विज़ुअल स्टोरी टेलर (लघुकथा)
विज़ुअल स्टोरी टेलर (लघुकथा)
"मैंने तुम्हें अपने प्रिय फेसबुक समूह की चित्राधारित लघुकथा प्रतियोगिता का यह चित्र दिखाया, तो तुम दुखी क्यों हो गईं?"
"नहीं तो, ऐसा तो कुछ भी नहीं!"
"फ़िर.. फ़िर तुम्हारे चेहरे का रंग एकदम कैसे उड़ गया?"
"नहीं तो, ऐसा तो कुछ भी नहीं! लगता है तुम फ़िर लघुकथाकार की पैनी नज़र से देखने लगे हो मुझे! अच्छा.. अब मैं चलती हूँ! जैसी भी लघुकथा लिखना हो, लिख डालना! लेकिन पोस्ट करने से पहले मुझे मत पढ़वाना! सुना देना अपनी बीवी को ही!"
"अरे! ऐसी भी क्या नाराज़गी! सीधे-सीधे बता दो... कहाँ खो गईं थीं तुम इस चित्र को देखकर! आखिर तुम ही तो हो मेरी सहेली... चित्र पहेली... लघुकथा पहेली...पाठक सहेली... समालोचक सहेली!"
"बस, बस... अब ज़्यादा बटरिंग नहीं! जब मेरे चेहरे पर सब पढ़ ही डाला है... तो उसी कथानक पर इस बार लिख डालो! यक़ीन है, कुछ अच्छा ही लिखोगे हमेशा की तरह! ... अब यूँ क्यूँ घूरे जा रहे हो मुझे? ... लिखो न! ... आज शनिवार है!.. मालूम है... डायरी में न लिखकर सीधे मोबाइल पर ग्रुप की वॉल पर ही लिखोगे और पोस्ट कर दोगे! ... तभी तो विजेता नहीं बन पाते हो कहीं भी! कहते फ़िरते हो कि लघुकथा को ख़ूब पकाना पड़ता है! ... लेकिन यूँ तुरंत-फुरंत नूडल्स तैयार कर पाठकों को खिलाते रहते हो... आत्ममुग्ध होते रहते हो, बस!"
"अब चुप भी होगी कि नहीं? मेरे उस सवाल का जवाब तो दो डियर फ़्रेंडी केंडी!
"तुम बस इस चित्र को घूरो और फ़िर मुझे घूरते रहो! पक जायेगी लघुकथा! .... .. यार, तुम मेरे पुराने ज़ख्म क्यूँ उभारते हो? अपनी बीवी को देखते हो ऐसे कभी?"
"..............."
"सॉरी... अब तुम्हारे चेहरे का रंग एकदम क्यूँ उड़ गया?"
"........................."
"ठीक है! अब तुम घर जाओ! जब लघुकथा लिख लो, तो मुझे फोन पर सुना देना या वाट्सएप कर देना। लेकिन रात बारह बजे से पहले पोस्ट ज़रूर कर देना हमेशा की तरह! अब मुझे जाने दो, मेरे हस्बैंड घर पहुंचने ही वाले होंगे!... गुड बाइ! .... वो रही टैक्सी... टैक्सी!"