उदय भाग १
उदय भाग १
यह गर्मी का दिन था। कुछ लोगों को छोड़कर सारे घर में आराम फरमा रहे थे पंछिओं ने भी उड़ना छोड़ दिया था और पेड़ पर बैठकर छांव का आनंद ले रहे थे। ऐसी भयंकर धूप में भी एक व्यक्ति चली आ रही थी। उस व्यक्ति का हाल भिखारी से भी बदतर था, फटे और मैले कपड़े, बढ़ी हुई दाढ़ी, खाने के अभाव में अंदर गया हुआ पेट, आँखे मानो चेहरे के अंदर गड़ने का और प्रयास कर रही थी। वह व्यक्ति थक कर पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गई।
उसने शायद दो तीन दिन पहले कुछ खाया था वह बुरी तरह कमजोर हो गया था और मौत की कामना करने लगा था। वह आँखें बंद करके पड़ा था उतने में उसके कानो में आवाज पड़ी कौन हो भाई? और कहा से आ रहे हो ? उसने आँखें खोली और देखा की एक व्यक्ति उसके सामने खड़ी और उससे पूछ रही है साफसुथरा कुरता और सलीके से बंधी हुई धोती और सर पर रुआबदार पगड़ी, सफ़ेद मुछे कुछ ऐसा देखाव था उस व्यक्ति का।
उसने कहा मेरा नाम नटु है और में सौराष्ट्र के भीमपादरा गांव का रहने वाला हूँ, बारम्बार पड़ते अकाल में मेरा परिवार स्वाहा हो गया और मैं सारी दुनियादारी से आज़ाद हो गया, वहां मेरा दिल नहीं लगा तो में काम की खोज में निकल पड़ा लेकिन मुझे किसी ने काम नहीं दिया और एक दिन चोर मेरा थैला भी ले गए जिसमे मेरे कपड़े थे अब तो इन कपड़ो के सिवा मेरे पास कुछ भी नहीं है । सवाल पूछनेवाले बुजुर्ग ने कहा मेरा नाम हरिराम है और यहाँ सब मुझे हरिकाका कहकर बुलाते है, एक काम करो बेटा तुम मेरे साथ चलो मेरा खेत यहाँ से कुछ दुरी पर है तुम वही पर रह लेना और दो वक़्त की रोटी तो मिल ही जाएगी अब और भटकने जी जरुरत नहीं है। भगवान् ने मुझे इतना तो दिया ही है की तुम्हारा भी इंतजाम हो जायेगा।
ऐसा कहकर नटु और हरिकाका उनके खेत की तरफ बढ़ गए .खेत के एक कोने में एक कमरा बना हुआ था।खेत में काम करता हुआ रामा उनकी तरफ आया हरिकाका के साथ में नटु खड़ा हुआ था उसे देखकर रामा ने पूछा ये कौन है आपके साथ देखकर लगता है की भिखारी है। हरिकाका ने कहा रामा, अब ये यही खेत में काम करेगा और उस कमरे में रहेगा, वक़्त का मारा है दो रोटी उसे खिलाने से कुछ कम नहीं होगा।
हरिकाका ने टूबवेल की तरफ इशारा करके कहा अब वहां नहा लो और खाकर कुछ आराम कर लो कल या परसो से क़ाम शुरू करना और अच्छे से क़ाम करोगे तो तुम्हे ज्यादा पैसे भी दूंगा। नटु ने कहा की मुझे वैसे भी पैसे की जरुरत नहीं है मुझे सिर्फ दो वक़्त की रोटी और सर छुपाने के लिए जगह चाहिए थी। आप मेरे लिए भगवान बन के आये है, आपका ये उपकार मै जिंदगी भर नहीं भूलूंगा।हरिकाका ने कहा कैसी बात करते हो बेटा आखिर इंसान ही इंसान के क़ाम आता है, कभी इंसान को भगवान् मत बनाओ, ऐसा कहकर हरिकाका घर चले गए।
शाम को रामा ने भी नटु से उसकी कहानी पूछी तो नटु ने वही कहानी दोहराई जो हरिकाका को कही थी।
फिर नटु ने रामा से पूछा की ये खेत तो गांव से काफी दूर है यहाँ आजू-बाजू में कोई बस्ती भी नहीं है ? रामा ने कहा सही कहे रहे हो भाई ये खेत है तो गांव से काफी दूर वैसे ये खेत काफी समय से ऐसे ही बंजर पड़ा था अभी दो साल से हरिकाका ने जोतने के लिए लिया है, वैसे काफी लोगो ने सलाह दी की ये खेत को न जाते क्योकि ये बंजर जमीन है यहाँ पौधा तो क्या घास भी नहीं उगता। नटु ने पूछा आजुबाजु तो लहलहाते खेत है फिर यह जमीन बंजर क्यों कोई भूतप्रेत का चक्कर तो नहीं ? रामा ने कहा नहीं यहाँ भूतप्रेत का चक्कर तो नहीं लेकिन यहाँ कहते है के काफी समय पहले बाबा भभूत नाथ का आश्रम हुआ करता था। एक रात बाबा अपनी कुटिया में सोने गए और फिर बाहर नहीं आये उनके शिष्यों ने उन्हें काफी ढूंढा लेकिन नहीं मिले फिर बाकि सब लोग यहाँ से चले गए तब से लेकर आज तक यह जमीन बंजर पड़ी है। और एक बात बता दूँ कि यह जो कमरा है वह उसी कुटिया की जगह पर बना है।