उदय भाग १५

उदय भाग १५

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पल्लव खाना खाने बैठा उसने देखा की पत्तल में एक भाजी, थोड़े चावल और बाजु में थोड़े से फल थे। उसे इस तरह के खाने की आदत न थी उसने भाजी को चखकर देखा उसमे किसी तरह का स्वाद नहीं था उसने सर्वेश्वरनाथ से पूछा ये किस तरह का खाना है इसमें किसी भी तरह का स्वाद नहीं है। सर्वेश्वरनाथ ने कहा की आप तीसरे परिमाण से आये है इसलिए आपको ये सब दिया जा रहा है बाकि यहाँ पर बाकि सब लोग ज्यादातर फलो का रस या अमृत पीते है। बाकि भोजन शरीर के स्वास्थ के लिए न की स्वाद के लिए। पल्लव अमृत नाम सुनकर चौक उठा बोला अमृत मतलब पुराणों में अमर रहने के लिए देवताओ का पेय कहा जाता है वो। सर्वेश्वरनाथ जोर जोर से हॅसने लगा उसने कहा तुम्हारे तीसरे परिमाण के मिथक ? नहीं वैसे सब गलत नहीं है लेकिन लोक आसानी से समझ पाए इसलिए दिव्यशक्ति और महाशक्ति को अलग अलग नाम और आकर दिए गए। वैसे शक्ति का कोई आकार नहीं है लेकिन तीसरे परिमाण में उसे अलग अलग नाम से जाना जाता है। तीसरे परिमाण में रहती हुई मानवजाति भी काफी कल्पनाशील है उसने अलग अलग धर्म और पंथ बनाये कोई शक्ति को भगवान् कहता है कोई अल्लाह तो कोई गॉड कहता है। हर धर्म शक्ति की पूजा अलग अलग तरह से करता है और एक दूसरे से लड़ता रहता है और मनुष्य शक्तिशाली बनने के लिए इसका उपयोग करता है।

और तुम जिन पुराणों के अमृत की बात कर रहे हो उसका और इधर के अमृत का कोई समबन्ध नहीं है। हम जिसे अमृत कहते है वह अलग अलग फल और कांड के उपयोग करके बनाया हुआ पेय जो की शरीर की अशुद्धिओ को दूर करता है। तुम जब आये तो तुम्हे सांस लेने में कुछ तकलीफ हुई होगी और शायद थोड़े चक्कर भी आये होंगे वो इसलिए की यहाँ तीसरे परिमाण के अनुपात में कम प्राणवायु है। तीसरे परिमाण में प्राणवायु ज्यादा होने की वजह से शरीर में कोशिकाए जल्दी बढ़ती भी और जल्दी मर भी जाती है इसलिए तीसरे परिमाण में लोग जल्दी बूढ़े हो जाते है। यहाँ पर प्राणवायु कम है इसलिए कोशिकाओं की उम्र भी ज्यादा है इसलिए जल्दी बूढ़े भी नहीं होते। तुम जब आये तो तुम्हारी जिस कुटीर में रहने की व्यवस्था थी उसमे प्राणवायु तीसरे परिमाण जितना ही था तुम्हारे सोने के बाद उसे धीरे धीरे घटाया गया जिससे तुम जब नींद से जगे तब तुम्हारा शरीरने इधर के प्राणवायु से संतुलन बना लिया। अभी लेकिन पूर्ण संतुलन के लिए थोड़ा और समय लगेगा लगभग दो दिन यानि की तीसरे परिमाण के हिसाब से २ महीने।

पल्लव सोचने लगा की यहाँ पर आये हुए काफी समय हो गया है। क्या हरिकाका, रामा और बाकि सब ढूंढ रहे होंगे या फिर जैसे समय जायेगा मै भी उनके लिए बाबा भभूतनाथ की तरह कहानी बन जाऊंगा। खाना खाकर पल्लव लेट गया और सोचने लगा की जीवन भी कितना अनिश्चित होता है कुछ समय पहले जेल में था फिर खेत में मजदूरी कर रहा था जब सोचा की अब यहाँ आराम से रहूँगा तो यहाँ पहुंच गया। देवांशी का उससे मिलना तो उसे अब बरसो पुरानी घटना लगने लगी थी, पता नहीं जीवन उसके लिए क्या क्या आश्चर्य छुपाये हुए है।

वह जब उठा तो उसने घडी में देखा की दस घंटे तक सोया रहा था लेकिन अभी भी सुबह ही हो रही थी अगर उसे घडी पहनने की आदत नहीं होता तो उसे विश्वास ही नहीं होता उसे लगता की सिर्फ पांच मिनट सोया या पिछले २४ घंटे से सो रहा है। उसे यह बात तो सत्य प्रतीत हुई की यहाँ पर समय काफी धीमा है फिर उसने सोचा की देखता हु की ताकत ३० गुना बढ़ी की नहीं। अपनी ताकत का परिक्षण करने वह एक वृक्ष के पास गया और उसके तने में एक मुक्का मारा तो वह ये देखकर दंग रह गया की पेड़ जड़ से उखड गया था।

उतने में उसे दूर से सर्वेश्वरनाथ आता हुआ प्रतीत हु उसने नजदीक आकर कहा की इस तरह किसी भी प्रकृति का नुकसान करने की इजाजत नहीं है आइंदा याद रहे, गुरूजी तुम्हें बुला रहे हैं।


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