वह सेवाभावी मासूम लड़का
वह सेवाभावी मासूम लड़का
यह एक सच्ची कहानी है
जब मैं उससे मिली शादी के बाद में पहली बार, पूरे कॉलोनी वाले उसको बावला पागल ऐसे कहकर चिढ़ाते थे।
वह थोड़ा सीधा साधा सा था, होगा कोई 15, 16 साल का दिमाग से थोड़ा कमजोर था।
इसीलिए सब उसको बहुत चिढ़ाते मगर वह फिर भी हंसता रहता था। बहुत मीठा बोलता उसमें लोगों की मदद करने की बहुत भावना थी।
वह हॉस्पिटल में चक्कर लगाता रहता। जिसको कुछ भी मदद की जरूरत होती कर देता । धीरे-धीरे उसको प्लास्टर लगाने में इंटरेस्ट आने लगा वह ऑर्थोपेडिक वार्ड में जाकर प्लास्टर लगाने वाले भाई को बहुत हेल्प करता कभी किसी के पट्टी लगानी होती तो उसमें मदद करता धीरे-धीरे उसको उसमें इतना मजा आने लगा कि वह इस में एक्सपर्ट हो गया।
वह तो सब सेवा भाव से कर रहा था और सब से इतना मीठा बोलता था तो वहां के जो डॉक्टर जो सुपरिंटेंडेंट थे उस विभाग के उन्होंने एक फोर्थ क्लास मददनिश के जैसे उसकी नौकरी पक्की कर दी।
अब तो उसको मजा ही आ गया हर महीने पैसे भी मिलने लगे और वह बहुत मेहनत से काम करने लगा।
कल हम उसी के बारे में बात कर रहे थे कि उसके बड़े भाई ने जो बहुत ही होशियार था जिस पर उसके मां-बाप को नाज था। उसकी मां बाप को बहुत तंग किया। और घर से निकालने लगा तब उसने ही अपने मां-बाप को संभाला जाते-जाते रिटायरमेंट से पहले डॉक्टर साहब बहुत अच्छा कर गए जो उसकी नौकरी पक्की कर गए।
मेरे को आज भी उसके वह भाभी सा शब्द कान में घुसते हैं ऐसा मीठा बोलता था भाभीसा, भाभीसा। अब तो हमने उदयपुर छोड़ दिया है पता नहीं वह लोग कैसे हैं कहां है।
मैं यह संस्मरण 1975 1976 का लिख रही हूं।