उदय भाग ७

उदय भाग ७

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देवांशी घर पर पहुंची तब तक सोचती रही फिर उसे याद आ गया ये जाने माने मनोचिकित्सक डॉ पल्लव ओझा। उनकी लिखी हूँई किताब में उनकी फोटो देखी थी और वो किताब रेफेरेंस के लिए काफी बार ली थी लाइब्रेरी से, वो सोच में पड़ गई कि इतना बड़ा मनोचिकित्सक यहाँ मजदूरी क्यों कर रहा है। जाने क्या मज़बूरी है कल बात करती हूँ उनसे। सुनैना ने देवांशी को चुप चुप देखकर उससे पूछा क्या हुआ देवी वैसे तो हमेशा मजाक मस्ती करती रहती हो आज गुमसुम क्यों हो इधर इस बार अच्छा नहीं लगा क्या या किसी की याद सता रही है ?

देवांशी ने जवाब दिया कि नहीं भाभी ऐसी कोई बात नहीं है। मैं दरअसल सोच रही थी मेरे प्रोजेक्ट के बारे में, जिसमें किसी अनजान व्यक्ति का मनोविश्लेषण करना है। वैसे पहले सोचा की हरिकाका का मनोविश्लेषण करूँ लेकिन उन्हें तो मैं पहले से जानती हूँ, फिर मैंने सोचा की क्यों न नटु का मनोविश्लेषण करूँ वैसे मुझे वो आदमी दिलचस्प लगा आप क्या कहती हो ?

सुनैना ने कहा ठीक है देवीजी बाबा से बात करके बताती हूँ, रात के खाने के वक़्त सुनैना ने बाबा से बात करके उनकी रजामंदी ले ली और देवांशी से कहा की बाबा ने हां तो कर दी है लेकिन साथ में कहा है की वो दुखी न हो इस बात का ख्याल रखना। देवांशी ने कहा ठीक है भाभी मै ख्याल रखूंगी फिर सोचने लगी की कल बात करती हूँ उनसे जहाँ तक मुझे याद है वो शायद जेल में भी गए थे बलात्कार के आरोप में।

इस तरफ नटु को भी नींद नहीं आ रही थी वो सोच रहा था की क्या उस लड़की ने उसे पहचान लिया होगा क्या उसने उसकी कोई किताब पढ़ी होगी, जिसमें उसकी फोटो भी थी। उसने भगवान् से प्रार्थना की की वो उसे पहचान न पाए। ये शांत जिंदगी उसे रास आ गयी थी। शहर से दूर भीड़भाड़ से दूर अच्छा लग रहा था उसे यहाँ। फिर वह खाट से उठा और खेत का चक्कर लगाया और फिर खाट पे आकर लेट गया। खेत के किनारे पर पेड़ भी उससे बात करते हो वैसा लगता था फिर वह का एक कुत्ता जिसे वो कालू नाम से बुलाता था वो भी उसका दोस्त बन गया था वो उसकी खटिया के नीचे ही सो जाता था और जब नटु काम करके बैठा होता था तो वो उससे खेलता रहता था लेकिन काफी बार नटु को ऐसा लगता था की जब वो रात को सोता है तो कालू उसे घूरता रहता उसकी खटिया के चक्कर लगाता था जैसे चौकीदारी कर रहा हो।


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