विकल्प
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आज सुहासिनी की छोटी बहू ने निशा ने उसके मुंह पर टका सा जवाब दे दिया- “देखिए मम्मी जी, मैंने प्रशांत से पहले ही कहा था कि मैं आप लोगों के साथ एक छत के नीचे नहीं रह सकती। मधु दीदी का सम्मान इस घर में मुझसे ज्यादा है जबकि मैं उनसे हर तरह से ज्यादा ही क़ाबिल हूँ। अब मैं और बर्दाश्त नही कर सकती। अच्छा यही होगा कि आप हमें दूसरे घर में शिफ्ट करने की परमिशन दे दे। इससे सभी की प्रॉब्लम सॉल्व हो जाएगी। इतना कुछ कहकर निशा वहाँ से चली गई और सुहासिनी जी ठगी सी उसे जाते हुए देखती रह गई।
उस रात सुहासिनी के गले से एक निवाला नीचे नहीं उतरा। वह भूखी ही अपने कमरे में आकर लिट गई। आज उसे अपनी सास की एक बात याद हो आई- “बहु अगर आज तुम्हें हमारी बातें इतनी ही बुरी लग रही है तो आने वाले वक्त में तो ज़माना बदल जाएगा। तब तो लड़कियाँ एक गिलास पानी देने से पहले सौ ताने सुनाएगी। याद रखो बहू, मेरे तो भगवान ने एक ही बेटा दिया है लेकिन तुम्हारे पास तो दो-दो बेटे है। तुम्हारे पास भले ही अपनी अच्छी संतान के साथ रहने का विकल्प हो सकता है लेकिन नई पीढ़ी के साथ रहने के लिए तुम्हारे पास चुप्पी के अलावा कोई विकल्प नहीं रहेगा।”
आज सुहासिनी के जीवन पर यह बात पूरी तरह से लागू हो रही थी। वो तो बस अपने घर में सभी लोगों को खुश देखना चाहती थी और इसलिए वो तो बस अपनी बहुओं को घर के तौर तरीके समझाने की कोशिश कर रही थी जैसे कभी उसके सास ससुर किया करते थे लेकिन तब उनके पास कोई विकल्प नहीं छोड़ा गया और न आज उसके पास कोई विकल्प था।