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Navneet Gupta

Abstract Inspirational

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Navneet Gupta

Abstract Inspirational

उष्मा

उष्मा

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रानी देख रही हो आज के/में हुसैनीवाला के इस पेड़ का स्वरूप! पंजाब के फ़िरोज़पुर के इस पेड़ की डालों ने , इस पेड़ की जड़ों ने क्या क्या नहीं देखा॥

कितने ही बसन्त निकले, कितने ही विषम पल की रातें गुजरी और कितने ही मानव जनित युद्ध , कत्ल देखे॥

सतलज में बरसाती बहाव में बह बह कर आने वाली लाशें क्या कम देखी॥

खुद को दो देशों में बंटते देखा कुछ साल पाकिस्तान का भी कहाया फिर अदला बदली में ६१ में वापिस अपने पुराने मूल वतन का कहलाया॥

सन ३१ में भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव के देश के लिये किये बलिदान में आत्माहुति के बाद उनकी अन्त्येष्टि की वीभत्स भावुकता भी देखी है इसने॥ बाद में वीर बटुकेश्वर को भी अपने वतन के लिये मिटे अपनी ही मिट्टी में समाते देखा॥ हर साल २३ मार्च को भीड़ के भावुक पल से सरोकार भी होता है, जब सब भीड़ के रेले आकर रोते हैं इनकी मज़ार पर॥

देखा तुमने रानी-कितने उतार चढ़ाव -टूटते-गर्वित करते पल देखे हैं इस पेड़ ने॥ इसकी आज की आकृति, झुकाव बताता है कितने सैलाबों से ये गुजरा है ये॥ उम्र के इस पड़ाव पर भी पूरा खोखला और जर्जर हो चुका है, फिर भी देखो , इसका ऊपर का छोर कितना पल्लवित है, आज भी जैसे वैसे डालें हैं. फल फूल रहीं हैं और तुम…….

छोटी सी बीमारी में जीवन छोड़ने की बात करती हो॥

…. उष्मा लो सूरज से

उष्मा लो इस पेड़ से…… इसने अच्छा कम-बुरा ज़्यादा सहा और झेला है॥

मूक रह कर अब भी समय की गति के साथ चल रहा है॥ कुछ बचा सूरज पर छोड़ दो… बड़ी उष्मा का वहीं श्रोत है॥


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