उदय भाग १0

उदय भाग १0

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हप्ता भर रहकर सुनैना और देवांशी मुंबई चले गए, जब तक देवांशी गांव में रही तब तक रोज नटु को मिलती रही और घंटो तक बातें करती, बहुत से केसेस और अपने अनुभव नटु ने शेर किये। देवांशी के जाने के बाद नटु दो तीन दिन तक उसकी यादो में खोया रहा उसके साथ बिताये पल याद करता रहा लेकिन फिर उसके मन ने कहा की शोभा के साथ बेवफाई नहीं करनी है।

बरसात का मौसम शुरू हो गया था, जब आसमान में बादल दिखे तो गांव में जश्न मन सब तरफ ख़ुशी की लहर दौड़ गई। वैसे तो हवामान विभाग ने देरी से बारिश की संभावना व्यक्त की थी लेकिन बारिश समय पर शुरू हुई इसे बहुत से लोगो ने नटु के भाग्यशाली कदमों का परिणाम समझा लेकिन बारिश शुरू होने से नटु की बादशाही पर गाज गिरी खेत के बाजु में खटिया डालकर आसमान में तारे गिनते सोना बंद हो गया उसे न चाहते हुए भी उस कमरे में सोना पड़ा पहले उसने रामा को मनाने की कोशिश की की वह उसके साथ कमरे में सोये लेकिन वो बोला मैं अपने घर जाकर सोऊंगा। पहले एक दो दिन डरते डरते गुजरे लेकिन एक दो दिन बाद उसके मन का डर निकल गया।

एक दिन रात में बाहर बहुत तेज बारिश हो रही थी और आधी रात को नटु की आँख खुली तो उसे कमरे में एक प्रकाश का स्रोत दिखाई दिया जो की एक गोलाकार दरवाजे में से आ रहा था नटु डर गया उसने कमरे के दरवाजे की तरफ बढ़ने की कोशिश की लेकिन उसके कदमो ने उसका साथ न दिया, उसने हनुमान चालीसा का पाठ शुरू कर दिया।

आधे घंटे तक वो अपनी जगह पर बैठा रहा लेकिन आधे घंटे के बाद उसके डर ने उत्सुकता का रूप धारण कर लिया एक बार देखु के उस दरवाजे के पार क्या है, लेकिन कुछ गड़बड़ हुई तो ये सोचकर कमरे के दरवाजे के पास गया लेकिन कमरे का दरवाजा खुला नहीं तो वो वापस प्रकाशित दरवाजे के तरफ गया, जैसे ही नजदीक गया उसने कुछ खिचाव महसूस किया और वो उस प्रकाशित दरवाजे की पार निकल गया। पार निकलने के बाद अपने आप को एक पहाड़ी के तली में पाया वह नजदीक में एक सरोवर था जिसमे कमल खिले हुए थे एक दो हंस भी तैर रहे थे नटु सोच में पड़ गया के नमालूम ये कौनसी जगह है वह से थोड़ा आगे जाने के बाद उसे खूबसूरत पेड़ पौधे और पंछीओ का शोरगुल सुनाई दिया, ठंडी हवा चल रही थी लेकिन बारिश नहीं हो रही थी फूलो के सुंगंध से वो तरोताजा हो गया। जब वह कोई इंसान नहीं दिखा तो उसने वापस लौटने का फैसला लिया जब वापस पहाड़ी की तलहटी में पंहुचा तो उसने दरवाजे को गायब पाया वो वही पर बैठ गया एक दो घंटे बैठने के बाद भी जब प्रकशित द्वार नहीं दिखा तो आगे बढ़कर किसी इंसान को ढूंढने का सोचा।

आगे पहुंचने के बाद उसने देखा की वह जंगल है अब उसके मन में डर की मात्रा बढ़ गई की कही कोई जंगली जानवर मिल न जाये उसने पास पड़ी एक डाली उठा ली की शायद काम में आ जाये वैसे उसे पता था की इसका कोई उपयोग नहीं है लेकिन डूबते को तिनके का सहारा। जब जंगल पार कर लिया तो उसने राहत की सांस ली उसे दूर कही धुआँ उठता हुआ दिखाई दिया तो उसने दौड़ लगा दी की शायद कोई मिले तो गांव का रास्ता ही पूछ लूँ।

थोड़ी देर बाद जब नटु धुए के नजदीक पंहुचा तो दिखा की वह एक आश्रम था। वो जैसे ही फाटक के नजदीक पंहुचा तो एक नौजवान साधु उसकी तरफ आता हुआ दिखाई दिया उसने नटु का स्वागत किया और कहा डॉ पल्लव आपका स्वागत है बाबा भभूतनाथ के आश्रम में, आप की राह देखि जा रही थी वैसे आपको आने में थोड़ी देर हो गई। आप कुछ जलपान कर लीजिये बाबा भभूतनाथ आप को कुछ देर बाद में मिलेंगे अगर आप चाहे तो उस कुटिया में आराम कर सकते है। नटु ने पूछा ये जगह कौनसी है ? जवान साधु ने कहा मेरा नाम सर्वेश्वरनाथ है और आपके हर सवाल का जवाब बाबा भभूतनाथ देंगे।नटु ने कहा ये कैसे हो सकता है वो तो कई साल पहले गुजर गए है ? सर्वेश्वरनाथ ने अपना जवाब दोहरा दिया आपका समाधान सिर्फ बाबा करेंगे।

नटु मन मसोसकर रह गया उसने कुए पर जाकर हाथ पाव धोए और कुछ नास्ता किया और कुटिया में बिछी घास की चटाई पर फ़ैल गया, उसकी आँख तुरंत लग गई और वो गहरी सुकूनभरी नींद में खो गया। जब जगा तो तो उसने अपनी कलाई में बंधी घड़ी में देखा तो ११ बज रहे थे, वो कुटिया से बहार आया तो उसने देखा की जब वो आया था वैसा ही था सुबह का अंधकार। उसने देखा की सामने से सर्वेश्वरनाथ आ रहा था वो उसे एक कुटिया की तरफ ले गया वह अंदर जाकर देखा की एक साधु पद्मासन की मुद्रा में बैठा है।

बाबा भभूतनाथ भव्य कपाल, तेजस्वी आँखे, काली लहराती हुई दाढ़ी, मजबूत भुजाए, टेकने के लिए दंड और एक कोने में देखा एक त्रिशूल, तलवार और गदा रखी है। बाबा ने हसकर कहा तुम्हारा स्वागत है,पल्लव। वैसे किस नाम से तुम्हे बुलाऊ नटु, पल्लव या फिर उदयशंकरनाथ ?

नटु ने कहा ये जगह कौनसी है बाबा ? नटु और पल्लव दोनों मेरे नाम है लेकिन यह उदयशंकरनाथ कौन है ?

बाबा ने कहा ये जगह जय चतुर्थ परिमाण या तुम जिस भाषा में समझते हो उसमे कहूँ तो फोर्थ डाइमेंशन।


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