उदय भाग १६

उदय भाग १६

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पल्लव के पहूँंचने के बाद ध्यान में बैठे हूँए भभूतनाथ ने आँखे खोली और हंसकर पूछा देख लिया अपनी ताकत का नमूना। लेकिन यहाँ पर प्रकृति को नुकसान पहुँचने की मनाई है। तुम यहाँ पर नए हो इसलिए माफ़ किया जा रहा है, प्रकृति ने हमारे लिए हर चीज़ के व्यवस्था की है, यहाँ पर किसी तरह के बांध, तालाब या रास्ते नहीं बनाये है यहाँ पर जो भी है प्राकृतिक है। यहाँ तक की फल को भी पेड़ पे से नहीं तोडा जाता है वो पेड़ से अपने आप गिरने के बाद लेते है।

अब से तुम्हारी तालीम शुरू हो रही है, तुम्हारा शरीर पाचवे परिमाण में है लेकिन वह पर जाने के लिए भी और पाने के लिए तुम्हारे इस शरीर को मजबूत बनाना पड़ेगा। तुम्हारी तालीम सर्वेश्वरनाथ की देखरेख में होगी और अंत में मैंं परीक्षा लूंगा।

थोड़ी देर के बाद में पल्लव सर्वेश्वरनाथ के साथ में एक वटवृक्ष के निचे बैठा था। सर्वेश्वरनाथ ने कहा सर्वप्रथम हम श्वास नियंत्रण से शुरू करेंगे मैंं देख रहा हूँ के आपका अपने श्वास पे नियंत्रण नहीं है, जब की होना ये चाहिए की दो श्वासो के बीच में समान अंतर हो ऐसा करने से आपके फेफड़ों का तालमेल बढ़ेगा और शरीर मजबूत होगा। इसलिए आप आँखे बंद करके अपने श्वास पे ध्यान दीजिये यह भी ध्यान दीजिये की आपके दो श्वास में कितना अंतर है, अगर समान नहीं है तो अंतर समान करने की कोशिश कीजिये। जो भी श्वास ले वह गहरे और समान अंतर के हो। आपका प्रशिक्षण अभी से शुरू हो रहा है मैंं अभी तो आपको पल्लव नाम से बुलाऊंगा अगर आप पूरी तरह से प्रशिक्षित हो जायेंगे तब आपको उदय नाम मिलेगा और अगर आप ने आपका पुराण शरीर प्राप्त कर लिया तो आप बन जायेंगे उदयशंकरनाथ - एक दिव्यपुरुष।

पल्लव सोचने लगा की यह कैसा प्रशिक्षण श्वसन नियंत्रण ये तो मेरे बाए हाथ का खेल है योगासनों में तो मेरी मास्टरी थी चलो इसे भी दिखा देते है अपनी जादूगरी।

जैसे ही पल्लव ने आँखे बंद की और श्वास की और ध्यान देने गया उसके दिमाग में हजारो विचार घुमड़ने लगे कभी शोभा तो कभी देवांशी कभी हरिकाका, कभी रामा, कभी रोनक पटेल तो कभी असीमानंद तो कभी इंस्पेक्टर मंसूरी, विचारो का चक्र थम ही नहीं रहा था। वो सोचने पर मजबूर हो गया के सही कहा था सर्वेश्वरनाथ ने यह सब इतना आसान भी नहीं है काफी कोशिश की लेकिन वह श्वसन पे ध्यान नहीं दे पाया उसने आँखे खोल दी तो सामने सर्वेश्वरनाथ को मुस्कुराते हूँए पाया। उसने कहा की हर आसान दिखनेवाली चीज़ आसान नहीं होती और मनमे अहंकार हो तो कभी नहीं मन को रिक्त करो आप बिलकुल बच्चे बनकर सीखना शुरू करो, लिखे हूँए पन्नो पर कुछ नहीं लिखा जाता पहले पन्नो को कोरे कीजिये। आप फिर से प्रयत्न कीजिये मैंं थोड़ी देर में आता हूँ ऐसा कहकर वह से चले गए। पल्लव को अपने अहंकार के लिए अफ़सोस हूँआ उसने सोचा की यह में कैसे करू फिर जैसे उसके मनमे प्रकाश हूँआ वह सोचने लगा की मैंं कोई नहीं हूँ मेरा कोई नहीं है मैंं अभी इस दुनिया में आया हूँ और अभी काफी बाते सीखनी है ऐसा करके फिर से आँखे बंद की और श्वासो पर ध्यान दिया हूँए उसे लगा की सही में वह गलत तरीके से श्वास लेता है। फिर ६ घंटो के बाद वह ठीक से श्वासो को नियंत्रण में ले पाया।जब सर्वेश्वरनाथ आये तो उन्होंने देखा की पल्लव अब सही तरीके से सांस ले रहे है फिर वह बोले के आपको यह जारी रखना है। और आपके दौड़ने की तालीम रारामुरनाथ देंगे।

थोड़ी देर के बाद एक व्यक्ति उसे वहां आता दिखाई दीया उसने बताया की वह मैंक्सिको का रहनेवाला है तो पल्लव के आश्चर्य का ठिकाना न रहा वह बोला एक मैंक्सिकन व्यक्ति के नाम में नाथ ? रारामुरनाथ ने कहा कैसे हो पल्लवजी ? मैं आपको दौड़ने का प्रशिक्षण दूंगा। पल्लव ने पूछा आप इतनी अच्छी हिंदी कैसे बोल पाते हो ? उसने बताया यहाँ चतुर्थ परिमाण में हमें हर भाषा बोलने और लिखने की ट्रेनिंग दी जाती है, हमें तो पशु पक्षिओ की भाषा भी आती है। तीसरे परिमाण में किसी व्यक्ति तो तभी प्रवेश मिलता है जब वह अपने स्तर से ऊपर उठता है। मेरा जन्म आज से ५०० साल पहले रारामुरि कबीले में हूँआ था, हमारा कबीले के लोग ज्यादा दूर तक दौड़ने के लिए मशहूर है। मैं बहूँत काबिल दौड़वीर था एक बार मैं अपने सरदार के साथ किसी और कबीले के सरदार से मिलने गया था तो एक रात झोपडी में सोया था तो मेरी नींद खुली और एक दरवाजा खुला और मैं यहाँ पहूँंचा शुरुआत में मुझे किसी भी विश्वास नहीं हूँआ लेकिन फिर धीरे धीरे विश्वास हूँआ और अब मैं यहाँ पर हूँ। पहले मुझे भी अलग अलग तरह के प्रशिक्षण दिए गए और अब मैं यहाँ पर दौड़ने का प्रशिक्षण देता हूँ। मेरा सही नाम तो मुझे अब याद भी नहीं है यहाँ मैंंने अपना नाम मेरे कबीले से रखा रारामूरिनाथ।


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