उदय भाग १७
उदय भाग १७
रारामुरिनाथ ने पल्लव को दौड़ने को कहा। थोड़ा ही दौड़ने के बाद पल्लव थक गया। रारामुरिनाथ ने कहा की तुम्हारा दौड़ने का तरीका ठीक नहीं है इसलिए तुम थक जाते हो, शरीर को आगे की तरफ झुकाके मत दौड़ो, तुम्हारे शरीर को जो दो हिस्सों में बाटती है उस रेखा का संतुलन बिघड जाता है तो इसलिए शरीर को आगे की तरफ झुकाके नहीं शरीर को सीधा रखकर दौड़ो इससे तुम जल्दी थकोगे नहीं और शरीर पेंडुलम की तरह काम करेगा। पल्लव ने बताये हुए तरीके से दौड़ना शुरू किया थोड़ी देर में उसे एहसास हुआ की इससे थकन काम हो रही थी, वो घंटो तक आश्रम के आगे के मैदान में दौड़ता रहा फिर उसपे थकन हावी होने लगी तो उसे आराम करने के लिए कहा।फिर वह अपनी कुटीर में चला गया और फलो का रास पीकर सो गया।
आठ - दस घंटे सोने के बाद वह जब उठा तो नहाने के लिए तालाब पर चला गया। नहाकर वो ताजा होकर फिर सर्वेश्वरनाथ के आगे हाजिर हो गया दिन तो मनो वही रुका था जब वह सोया था लेकिन अब उसे इस बात का आश्चर्य नहीं हो रहा था। सर्वेश्वर नाथ ने उसे फिर से श्वसन नियंत्रण और दौड़ने का अभ्यास करने कहा और कहा कि ये प्रक्रिया पांच से छह बार पूर्ण कर लोगे तब आपको किसी शास्त्र को चलने की तालीम दी जाएगी। अब उसे एक ही काम था श्वसन नियंत्रण और दौड़ना और फिर सो जाना फिर जागना और अभ्यास दोहराना। यही क्रिया जब वह चौथी बार दोहरा रहा था तब उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ की लगातार १४ घंटे दौड़ने के बाद भी उसे जरा सी भी थकान नहीं हुई थी यह श्वसन नियंत्रण और सही तरीके से दौड़ने की वजह से हुआ था।छठी बार जब वह दौड़ने लगा तो वह लगातार २४ घंटो से दौड़ रहा था और थकान नाम मात्र की। तब सर्वेश्वरनाथ उसके नजदीक आये और उससे कहा की अब आप थोड़ा आराम कर ले फिर आपो हथियार चलना सिखाया जायेगा, हर हथियार चलाने की शिक्षा अलग अलग गुरु देंगे। जैसे की तलवार चलाना रुद्रनाथ सिखाएंगे, भैरवनाथ त्रिशूल चलाना सिखाएंगे, शिननाथ आपको लाठी चलाना और जिमीनाथ आपको कुश्ती के दाँव पेच सिखाएंगे।
पल्लव का यह सत्र काफी लम्बा चला। उसे शुरुआत में कुछ दिक्कतें आयी लेकिन धीरे धीरे हर युद्धकला में प्रवीण हो गया। यह सब प्रशिक्षण लेते लेते उसके चार दिन गुजर गए। पल्लव ने सोचा की यहाँ तो सिर्फ चार दिन हुए लेकिन वह तीसरे परिमाण में तो चार महीने गुजर गए होने अब तो वह ठण्ड का मौसम आ गया होगा।
युद्धविद्या के बाद उसे नृत्यकला और गायनकला का और अलग अलग भाषाओ का प्रशिक्षण दिया गया। सब तरह की विद्याओं का अभ्यास और प्रशिक्षण में उसे तीस दिन निकल गये और उसे पता भी नहीं चला।अब उसका शरीर सुगठित हो गया था और बड़ी दाढ़ी उसके चेहरे पर फब्ती थी पहली नजर में उसका जानकर शायद पहचान भी न पाए ऐसा हो गया था।उसकी तरह तरह की परीक्षाए भी हुई जिसमे वह सफल रहा, अब उसे दुनिया की हर भाषा का ज्ञान, तरह तरह की युद्धकला, गायनकला, नृत्यकला में प्रवीण हो गया था।
अब वह उसे सब उदयनाथ नाम से बुलाते थे।
एक दिन बाबा भभूतनाथ ने उसे बुलावा भेजा और उसे कहा उदयनाथ अब तुम्हे एक जरुरी काम करना है। तुम्हे समय में पीछे जाकर एक हथियार लाना है जो की हरिकाका के बेटे रोनक के पास होगा। तुम्हे मै उसी समय में पंहुचा दूंगा जब तुम चतुर्थ परिमाण में आये थे। तुम जब वह पूछोगे उसके चार दिन बाद रोनक वह आनेवाला है उसके पास एक हथियार है जो की रावण का है जिसकी मदद से वह चतुर्थ परिमाण में आया था। उस हथियार को तुम बीच रस्ते में ही उड़ा लोगे क्योंकि अगर वह असीमनाथ के हाथ लग गया तो उसे रोकना मुश्किल हो जायेगा।