Kavita Sharma

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ऊंची इमारत

ऊंची इमारत

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बाप रे इत्ती ऊंची इमारत, इत्ती तो सपणे में भी न देखी कभी, रामचरण पहली बार आकाश छूने वाली इमारतों को देखकर अपने बेटे से बोला। उसका बेटा हां वो गांव में रहकर खेती-बाड़ी नहीं करना चाहता था मां बाप ने समझाया भी था कि खेती में आज के तौर-तरीकों से संबंधित पढ़ाई होती है वो पढ़कर नये साधनों से खेती में नये प्रयोग कर कुछ नया करा जा सकता है, पर उसे (संजीव) को मंजूर नहीं हुआ कि गांव में ही रहकर वो सारी जिंदगी बिता दे।

बस न चाहते हुए भी अपनी एकमात्र संतान की जिद के आगे रामचरण कुछ न कर सका। संजीव ने मेहनत जरूर की और पांच साल लगाकर सफल इंजीनियर बन गया। इन पांच सालों में बहुत कुछ बदल चुका था,  रामचरण की पत्नी उसे अकेला छोड़ गई थी, बेटा शहर में था, और किसी बड़ी कंपनी में नौकरी भी मिल चुकी थी । उसने बताया था कि अब उसने एक घर भी (फ्लैट) ले लिया है। घर में पूजा रखी थी तो इस बार बेटे को मना नहीं कर पाया और आज जब टैकसी से उतरकर बेटे ने ऊपर उंगली करते हुए बताया कि वो देखिए बीसवीं मंजिल पर अपना घर है। बाप रे बेसाख्ता उसके मुंह से निकला।और वो सोचने लगा अपने लहलहाते खुले भरे भरे खेतों के बारे में।


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