तुमने तो रिश्तों का मान तक नहीं रखा !
तुमने तो रिश्तों का मान तक नहीं रखा !
"नीमा, आशा को मेरे साथ शहर भेज दो, शहर में पढ़ लिख कर कुछ काबिल बन जाएगी। यहां गाॅ॑व में देवर जी के गुजर जाने के बाद तुम बड़ी मुश्किल से खेतों में काम करके अपना गुजारा चलाती हो। कैसे इसको 12वीं के बाद पढ़ा पाओगी ? अभी आठवीं में है, शहर से बारहवीं करवा कर मैं कॉलेज में एडमिशन दिला दूंगी, घर में रहेगी। आखिर ताईजी-ताऊजी कब काम आएंगे ?"
"दीदी, लेकिन मैं ऐसे कैसे अपने दिल के टुकड़े को अलग कर दूं। मैं इनके जाने के बाद आशा के लिए तो जी रही हूॅ॑।" नीमा ने जेठानी मोना से कहा
"अरे! हम कोई और नहीं तुम्हारे अपने हैं। सोच लो, आशा को इस गाॅ॑व में तुम क्या दे पाओगी। शहर में उसके लिए कितने ही रास्ते खुल जाएंगे। आशा जो चाहेगी, हम उसे पढ़ाएंगे। आशा और माहिरा में मेरे लिए कोई फर्क नहीं है। अब तुम सोच लो, हम लोग कल निकल रहें हैं।" मोना ने मिश्री घोलते हुए मीठी आवाज़ में कहा
नीमा सोचने पर मजबूर हो गई। आखिरकार बेटी की भलाई का सोचकर दिल पर पत्थर रख उसने आशा को जेठ-जेठानी के साथ भेज दिया।
जाते-जाते मोना ने उसे आश्वस्त किया कि हर हफ्ते फोन पर बात करवा दिया करेंगे। जाते वक्त आशा बहुत उदास थी। आखिरकार बच्ची ही तो है,पहले पिता चले गए अब माॅ॑ का साथ भी छूट रहा है।
नीमा को मोना ने कहा कि उसे चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है, वे लोग छुट्टियों में आशा को मिलवाने ले आया करेंगे। नीमा गांव में रहकर अपना और सासु माॅ॑ का ख्याल रखे।
शहर आकर शुरू में तो आशा के हर हफ्ते फोन आते और आशा के साथ मोना से भी बात हो जाती। मोना ने बताया कि अच्छे स्कूल में आशा का एडमिशन करवा दिया है, माहिरा के स्कूल में नहीं हो पाया क्योंकि आशा की पढ़ाई का स्तर गांव में पढ़ने के कारण कमतर है। नीमा निश्चिंत थी कि आशा घर पर अपनों के बीच में है। पढ़ाई लिखाई कर रही है।
दो महीने बाद फोन आने का अंतराल बढ़ने लगा। महीने में एक बार ही बात हो पाती। उसमें भी मोना साथ ही बात करती। मोना नीमा को बताती कि आशा की पढ़ाई के लिए वे लोग काफी मेहनत कर रहे हैं ताकि शहर के बच्चों के समान उसका लेवल आ सके, ट्यूशन भी लगवा दिया है।
नीमा जेठ-जेठानी के एहसान तले दब जाती। सासु माॅ॑ भी अपने बड़े लड़के-बहू यानि नीमा के जेठ और जेठानी मोना का गाॅ॑व भर में गुणगान करते न थकतीं।
समय बीता, आशा को गए एक साल हो गया। गर्मियों की छुट्टियां पड़ गई। नीमा आशा के आने का रास्ता देख रही थी तभी मोना का फोन आया कि वे लोग हिल स्टेशन घूमने जा रहें हैं , आशा ने कभी पहाड़ देखें नहीं हैं तो उसे भी ले जा रहें हैं इस कारण इस बार गर्मियों की छुट्टियों में नहीं आ पाएगी।
मौसम बदला, सर्दी की छुट्टियां भी आकर निकल गई परंतु आशा नहीं आ पाई क्योंकि मोना का पथरी का अचानक ऑपरेशन कराना पड़ा। नीमा ने चिंता व्यक्त करते हुए आशा को गर्मी की छुट्टियों में आने को कहा।
ऐसे ही हर साल होता रहा और देखते देखते चार साल बीत गए। मोना ने बताया कि आशा बारहवीं में आ गई। अब काॅलेज जाएगी तो इस साल भी नहीं आ पाएगी। आशा फोन पर हूॅ॑-हां में जबाव देकर रख देती, मोना ही नीमा से बातें करती।
नीमा की सासु माॅ॑ भर-भर कर बड़े बेटे-बहू को आशीष देती कि छोटे भाई की बेटी के लिए इतना कर रहा है परंतु अब नीमा का मन आशा से मिलने के लिए तड़प रहा था।
एक दिन उसने पड़ोसी शांता को दो दिन के लिए सासु माॅ॑ की देख-रेख करने को मना लिया। सासु माॅ॑ को बताकर शहर जाने वाली रात की बस में बैठकर आशा से मिलने जा पहुंची।
जेठजी के घर का पता उसके पास था जो सासु माॅ॑ से लिया था।
जेठजी का घर ढूंढने में कुछ समय लगा और वह जेठजी के बंगले के बाहर पहुंच गई।
इस समय सुबह के करीब सात बज रहे थे। बंगले का मेन गेट खोलकर कोई दुबली-पतली लड़की झाड़ू लगाते हुए निकली।
नीमा ने उससे कहा कि मोना भाभी से बता दो कि नीमा आई है।
लड़की का मुंह झाड़ू लगाने के कारण झुका था। नीमा की बात सुनकर झटके से उसने मुंह उठाया।
नीमा को उस लड़की को देखकर गहरा धक्का लगा।वो कमजोर दुबली-पतली लड़की और कोई नहीं आशा थी।नीमा को देखकर आशा की ऑ॑खों में आंसू बहने लगे। नीमा को क्षण भर में ही माजरा समझ में आ गया।
झाड़ू फेंक कर आशा का हाथ पकड़कर घर में घुसकर आवाज लगाई,"दीदी, कहां हो आप ?"
"अरे नीमा! तुम यहां कैसे ?" मोना अचानक से नीमा को सामने देखकर बुरी तरह सकपका गई।
मोना बोली," नीमा, आज कमला बाई नहीं आई तो आशा ने झाड़ू लगाने की बहुत जिद की तो मैंने हां कर दी। जाओ आशा बेटा, हाथ धोकर नाश्ता करने आ जाओ।"
आशा हाथ धोकर एक आड़ी-तिरछी स्टील की पुरानी प्लेट लेकर ताई जी के सामने आ पहुंची।
मोना लाड़ दिखाते हुए प्यार से बोली," क्राकरी वाली प्लेट लाओ बेटा।"
नीमा सब देख रही थी, हाथ धोकर जब तक वह आई, मोना ने उसका चाय नाश्ता भी लगा दिया था।
तब तक आशा ने प्लेट में नाश्ता लिया और जमीन पर खाने बैठ गई।
मोना बोली," डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाओ, आशा।"
"ताई जी, मैं तो हमेशा नीचे जमीन पर .." उसके कुछ कहने से पहले ही मोना ने सैंडविच उसके मुंह में रखते हुए कहा," खाते हुए बोलते नहीं, आशा।"
हंसकर नीमा की ओर मुड़कर मोना बोली," देखा नीमा, इतने साल बाद भी भूल जाती है गांव में नहीं शहर में है जब देखो जमीन पर बैठ जाती है। आओ, तुम नाश्ता करों।"
नीमा मन में सोच रही थी बाहर जो देखा वो सच था या यह सब! शायद कमला बाई के न आने पर आशा ताई जी की मदद कर रही थी इसलिए झाड़ू लगा रही थी।
इतने में माहिरा ऊपर से नीचे आती दिखाई दी। ओट में होने के कारण नीमा तो उसे दिखी नहीं पर आशा को डायनिंग टेबल की चेयर पर बैठा देखकर माहिरा चीखी," यू गंवार! तेरी हिम्मत कैसे हुई चेयर पर बैठने की।"
आशा के साथ से प्लेट छीनकर फेंककर बोली," मम्मी, इस नौकरानी को साथ में वो भी क्राॅकरी में नाश्ता क्यों दिया ?"
आशा को डांटकर बोली," जा जाकर मेरे जूते पॉलिश करके ला।"
आशा को चांटा मारने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि नीमा ने माहिरा का हाथ पकड़कर एक थप्पड़ जड़ दिया।
नीमा ने गुस्से में कहा," दीदी, ये ख्याल रख रही हो आप आशा का। मेरी बेटी को नौकर बना दिया। पढ़ने भी नहीं भेजती होंगी, है ना आशा ?
आशा बोली,"माॅ॑, स्कूल की मैंने यहां शक्ल भी नहीं देखी।"
"चल आशा, अब और नहीं सहेगी तू। हम गाॅ॑व जा रहें हैं, अभी।" आशा का हाथ पकड़कर नीमा जाने लगी
"रुक जा नीमा, मैं सच में पढ़ाऊंगी आशा को, वो तो इसका मन ही नहीं लगता पढ़ने लिखने में।"
"बस दीदी और झूठ नहीं! हमारे गांव की सबसे होशियार पढ़ने वाली मेरी आशा को अपने नौकरानी बना दिया! आपने जो गलती की है, गलती छोटा शब्द है आपने तो गुनाह किया है। आपके साथ भाईसाहब भी बराबर के गुनहगार हैं। सगे भाई की बच्ची को नौकरानी बना दिया। शर्म नहीं आई आप दोनों को! माहिरा, तुमने अपनी चचेरी बहन से नौकर की तरह व्यवहार किया। इन सब गलतियों की माफी नहीं है। कभी आपका जमीर जगे तो अपनी करनी पर विचार करना। ईश्वर सब देख रहा है कहीं न कहीं, कभी तो आप सभी को अपनी करनी की सजा अवश्य मिलेगी।"
शोर सुनकर मोना के पति और नीमा के जेठ भी नीचे आ चुके थे। हाथ जोड़कर नीमा को रोकने की कोशिश की।
नीमा ने हिकारत भरी नजरों से देखा और कहा,"भाईसाहब, हर गलती की माफी नहीं होती! आपने अपने सगे भाई की बच्ची को नौकर बना दिया, धिक्कार है आप पर! आपने और जेठानी जी ने तो सगे रिश्तों का मान तक नहीं रखा!" कहती हुई नीमा आशा को लेकर चली गई...
दोस्तों, नीमा के जेठ और उसकी जेठानी मोना जैसे किरदार समाज में जगह-जगह पाए जाए हैं जिनकी नज़र में धोखा देना, बुरा बर्ताव करना साधारण बात है ऐसे लोग खून के रिश्ते भी नहीं देखते, स्वार्थ ही इनके जीवन का परम लक्ष्य होता है। रिश्ते नातों में इनका विश्वास नहीं होता है, समय आने पर किसी को भी बेचकर अपना काम निकाल सकते हैं, ऐसे लोगों से बचकर रहें, घर के होकर बड़ी मिश्री घोलकर डसने का एक अवसर जाने नहीं देते ये लोग! इस कहानी के माध्यम से यही बताने की कोशिश की है मैंने कि अपने बच्चों के लिए आज के इस भौतिकवादी युग में किसी पर ऑ॑ख मूंदकर भरोसा नहीं करें।
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