उदय भाग २६

उदय भाग २६

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और इस तरफ असीमानंद ने उदय को पूरी ताकत से उछाला था वो बहुत दूर तक हवा में रहा ।

उदय ने आँखे मूँद ली थी उसे अपना निश्चित अंत दिखाई दे रहा था लेकिन जब वह पानी के नजदीक पंहुचा तो वो पानी में गिरा नहीं । उदय ने आँखे खोलकर देखा तो एक सुनहरी प्रकाश की किरण ने उसे बांध रखा था फिर उस किरण ने उसे किनारे की तरफ खींचना शुरू किया । रास्ते कुछ जलचरो ने कूदकर उसे पकड़ने की कोशिश की लेकिन नाकामयाब रहे । फिर जब वह किनारे पर पंहुचा तो खुद को बचानेवाले को देखने की कोशिश की लेकिन उससे पहले ही किसी को पहचान पाए वो बेहोश हो गया । एक साये ने उसे कंधे पर उठाया और दूर खड़ी एक गाड़ी में डालकर गाड़ी को वह से तेजी से ले गया ।

दूसरे दिन जब उदय की आँख खुली तो खुद को कटंकनाथ के आश्रम में पाया उसकी बगल में रारामूरिनाथ भी खड़ा था । उदय ने पूछा मुझे किसने बचाया ? इतनी तालीम के बाद भी मै जिस आसानी से असीमानंद से हरा इस बात पर मुझे शर्म आ रही है । मै शायद वह नहीं हूँ जिसकी आपको खोज है मैं तो एक निहायत कमजोर इंसान हूँ । कटंकनाथ ने उदय के कंधे पर हाथ रखा और कहा आपको निराश होने की जरुरत नहीं है वैसे भी असीमानंद जब पानी में या पानी के नजदीक खड़ा हो तो उसे हराया नहीं जा सकता उसको पानी से शक्ति मिलती है । तुम्हारी ताकत अभी सिमित है और असीमानंद असीमित शक्तिओ का मालिक है । जो हुआ वह आपके कर्म और नियति के आधार पर हुआ उसके लिए खेद मत करो ।जब समय आएगा तब तुम ही उसे हराओगे और यह सिर्फ मेरा ही नहीं बाबा भभूतनाथ का भी मानना है । तुमको और मेहनत करने की जरुरत है , रोजाना योगाभ्यास और कसरत करने से तुम्हारी ताकत बढ़ेगी और तुम सफलता की और बढ़ जाओगे । लेकिन एक बात जरूर बताऊंगा की भावनाओ में बहकर लिए हुए निर्णय सही नहीं होते । प्रेम की ताकत को मैं भी मानता हूँ लेकिन प्रेम हमसे दुस्साहस करवाता है जैसा की तुमने किया । तुम हार भी गए और औजार भी नहीं मिला ।

खैर बाबा भभूतनाथ ने तुम्हे भविष्यकाल में वापस बुलाया है तो तुम रारामूरिनाथ के साथ वापस जाओ और वह असीमानंद से सामना करके उसे हराओ ।

उदय और रारामूरिनाथ भूतकाल से अपने वर्तमानकाल की सफर पर निकले । काफी घुमावदार सफर रहा पहले वह उदय को चार दिन पीछे ले गया जब चौथे परिमाण का द्वार खुला था वहाँ से चौथे परिमाण में गए और फिर भविष्य के यानि की अपने वर्तमान के सफर पर जब वो वर्तमान में पहुंचे तो सूर्य उसके सर पर पंहुचा हुआ था । भभूतनाथ को मिलने पहुंचे तो वो समाधी में थे उदय ने कुछ देर राह देखने उचित समझा । समाधी में से बहार आने के बाद वो उदय से मिले ।

उन्होंने कहा दाद देता हु तुम्हारी हिम्मत की ऐसा करने की कोशिश तो मैं भी नहीं करता । हार कर्म का फल मिश्रित होता है । उसमे कुछ फायदा होता है तो कुछ नुक्सान भी है । तीसरे परिमाण में तुमने किये हुए कर्म से नुक्सान ये हुआ की रावण का औजार असीमानंद के पास चला गया लेकिन उसका फायदा ये हुआ की रोनक और उसका परिवार बच गया ।

कोई बात नहीं , मेरी जानकारी के हिसाब से अपने पास तीन दिन का वक़्त है मैं जैसा कहता हूँ वैसा करने से वो औजार उनके किसी काम का नहीं नहीं रहेगा ।


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