उजड़ा हुआ दयार ..कहानी श्रृंखल
उजड़ा हुआ दयार ..कहानी श्रृंखल
ज़िंदगी गणित है जहाँ मित्र जोड़े जाते हैं, दुश्मन घटाए जाते हैं, दुःख का भाग किया जाता है और खुशियों का गुणन होता है।एक समय था जब मन्त्र काम करते थे, उसके बाद एक समय आया जिसमें तन्त्र काम करने लगे। फिर समय आया जिसमें न मन्त्र, न तन्त्र बल्कि यंत्र काम करने लगे है। लेकिन इन सभी दौर में षड्यंत्र भी अपनी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे ...स्थिति यह हो चली है कि जब तक सत्य घर से बाहर निकलता है तब तक झूठ आधी दुनियां घूम लेता है। आज की दुनिया इसी पर टिकी हुई है और इसीलिए .....इसीलिए आज के दौर का आदमी टूटता रहता है ..दयार उजड़ते जा रहे हैं ...सामाजिक मूल्यों का स्खलन बढ़ने लगा है और लोग शार्टकट से सफलता की ऊंची ऊंची छलांगे लगाने लगे हैं।समीर और मीरा भी इसके अपवाद नहीं !
समीर की अपनी दुनिया थी और मीरा की अपनी। समीर को पुष्पा मिल गई थी और मीरा को नरेश .........नरेश श्रीवास्तव। ऐसा लग रहा था कि ऊपर वाले ने इन दोनों को मेड फार ईच अदर बनाया है और कुछ तकनीकी भूल के चलते जोडी बिछड़ गई हो !..तो क्या इस भूल का सुधार मैनुअल तरीके से सम्भव है ? शायद हाँ ...और शायद नहीं। यह तो समय ही बता सकेगा। वैसे कहा गया है ना कि नथिंग इज इम्पासिबिल।
रीयल लाइफ हो या रील लाइफ, कल्पना हो या यथार्थ परिदृश्य में नायक या नायिका होती हैं, खल नायक या खलनायिकाएं होती हैं अच्छे - बुरे लोग और परिस्थितियाँ होती हैं, पात्र होते हैं सुपात्र और कुपात्र भी होते हैं और जैसा बताया जा चुका है ज़िंदगी का गणित इन्हीं में उलझता सुलझता अपना दि एंड कर लेता है। समीर, उसके पिताजी, शर्मा जी, घरेलू नौकर बिनोद, प्रेम, गुलाब, बच्चू , सर्वेश,धीरा, बंगाली दादा के बेटे अनुराग मीरा, पुष्पा, नरेश, राहुल, सुशील, मनोहर या विशाल किसी की भी ज़िंदगी इन गलियारों से हुए बिना आगे नहीं बढ़ सकती है।
इस युगल के अपने अपने दयार के बनने से पहले ही उसके उजड़ने की दास्ताँ लिखी जा चुकी थी। मीरा के जीवन में नरेश तो समीर के जीवन में पुष्पा अपनी अपनी भूमिका सच्ची भावना के साथ निभाते जा रहे थे। नरेश स्त्री की दैहिक सुन्दरता का पारखी और चाहक था और उसे उम्मीद थी कि एक न एक दिन वह मीरा से वासनात्मक योगदान पा ही लेगा। कुछ इन्वेस्टमेंट थोड़ी देर में बड़ी रकम दे जाते हैं इसलिए इन्वेस्ट करने के लिए पारखी नज़र का होना आवश्यक है। इस नज़र का मालिक था नरेश श्रीवास्तव। उधर समीर को स्त्रियों के सेक्स अपील से मतलब था और वह यही चाहता था कि जिस स्त्री से उसका सम्पर्क हो वह उसकी किचन से बेडरूम तक की हर जरूरत पूरी कर दे ..बिना किसी चूँ चपड़ किये। यह हो पाना असम्भव था ......यह नहीं कहा जा सकता। कम से कम इन दोनों जोड़ियों के मामले में !
जंगल, ज़मीन और ज़िन्दगी का भी अजीब रिश्ता है। एक ओर जंगल कटते जा रहे हैं और उस पर निर्भर जीव जन्तु यहां तक कि इंसान भी इस दौर से विवश है वहीं दूसरी ओर ज़मीन भी अपनी उर्वरता खोती जा रही है। अपने देश की धरती अब सोना नहीं प्लास्टिक उगल रही है. रही ज़िन्दगी... तो उसके बारे में तो कुछ मत कहलवाइये... आपसे ज्यादा कौन जानता है! प्रकृति को छेड़कर अपने स्वार्थ के लिए वृक्षों को काटकर आप अपना ही नुकसान कर रहे हैं. बेचारे जंगल के जानवर दर दर भटक रहे हैं।
समीर का अमेरिका प्रवास अब खत्म होने को आ रहा था। वह इस भरपूर कोशिश में था कि उसका प्रोजेक्ट और ज्यादा खिंचे जिससे वह अपनी गर्ल फ्रेंड पुष्पा के साथ कुछ महीनों की उन्मुक्त ज़िंदगी जी सके। उधर मीरा का भी बी.एड. का इम्तहान होने वाला था। इम्तहान होते ही उसकी योजना अपने नीड़ में लौटने की थी। उसे भी अब नरेश का साहचर्य अच्छा बहुत अच्छा लगने लगा था। एक शाम तो प्रैक्टिकल वाले दिन वह और नरेश आपस में बातें करते करते आलिंगनबद्ध हो गए। पुष्पा का तन मन रोमांचित हो उठा। उसने इस छुअन का एक अलग ही अनुभव किया। ऐसी छुअन जिससे शरीर रूपी सितार के तार झनझना उठे हों !और आलिंगन में तो वह मन्त्रमुग्धता की अवस्था में आ गई। उसे नरेश के साथ जल्दी से जल्दी हमबिस्तर होने की तलब लग गई। क्या यह सुयोग उनके जीवन में आ सकेगा ?
(क्रमशः)