Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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विशेष रक्षाबंधन

विशेष रक्षाबंधन

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आभासी दुनिया के माध्यम से जुड़कर वास्तविक दुनिया में महज तीन परोक्ष मुलाकातों का रिश्ता और रक्षाबंधन से दो दिन पूर्व रक्षाबंधन न भेज पाने की विवशता भरा संदेश एक सुखद अनुभूति का अहसास कराने के लिए पर्याप्त था।

बेटी जैसी मुंँहबोली बहन की भावनाओं को सम्मान सहित खुशियाँ देने के लिए बिना किसी सोच विचार के मैंने उसे स्वयं आकर उसके हाथों से ही रक्षाबंधन बंधवाने का आश्वासन दे दिया। वास्तविकता तो यह है कि ईश्वरीय इच्छा को शिरोधार्य कर मैं इस अवसर को औपचारिकताओं में नहीं धरातल पर देखने का उत्सुक था। हालांकि अपने स्वास्थ्य के प्रति अब असमंजस भी रहता है। लेकिन मन में बहन के आत्मीय स्नेह की अश्रुमिश्रित भावुकता और उत्सुकता भी थी। मेरे स्वास्थ्य के प्रति उसकी चिंता में उसका स्नेह परिलक्षित होता ही रहता है। जो उसके जब तब स्नेह भरे निर्देशों से स्पष्ट महसूस करता ही रहता हूँ। 

कुछ ऐसा ही संदेश रक्षाबंधन के समय भी था कि स्वास्थ्य को देखते हुए ही अपना कार्यक्रम बनाएं। पर ईश्वर भी शायद मेरी आकांक्षा, उत्सुकता को समझ रहा था और अंततः "कब तक आयेंगे भैया" की उस लाड़ली दुलारी बहन की उत्सुकता, उतावलेपन को पूर्णता देते हुए उसके सामने उपस्थिति हो ही गया।

परंपराओं के अनुरूप जब अपने हाथों से मेरी कलाई पर रक्षाबंधन बाँधा, तो आँखें नम हुए बिना न रह सकीं। उसकी आँखों में तैरती खुशियाँ मुझे धन्य कर गईं। अपने संस्कारों के अनुरूप उसने मेरे पैर छूए तो मेरे हाथ स्वत: उसके सिर पर आशीर्वाद स्वरूप पहुंच गये। लेकिन अपनी परंपराओं के अनुरूप जब मैंनें उसके पैर छुए तो वह संकोच से सिमट गई, साथ ही ये कहा कि आप बड़े हैं। आप ऐसा न किया करें।

मगर मैं भी अपनी परंपराओं से भी भला दूर कैसे रह सकता था। क्योंकि हमारे यहाँ बहन बेटियों से पैर छुआने की नहीं, छूने की ही परंपरा है। मैं इसलिए इस बहन को बार बार मना करता रहता हूँ। मगर वो है कि बार बार मुझे खिझाती ही है। जो उसके संस्कारों और बड़े भाई के प्रति सम्मान को रेखांकित करते हैं।

यह बताना भी महत्वपूर्ण है कि पहली बार जब हम मिले तो उसने बिना किसी संकोच के मेरे पैर छूकर अपने संस्कार और अपनी भावना को प्रकट कर दिया था।

 उसके साथ रिश्ते जुड़े तो फिर जुड़ते और मजबूत होते चले गये। जिसमें न कोई संदेह और न अपने पराए होने की दुविधा। बस भाई बहन जैसा पवित्र अटूट रिश्ता। जिसे कल तक अनदेखी अंजानी और आज की हमारी प्यारी सी छोटी बहन ने अपनी राखी के धागों से मजबूत गाँठ लगाकर पूर्णता प्रदान कर दिया।

अब तो ऐसा लगता है कि पूर्वजन्म का रहा हमारा रिश्ता पुनर्जीवित हो गया है। आज मुझे यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि इस बार का रक्षाबंधन विशेष हो गया है, जिसमें मुख्य भूमिका में हमारी इस छोटी बहन की है, जिसकी राखी के धागे पहली बार मेरी कलाई में बंधकर मुस्करा ही नहीं रहे हैं, बल्कि अपने सौभाग्य पर मुझे गर्व की अनुभूति भी करा रहे हैं

बस!अब तो ईश्वर से प्रार्थना और आप सभी के आशीर्वाद की आकांक्षा है कि मेरी कलाई में बँधी इस बहन की राखी के धागों की गाँठे कभी ढीली न हों। साथ ही उसका स्नेह, आशीष भरा हाथ हमेशा मेरे सिर पर हो।अपनी लाड़ली बहन को अशेष आशीर्वाद, शुभकामनाएं, लाड़, प्यार, दुलार संग मेरा बारंबार नमन है।


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