उदय भाग १४

उदय भाग १४

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पल्लवन पूछा आपने कहा था की मुझसे कुछ गलती हो गई थी वो क्या थी ?

भभूतनाथ ने आगे बताया हम दिव्यपुरुष है और हमारा काम महाशक्ति के आदेश को मानना और उनके कार्य को अंजाम देना है। हम अपने कर्म से बंधे है और हमें पंचेन्द्रियों को काबू करने की तालीम दी गई है वो भी ३०० साल तक। हमें किसी भी हाल में बहकने की इजाजत नहीं है लेकिन विएतनाम में तुम एक स्त्री की तरफ आकर्षित हूँए थे और सम्बन्ध बनाया जिससे तुम्हारी ताकत का ह्रास हुआ इसी वजह से असीमनाथ तुम्हारे शरीर का नाश कर पाया। लेकिन तुम्हारी वासना अधूरी न रह जाये इसलिए मैंने तुम्हारे साथ उस स्त्री का भी पुनर्जन्म कर्तव्य जो की नियमो की गंभीर अवहेलना थी इसलिए मुझे सजा हूँई लेकिन जब तुम मुझे मिलो तब तुम्हारी कोई वासना बाकि न रहे ये सोचकर मैंने यह काम किया था।

पल्लव ने पूछा की अभी असीमनाथ कहा है ? और तीसरे परिमाण में बाबा कटंकनाथ मिले थे वो कौन थे ? बाबा ने बताया की असीमनाथ अभी तीसरे परिमाण में है और वह वह असीमानंद नाम से जाना जाता है और अभी वह चौथे परिमाण में प्रवेश करने का मार्ग ढूंढ रहा है और वो भी काली साधना के माध्यम से। वह काली शक्तिओ को बलि चढ़कर प्रसन्न कर रहा है और अगर वह चौथे परिमाण में पहूँँच गया तो उसकी शक्ति फिर से बढ़ जाएगी इसलिए उसे रोकना जरुरी है।

चौथे परिमाण में प्रवेश करने के सात मार्ग है एक तो वह है जिस रस्ते से तुम आये हो वह    से कर्कवृत्त के रेखा जाती है, दूसरा द्वार काशी में, तीसरा द्वार जर्मनी नामक देश में, चौथ द्वार ब्राज़ील नामक देश में, पांचवा ऑस्ट्रेलिआ, छठा युगांडा और सातवा अमरीका नामक देश में है। वैसे यह सब नाम अभी के हिसाब से बता रहा हूँ वैसे इन देशो के नाम पहले कुछ अलग थे। एक और प्रवेशद्वार द्वार है जो की महाशक्तिओ के काबू नहीं है जिसे राजा रावण ने बनाया था उसने चौथे परिमाण में प्रवेश कर लिया था और यहाँ की पवित्र झील का पानी पिया था जिसकी वजह से उसकी ताकत अनेकगुना बढ़ गई थी उसने पाचवे परिमाण में प्रवेश करने की लिए एक द्वार बनाना शुरू कर दिया था लेकिन इससे पहले हमने उसे तीसरे परिमाण में वापस पंहूँचा दिया था। असीमनाथ का इरादा रावण द्वारा निर्मित द्वार से चौथे परिमाण में प्रवेश करना और उसने अधूरा रखा हुआ पांचवें प्रवेशद्वार निर्माण कार्य पूर्ण करना है और हमारा कार्य है महाशक्ति को प्रसन्न करके पांचवें परिमाण में प्रवेश करके तुम्हारा मूल शरीर पाना, अपने बाकि सात दिव्यपुरुषोको छुड़ाना और असीमनाथ को रोकना।

पल्लव को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था की यह सब सत्य है उसे लग रहा था की या तो ये सपना है या कोई माया।

भभूतनाथ ने कहा की मई तुम्हारी आँखों में अविश्वास देख रहा हूँ। तुम थोड़ा भोजन करो और आराम करो अभी तुम्हारा शरीर चतुर्थ परिमाण का आदि नहीं हुआ है। कल से तुम्हारी तालीम शुरू होगी, मन में शंका मत रखो मुझ पर विश्वास करो। पल्लव उठकर अपनी कुटीर की तरफ गया उसके निकलते ही भभूतनाथ के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई वो मन ही मन बोले इस बार शायद मेरा कार्य पूर्ण हो।


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