Archana Saxena

Inspirational

4.5  

Archana Saxena

Inspirational

विकल्प

विकल्प

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यश की दिनचर्या पर आज अचानक गौर किया रश्मि ने तो उसे स्वयं पर ग्लानि हुयी। पिछले कुछ दिनों से वह सिरदर्द के साथ ही आँखों में दर्द की शिकायत भी कर रहा था। पहले तो रश्मि और अजय ने ध्यान ही नहीं दिया। वो भी क्या करें, इतने व्यस्त जो हैं। रश्मि शिक्षिका है और कई घंटों तक ऑनलाइन कक्षाओं में व्यस्त रहती है। उसके बाद घरेलू कामकाज निबटाते हुए थक के चूर हो जाती है। अजय का दफ्तर तो और भी देर तक चलता है। वह तो न रश्मि के किसी काम में हाथ बँटाता है न ही यश की किसी समस्या पर गौर करता है।

 जब तेल मालिश करने और बाम लगाने से बात नहीं बनी तो रश्मि ने आई स्पेशलिस्ट से समय लेकर यश को दिखाया। डॉक्टर ने पूछा कि यश कितनी देर ऑनलाइन रहता है तो जैसे रश्मि सोते से जागी। पहली बार उसने ध्यान दिया कि यश तो दिन भर में दस घंटे से भी ज्यादा समय कम्प्यूटर और मोबाइल पर बिताता है। इसके अतिरिक्त दो घंटे टीवी भी देख लेता है। 

रश्मि को पता था कि इतनी देन ऑनस्क्रीन रहना आँखों की सेहत के लिए खतरनाक है फिर भी उसने इस बात पर कभी ध्यान क्यों नहीं दिया? 

यश की नजर कमजोर हो गई थी और रश्मि इसके लिए स्वयं को भी किसी हद तक जिम्मेदार मान रही थी। यश की आँखों पर चश्मा देखकर स्वयं यश को इतनी परेशानी नहीं थी जितना रश्मि को अपराध बोध हो रहा था।

लॉकडाउन ने परिस्थिति खराब कर दी थी। कामवाली बाई के न आने से काम इस कदर बढ़ा हुआ था कि फुर्सत के पल कम ही मिलते थे। उसपर मोबाइलफोन तो सभी के दिल की धड़कन बन चुका है, जो भी समय खाली मिलता था तो रश्मि भी तो मोबाइल फोन के साथ बिताती थी।

यश करता भी तो क्या। इकलौती सन्तान है, घर में साथ खेलने को भाई बहन नहीं हैं। विद्यालय का मुख देखे साल से ऊपर हो गया है। वहाँ पढ़ाई के अतिरिक्त खेलकूद भी होता था तो बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास होता था। शाम को सामने वाले पार्क में पड़ोस के बच्चों के साथ दो घंटे खेलता था। फिर होमवर्क के बाद जो समय बचता था तो घंटे भर टीवी देख लेता था यश। मोबाइल फोन तो रश्मि उसे हाथ भी नहीं लगाने देती थी। और जब से ये बीमारी आई है, इतने घंटे कक्षाएँ ही ऑनलाइन होती हैं। फिर बच्चे घर के बाहर खेलने नहीं जा सकते तो उनका समय नहीं कटता। जब वह मम्मी पापा को परेशान करते हैं तो वह स्वयं की जान छुड़ाने के लिए मोबाइल फोन पर गेम खेलने की राह उन्हें सुझा देते हैं। पर इन सबका नतीजा? वही जो आज रश्मि के सामने था।

 पर क्या कोई और विकल्प ही नहीं है? है न विकल्प परन्तु परेशानी से बचने के लिए हम खुद ही बच्चों की सेहत के साथ खिलवाड़ करते चले जा रहे हैं।

रश्मि ने अजय से बात की। दोनों ने फैसला किया कि अब तक जो हुआ उसे तो बदला नहीं जा सकता परन्तु आगे सुधार अवश्य किया जा सकता है। कक्षाएँ तो जब तक विद्यालय नहीं खुलते ऑनलाइन चलानी ही पड़ेंगी परन्तु बाकी का समय घर में कैरम, लूडो, साँपसीढ़ी, ताश आदि खेल कर भी तो बिताया जा सकता है। और उनका तो घर भी इतना छोटा नहीं है, यहाँ तो बैडमिंटन भी खेला जा सकता है। ऐसा करने से सभी का शारीरिक व्यायाम भी तो हो जाएगा। इससे बच्चे को मम्मी पापा का सानिध्य भी मिलेगा और निकटता भी बढ़ेगी।

उसी शाम जब तीनों ने मिलकर कैरम खेला तो यश का उत्साह देखने वाला था। उसकी खुशी देखकर रश्मि और अजय सोच रहे थे कि सच्ची खुशी तो दरअसल परिवार के साथ बैठ कर की गई इन छोटी छोटी चीजों में है। पर हम ही इतने नादान हैं कि केवल हर बात का रोना ही रोते हैं। कभी समय का, कभी बीमारी का, तो कभी अपने अभावों का। पर ऐसा करते हुए हम ये भूल जाते हैं कि हम अपनी नई पौध को भी नकारात्मक खाद, पानी डाल कर सींच रहे हैं। भविष्य में यह पौध भी तो नकारात्मकता लेकर ही तो बड़ी होगी।


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