं।

 लेकिन जब भी शरद गाँव आते थे तो चांदनी के घाव करने वाले शब्द बार-बार सुनने को मिलते थे। और शरद जी की धर्मपत्नी अमरावती के उपर काम का बोझ डाल दिया जाता था। अब शरद को लगने लगा की अब उनका सम्मान घुटनों पर आ गया है वे मधुर की पत्नी चाँदनी की बात मानने को तैयार हो गये और बँटवारा कर लिए बँटवारे में घर के बजाय उन्होंने सिर्फ खाली ज़मीन लिए और घर से एक सुई भी नही लिए। फिर शरद ने दो कमरे का मकान बनाया घर में सामान की अलग से व्यवस्था की फिर अपने परिवार के साथ अधिकतर लखनऊ ही रहने लगे। लेकिन पहले की तरह अपने भाई मधुर की आर्थिक मदद करते रहते थे और पूरे खेत की जिम्मेदारी भी मधुर को ही दे रखा था।  

कुछ दिन के बाद शरद को खुशखबरी मिलता है की उनके भाई मधुर को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है। शरद उस दिन बहुत खुश थे शरद छुट्टी लेकर घर आते हैं बच्चे का नामकरण कर उसका नाम दिवाकर रखते हैं और बड़े धूमधाम से छठ पूजा के साथ सभी ग्रामवासीयों को प्रीतिभोज के लिए आमंत्रित करते हैं। कुछ महीनों बाद शरद जी के घर फिर से लक्ष्मी जी का आगमन होता है। अब शरद की दो बेटियां हैं एक का नाम उर्मिला और दूसरे का निलमा रखा। पर शरद की पत्नी अमरावती को पुत्र चाहिए था इसी बात का दर्द अमरावती के दिल में हमेशा रहता था। इस बार शरद अपने परिवार को गाँव में छोड़कर चले जाते हैं। उस साल गाँव में कड़ाके की ठण्ड पड रही थी जिससे निलमा की तबियत ज्यादा खराब हो जाती है डाक्टर से इलाज चल रहा था निलमा को न्यूमोनिया हो गया था और एक दिन उसकी सांस थम जाती हैं। निलमा का सफर शायद यहीं तक था। शरद को सूचना पहुँचा दिया गया था। मगर इस बार शरद को छुट्टी नही मिलती है।

निलमा बहुत ही चंचल स्वभाव की लड़की थी और अपने पापा की परी थी। शरद जब भी गाँव आते तो शरद की गोद में बैठने के लिए अपने चचरे भाई दिवाकर से निलमा लड़ाई कर लेती पापा को बहुत प्यार करती थी। शाम को तोतली आवाज़ में शरद से ढेर सारी बातें करती और यही सब बातें शरद याद कर बहुत रोते थे। कुछ महीनों बाद शरद को छुट्टी मिलती है शरद गाँव आते हैं और अपने परिवार को लेकर लखनऊ चले जाते जाते हैं।  


चार साल के बाद शरद के घर पुत्र का आगमन होता है शरद के जिन्दगी में फिर से खुशी की लहर दौड़ गई लेकिन जिस दिन ये खबर मिली उस दिन शरद के सपने में जयराज आते हैं और कहते हैं भईया मैं आपका बेटा बन कर आ रहा हूँ मुझे आपके साथ ही रहना है भगवान ने मेरी प्रार्थना स्वीकार कर ली है मैं जल्द आ रहा हूँ शरद बहुत खुश थे। बेटे के रूप में अपने भाई को वापस पाकर। और अपने बेटे का नाम रघुवंश रखते हैं।

कुछ सालों बाद मधुर जी का एक्सीडेंट होता है जिसके कारण मधुर का भी देहान्त हो गया था। मधुर जी के चार बच्चों का बोझ भी शरद के उपर आ जाता है लेकिन चाँदनी की आदतें वही थी। चाँदनी को हमेशा से लगता था की शरद उसके परिवार के दुश्मन हैं। लेकिन शरद का व्यक्तित्व बहुत अच्छा था वे मधुर के परिवार का यथासम्भव मदद करते रहते थे। लेकिन वक्त कहाँ रूकता है। समय चक्र चलता रहा।

 अब धीरे-धीरे शरद के सेवानिवृत्ति होने का समय आ गया। कुछ दिनों बाद सेवा सम्मान देकर शरद को सेवानिवृत्ति कर दिया जाता है। पहले सेना की नौकरी बहुत कम वर्ष की होती थी लगभग 17 से 20 वर्ष होती थी। 17 वर्ष स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति और 20 वर्ष पूर्ण सेवा होती थी।

शरद 20 वर्ष तक नौकरी करने के बाद सेवानिवृत्ति हुऐ।  शरद 2 साल तक गाँव में रहे गाँव में शरद को उलझन होती थी उन्होंने फिर से सेना मे भर्ती होने का फैसला किया। इसके लिए शरद ने वायुसेना में फिर से आवेदन किया और उन्हें डी एस सी रेजीमेंट से नियुक्त पत्र मिल गया अब वे कानपुर सपरिवार रहने लगे बच्चों का सैनिक स्कूल में दाखिला हुआ।

 लेकिन अमरावती गाँव में रहना चाहती थी उन्होंने एक दिन शरद को अपने दिल की बात कह डाली। शरद की एक आदत थी वो अपने परिवार को बहुत खुश रखते थे। उन्होंने अमरावती की बात मान ली और गाँव भेजने को तैयार हो गये। मगर उन्हें नही पता था की वे अपने पुत्र से दूर हो जायेंगें। और वही हुआ अमरावती ज़िद करने लगी बोली मेरा बेटा मेरे साथ रहेगा। शरद मजबूर हो गये और सबको घर भेज दिया। और बच्चे गाँव में पढ़ने लगे। उर्मिला का मन पढ़ाई में नही लगता इसलिए कक्षा 10 में फेल हो गयी सिर्फ कढ़ाई बुनाई मे ध्यान लगता था कुछ दिनों बाद शरद उर्मिला की शादी एक जमींदार परिवार मे कर देते हैं।   

शरद के एकलौते पुत्र रघुवंश पढ़ाई में ठीक थे। लेकिन रघुवंश बचपन से ही गुमसुम रहते थे। उनकी दोस्ती केवल उनके पापा से थी। रघुवंश ज्यादा किसी से न दोस्ती करता न किसी से बात। धीरे-धीरे समय चक्र चलता रहा।

वायु सेना में 15 साल सेवा देने के बाद शरद जी की सेवा स्वतः समाप्त हो गयी क्योंकि सेना के कुछ नियम होते हैं और शरद 2 साल देर कर दोबारा भर्ती हुए थे।  

अब शरद गाँव में आकर रहने लगे कुछ साल बाद उनका स्वास्थ्य भी कुछ खराब रहने लगा था एक दिन शरद पेट मे दर्द होने लगा था। तब शरद लखनऊ में जाकर अपने शरीर का जाँच कराये पता चला की उनके बडी आंत में गांठ बनने लगी थी और उसका इलाज केवल दवा से ही सम्भव था। अब शरद को चिंता हो रही थी की अपने बच्चे का विवाह देख पायेंगे की नही। धीरे-धीरे समय हो गया उनका बेटा हाई स्कूल पास किया तभी से उसके विवाह के लिए रिश्ते आने लगे शरद को भी बेटे का विवाह जल्दी करना था। शरद बीमारी के डर से जल्द ही बेटे का रिश्ता स्वीकार कर लिये। शरद के बेटे रघुवंश को ये रिश्ता स्वीकार नही था क्योंकि रघुवंश की उम्र बहुत कम थी लगभग 15 वर्ष और बाल विवाह के पक्ष मे रघुवंश बिलकुल नही थे। मगर शरद को अपने बीमारी का डर था इसलिए शरद को अपने बेटे का बाल विवाह करने पर मजबूर होना पड़ा। और शरद ने अपने बेटे को अपने बीमारी के बारे में बता दिया। शरद ने अपने बेटे से कहा मुझे केवल बहू को देखना है। फिर चाहे बहू की विदाई तीन साल बाद हो मुझे मन्जूर है।  रघुवंश को अब मजबूर हो कर शादी के लिए हां करना पड़ा।

          

अब बिना लड़की को देखे बिना बात किये रघुवंश शादी कर लेते हैं। क्योंकि रघुवंश को अपने पिता को खुश रखना था। रघुवंश सोच रहे थे जब मुझे पापा को खुश रखना है तो क्या फर्क पड़ता है की लड़की कैसी होगी ,कैसे बोलती होगी, पढ़ी लिखी है या नही क्या फर्क पड़ता है। रघुवंश अपने ख़ुशियों को अपने पिता को समर्पित कर शादी कर लेते हैं।

 शरद भी दवाई और हिम्मत के बल पर जिन्दगी जी रहे थे। तीन साल बाद लड़की विदाई कर शरद अपने बहू को घर लाते हैं। रघुवंश कुछ दिन घर पे रहने के बाद कानपुर चले जाते हैं। रघुवंश इन्टर मीडिएट की परीक्षा पास कर कानपुर में पी एम टी की तैयारी कर रहे थे।  

 शरद जी की इच्छाएं बढ़ने लगी अब शरद जी को घर में पोते की जरूरत थी। शरद फोन पर जब भी रघुवंश से बात करते। जब रघुवंश पूछते पापा आप ठीक है तो शरद को मौका मिल जाता और शरद इशारे इशारे में बोल देते हाँ तबियत अभी ठीक है लेकिन मरने से पहले अपने पोते को देख लेता तो ठीक था। अब रघुवंश दबाव में रहने लगे और अपने पिता की इच्छाएं पूरा करने के लिए वे कुछ भी करने को तैयार थे। कुछ दिनों बाद पिता की स्थिति और घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए रघुवंश कानपुर में डाक्टर वीरेन्द्र स्वरूप इन्स्टिट्यूट आॅफ साइन्स एन्ड टेक्नोलॉजी संस्था में बी एस सी में प्रवेश ले लेते हैं ,कुछ महीने बाद वहीं हुआ भी जो शरद की इच्छा थी। उनके घर पोती का आगमन हुआ। शरद जी बहुत खुश थे पर उनके शरीर में रोग रूप में बैठा शैतान भयानक रूप ले रहा था। कुछ परेशानी बढ़ने लगी शरद ने अपने बेटे को फोन कर बताया बेटा घर आ जाओ मेरी तबियत कुछ खराब है। रघुवंश घर आते हैं और अपने पिता को कानपुर लेकर जाते हैं वहां पर शरद को एयरफोर्स हास्पीटल में दिखाते हैं। डाक्टर पूरी जाँच करने के बाद शरद से बोलते हैं आपके साथ कोई आया है। शरद ने कहा हाँ डाक्टर साहब मेरा बेटा आया है डाक्टर साहब शरद से बोलते है- अपने बेटे से बोलो मुझे गेस्ट रूम में आकर मिले। शरद जी को आभास हो गया था की कुछ गड़बड़ है। शरद जी बाहर आते हैं और रघुवंश से कहते हैं बेटा तुम्हें डाक्टर साहब गेस्ट रूम में मिलने के लिए बुलाये हैं। रघुवंश गेस्ट रूम में आदेश लेकर पहुँचते हैं जहाँ डाक्टर साहब आर्मी का लिबास पहने कन्धे पर तीन स्टार लगे हुए हाथ में चाय से भरा कप लेकर गेस्ट रूम की खिड़की से बाहर की तरफ देखते हुए बोलते हैं आ गये बेटा बैठ जाओ।

रघुवंश रूम में रखे सोफे पर बैठते हैं और तभी डाक्टर साहब- पहला सवाल पूछते हैं बेटा कितने भाई बहन हो?

रघुवंश बोलते हैं - सर मैं अकेला हूँ और मुझसे बड़ी मेरी एक बहन है।

डाक्टर साहब- रघुवंश से आपकी शादी हो गयी?

रघुवंश- हां सर मेरी शादी हो गयी मेरी एक बेटी है।


डाक्टर साहब -इसका मतलब आपके पिता जी के उपर कोई जिम्मेदारी नहीं है। बेटा जो बात मैं तुमसे कहने जा रहा हूँ तुम्हें हिम्मत से काम लेना होगा ।

थोड़ी देर रूक कर चाय की चुस्कियां लेते हुए डाक्टर साहब सामने आकर बैठते हैं। और बोलते हैं बेटा तुम्हारे पापा के बड़ी आंत में कैंसर है और अब ये अपने अन्तिम चरण पर है। अब तुम्हारे पापा जिन्दगी के अन्तिम मोड़ पर खड़े हैं।

इतना सुनते ही बिना आवाज़ के रघुवंश के आँखों से केवल आँसू बह रहे थे और रघुवंश का शरीर एक दम हल्का सा लग रहा था जैसे उसका शरीर शुन्य हो गया हो। तभी डाक्टर साहब बोलते हैं बेटा अपने आपको सम्भालने की जरूरत है क्योंकि तुम अपने पापा की हिम्मत बढ़ा सकते हो अपने पापा को ले जाओ और इनकी सेवा करो इन्हें खूब प्यार दो।

रघुवंश डाक्टर साहब से पूछते हैं - मेरे पापा के पास अभी कितना समय है।

डाक्टर साहब बोलते हैं लगभग सात महीने अगर शरद हिम्मत करते हैं तो साल भर का मौका है।


रघुवंश ने पूछा सर इसका कोई और इलाज है।     

डाक्टर साहब -' बेटा मैं इनको कमाण्ड हास्पीटल लखनऊ रेफर करता हूँ शायद वहां कोई व्यवस्था हो जाये। डाक्टर साहब पेपर तैयार करते हैं और रघुवंश बाहर आकर अपने पापा के पास बैठते हैं। तभी शरद पूछते हैं क्या हुआ बेटा क्या बोला डाक्टर साहब ने।

रघुवंश इतना सुनते ही अपने पापा के गले लग जाते हैं और फफक कर रोने लगते हैं।

 शरद को पहले से ही पता था अपने बीमारी के बारे में लेकिन वे घर पे झूठ बोलते की पेट में छोटी सी गांठ है। मगर शरद के बड़ी आंत में कैन्सर था और डाक्टर हमेशा के लिए पेट से नया रास्ता बनाने को बोलते तो शरद मना कर देते थे।  

अब शरद जी रघुवंश को समझाते हैं की कोई यहाँ अमर होकर नही आया है सबको एक दिन जाना है बस वादा करो अपने जिम्मेदारीयों से कभी नही भागोगे। अपने माँ का ख्याल रखोगे। तभी डाक्टर साहब आवाज़ देते हैं बेटा पेपर तैयार है ले जाओ। रघुवंश पेपर लेते हैं। और अपने आवास तक पहुंचने के लिए आॅटोरिक्शा पकड़ते हैं। शरद आगे बैठते हैं रघुवंश पीछे।

लेकिन रघुवंश अन्दर से डरे हुए थे कहीं उनके पिता को कुछ हो गया तो वे अकेले हो जायेंगे और उनके पिता जी कभी लौट कर नहीं आयेंगे। इस बात को सोच कर रघुवंश अपने मुख को रूमाल से दबा कर बैठ थे और आँखों से लगातार आँसू बरस रहे थे।

 रघुवंश की उम्र भी लगभग 20 साल थी। लेकिन रघुवंश भी हिम्मत हारने वाला नही था। रघुवंश लखनऊ में अपने पिता को कमाण्ड हास्पीटल मे भर्ती कराता है जहाँ शरद को कीमोथेरेपी और ब्रेकिथेरेपी से साल भर इलाज चलता है स्थिति लगभग सामान्य होने लगी थी। अभी शरद अपने मन में इच्छा लेकर बैठे थे की काश अपने बेटे रघुवंश के बेटे को अपने गोद मे ले सकूँ उसे खूब प्यार करूँ। इन्हीं सपनों को लिए एक दिन फिर शरद ने मौका देखकर अपने बेटे से कहा मैंने पोती तो देख लिया एक पोता भी देख लेता तो मेरे तो सारे सपने पूरे हो जाते। कुछ दिन बाद शरद को हॉस्पिटल से छुट्टी मिल जाती है सब कुछ सामान्य हो गया था। रघुवंश भी पढ़ाई पर ध्यान देने लगे रघुवंश सोच रहे थे जल्द से जल्द मेरी नौकरी लग जाये ताकि पिता जी मुझे अपने पैरों पर खड़ा देख सकें। कुछ दिन बाद शरद को पता चलता है कि उनकी बहु गर्भवस्था में है तभी से शरद मन्दिर में जाकर घण्टों बैठ कर पूजा करते और भगवान से यही प्रार्थना करते की मुझे एक पोता मिल जाए।

     

 भगवान ने शरद के जीवन में बहुत सारे कष्ट दिए पर कभी कभी भगवान शरद को खुश भी कर देते थे। और शरद पुराने दर्द को भूल जाते थे। एक बार फिर उनके जीवन में खुशियों का पल आया। शरद जी के घर में नन्हे बालक का आगमन हुआ शरद खुशी से झूम उठे शरद जी दादा बन गए थे।   

      

लेकिन शरद के शरीर में  जो रोग था वो बहुत तेज से बढ़ रहा था लेकिन इस बार रघुवंश को किसी ने आयुर्वेदिक चिकित्सा कराने का परामर्श दिया। रघुवंश शरद को आयुर्वेदिक चिकित्सालय में भर्ती कर देते हैं जहाँ पर कुछ दिन तक शरद का इलाज चलता है पहले कुछ दिन तक सब कुछ ठीक था। कुछ दिन बाद शरद का रोग अपने अन्तिम चरण पर बहुत तेज गति से पहुंच जाता है। अब आयुर्वेदिक संस्था के लोग केवल पैसा बना रहे थे। और शरद जी का दर्द बहुत ज्यादा बढ़ता ही जा रहा था। शरद का हिम्मत टूट रहा था। रघुवंश भी वहां के डाक्टर को समझने लगे की ये संस्थान लुटेरों की है। वहाँ के डाक्टर पैसों की लालच में शरद को छुट्टी नही दे रहे थे।  

रघुवंश अब अपने मामा को फोन कर अपनी परेशानी बताते हैं। रघुवंश के मामा आयुर्वेदिक संस्था के बड़े पदाधिकारी से बात कर वहां से शरद को निकाल कर आर्मी कमान्ड हॉस्पिटल में इमरजेन्सी में शरद को भर्ती करते हैं जहाँ उनकी सर्जरी होती है। बीस दिन हॉस्पिटल में रहने के बाद शरद को एक महीने की दवा देकर छुट्टी दे दी जाती है। शरद गाँव पहुँचते हैं। रघुवंश भी अपने पापा की सेवा करते थे। अब धीरे-धीरे शरद के शरीर पर सूजन आने लगता है। एक महीने पूरे होते हैं शरद को फिर डाक्टर कर्नल कपूर सर को दिखाया जाता है। डाक्टर कपूर रघुवंश को अपने आँफिस में बुलाते हैं। रघुवंश डाक्टर साहब से मिलने पहुँचते है।  

डाक्टर साहब- रघुवंश को बोलते हैं बेटा अब आप अपने पापा को और परेशान मत करो अब मत दौड़ो। अपने पापा को ले जाओ और इनकी खूब सेवा करो क्योंकि तुम्हारे पापा अब केवल एक महीने के मेहमान हैं। रघुवंश के अन्दर पिता को खो देने का डर था। लेकिन रघुवंश अब केवल अन्दर से रोता था। बाहर आँखों के आँसू तो सूख गये थे। अब रघुवंश अपने पापा शरद के सामने न रोने की आदत बना चुके थे। ताकि शरद की हिम्मत न टूटे।  

इस बार शरद फिर से रघुवंश से पूछते हैं क्या हुआ बेटा क्या बोला डाक्टर साहब ने।

रघुवंश अब अपने पापा से झूठ बोलते हैं- कुछ नही पापा वो डाक्टर साहब ने दवाई बदल दी है इसलिए मुझे बुलाये थे।   

 रघुवंश अपने पापा से झूठ इसलिए बोलते हैं ताकि उनके पिता जी एक महीने खुल कर जिएं न की दुखी होकर।

लेकिन शरद को आभास हो गया था की उनका अन्तिम समय चल रहा है क्योंकि उन्हें वही यमदूत नजर आ रहे थे जिन लोगों ने पहले भी उन्हें यमलोक की सैर करा दी थी।

 शरद रघुवंश से कहते भी थे। मुझे यमलोक के कुछ लोग मेरे आस पास सफेद कपडो मे घुमते हुऐ नजर आ रहे हैं। मैं युवावस्था में इन लोगों से मिल चुका हूँ। रघुवंश को भी पता था उनके पापा अब कुछ दिनों के मेहमान है। पर रघुवंश हिम्मत करके अपने पापा के दिमाग को अपने बच्चों की तरफ मोड़ देते कभी अपने पापा के साथ बचपन वाली हरकतें करते थे जिसे देख शरद जी मुस्कुराते। रघुवंश घड़ी और कैलेन्डर को अपने सामने लगा कर हर रोज सोते थे और वक्त गिनते रहते थे।

घड़ी का वक्त और कैलेन्डर से दिन गिनते हुऐ रघुवंश के 24 दिन हो गये थे। ज्यादा सोचने के कारण  रघुवंश की तबियत खराब हो गयी। शरद को ये बात पता चली की उनके बेटे रघुवंश की तबियत खराब है। शरद ने कहा -बेटा जाओ डाक्टर को दिखा कर दवा ले आओ। लेकिन रघुवंश को पता था की उनके पिता जी अब कुछ दिनों के मेहमान है इसलिए रघुवंश एक पल के लिए अपने पिता से दूर नही जाना चाहते थे।  

लेकिन रघुवंश की तबियत अब बहुत तेज खराब हो गयी अब रघुवंश की हिम्मत जवाब देने लगी तब रघुवंश ने सोचा की अब डाक्टर को दिखा देना चाहिए। रघुवंश ने अपने पिता को खाना और दवाई खिला कर रात में सो जाते हैं और अगली सुबह डाक्टर के दिखाने के लिये गोरखपुर चले जाते हैं। रघुवंश को केवल अपने पिता की चिंता लगी थी क्योंकि 27वा दिन चल रहा था।

इधर शरद की सुबह की नींद खुली तो उनकी सेवा में उनकी बड़ी बेटी उर्मिला लगी हुई थी। तब शरद जी ने पूछा- बेटी रघुवंश कहाँ हैं ? 

उर्मिला ने जवाब दिया-पापा भाई अपने इलाज के लिए गोरखपुर गया है शाम तक घर वापस आ जायेगा।

शरद जी को शाम को ही अपने बेटे रघुवंश के शरीर का दर्द और शरीर का बढ़ता ताप महसूस हुआ था। इसलिए शरद को तसल्ली हो जाती है की रघुवंश डाक्टर को दिखाने गये हैं।  

लेकिन अब शरद का समय पूरा हो गया यमलोक से यम दूत भी उनसे चलने का आदेश कर रहे थे। लेकिन शरद को अपने पुत्र रघुवंश से मिलना था इसलिए उनका प्राण तो नही निकला लेकिन उनकी आवाज चली जाती है 

 शाम को रघुवंश वापस आते हैं तो रघुवंश की बड़ी बहन उर्मिला कहतीं हैं भाई तुम को पापा पूछ रहे थे। देखो बात कर लो पापा से। जब रघुवंश अपने पापा के हाथ को सहलाते हुए पूछते हैं तो शरद के आँखो से आँसू लगातार बहने लगे। शरद भी हाथ के इशारे से बोले अब वो बोल नही सकते अब उनका अन्तिम समय आ गया।

        

रघुवंश और उर्मिला बहुत रोते हैं और शरद की धर्मपत्नी अमरावती बच्चों को समझाते हुए रोती हैं। दूसरे दिन शरद के शरीर का तापमान बढ़ने लगा। रघुवंश डाक्टर को बुलाते हैं और दिखाते हैं।लेकिन डाक्टर ने भी जवाब दिया कि अब इनका अन्तिम समय है।

रघुवंश को भी पता था आज उनके पिता का अन्तिम दिन है इसलिए उनकी निगाहें घड़ी के वक्त पर और हाथ अपने पिता के हाथ के नब्ज पर थे। वक्त देखते देखते शाम को 8:30 बजे शरद जी की जीवन लीला समाप्त हो जाती है। परिवार के लोग रोते-बिलखते है। इस तरह एक फौजी अपने जीवन के सभी संघर्षों को जीतते अपनी यादों को लोग के बीच एक हिम्मत के रूप में छोड़ जाते हैं। एक फौजी की कहानी यही समाप्त हो जाती है।

          

            To be continue 

        


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