Ragini Ajay Pathak

Drama Crime

4.0  

Ragini Ajay Pathak

Drama Crime

तुम्हें खोकर मैंने खुद को पाया !

तुम्हें खोकर मैंने खुद को पाया !

7 mins
443


"अरे। बहू पागल हो गयी है क्या....अभी पति की लाश भी नहीं आयी और इसने खुद से ही खुद का श्रृंगार उतार दिया। आंख में एक आँसू भी नहीं इसके। पानी से सिंदूर भी धो दिया। कैसी पत्थर दिल पत्नी है ये जो इसको रोना भी नहीं आ रहा, बाकि पूरा परिवार रो-रोकर पागल हुए जा रहा है।" एकता को वहाँ मौजूद आस-पड़ोस की इकठ्ठा महिलाएं और रिश्तेदार बोले जा रहे थी। भाव शून्य बैठी एकता सुन सबकुछ रही थी लेकिन उसपर जैसे किसी की बात का असर ही नहीं पड़ रहा था। अपनी गोद में लिए दो साल के बेटे रोहन को चुपचाप दूध पिला रही थी।

तभी उनमें से एक महिला ने कहा "अरे क्या तुम सब भी ये सब बातें लेकर बैठी हो इस दुख की घड़ी में। मुझे तो लगता है बेचारी अपना मानसिक संतुलन खो बैठी है। हमें मिलकर इसको रुलाने की कोशिश करनी चाहिए। आखिर इतनी कम उम्र में जो विधवा हो गयी है।" लेकिन एकता के मन में क्या चल रहा था ये किसी को भी नहीं पता था। एकता की अमर से शादी हुए अभी सिर्फ तीन साल ही पूरा हुआ था। एकता अमर से बहूत प्यार करती थी और अमर भी एकता को प्यार करता था। एकता की ससुराल में एक शादीशुदा ननद, जेठ, सास-ससुर थे जो उसको बहूत प्यार करते थे।

एकता को लगता था कि पति रूप में अमर उसको जैसे अपने सपनो का राजकुमार मिल गया हो लेकिन एकता को नहीं पता था कि दरअसल सपनो के राजकुमार सिर्फ सपनो में ही होते है हकीकत मे ऐसा कुछ नहीं होता है। तभी एक महिला ने कहा "अरे भाभी। मैंने सुना कि कार में एक महिला भी थी अमर के साथ, उसका भी देहांत हो गया।" तब तक रोती बिलखती एकता की सास गीता जी बोल पड़ी "आप सब हमारे दुख में शामिल हुई है कि बात का बतंगड़ बनाने,आप लोगों को सिर्फ मसाला चाहिए बात करने के लिए, ये नहीं दिख रहा कि मेरी बहू भरी जवानी में विधवा हो गयी और हमने जवान अपना बेटा खो दिया।"

इतनी बातें सुनते एकता उठकर कमरे में चली गयी और अलमीरे से कपड़े निकालकर पैक कर लिए। तब तक एकता के मायके से भी सभी लोग आ गए। कुछ महिलाएं एकता को कमरे में बुलाने आयी। तो देखा एकता सलवार कमीज पहनकर कंधे पर बच्चे को लेकर कही जाने के लिए तैयार है। तो सबने कहा "अरे बहू अमर का पार्थिव शरीर आ गया दरवाजे पर चलो अंतिम दर्शन करने ये कैसे कपड़े पहने अब तुम्हारे लिए ये सब कुछ नहीं, बहू।" एकता ने कहा "चलिये।" एकता अपने पैक बैग और बेटे के साथ बाहर आयी और अमर के पार्थिव शरीर को छू कर कहा "अमर मेरे साथ ये विश्वासघात क्यों किया, क्या दोष था मेरा, मैं तुमको देवता मानकर पूजती रही और तुम मेरे ही साथ छल करते रहे।"

"काश, ये सारे सवाल मैं तुमसे समय रहते पूछ पाती। आज तुमको खोकर मुझे हकीकत का पता चला कि तुम मेरे साथ कितना बड़ा धोखा कर रहे थे और इसमें तुम्हारा साथ तुम्हारा पूरा परिवार दे रहा था।" गीता जी-"अरे, ये क्या बोल रही हो बहू अमर ने तो तुमको हमेशा कितना प्यार किया, तुम माँ नहीं बन सकती थी तो बच्चा गोद लेकर तुम्हें माँ बनने का सुख दिया और तुम भरे समाज मे मेरे मृत बेटे पर ऐसा इल्जाम लगा रही हो।" एकता- "माँ जी ये रही मेडिकल रिपोर्ट मेरी, जिसे आपने छिपाया था कल रात अमर का एक्सीडेंट होने से पहले मैंने आपकी और अमर की सारी बातें सुन ली थी तो कृपया करके आप सब ये महान बनने का नाटक ना करे तो ही अच्छा होगा क्योंकि आप सब पर अब मैं और विश्वास नहीं कर सकती क्योंकि आप सब अपना विश्वास खो चुके हैं। मैं जा रही हूँ यहाँ से अपने बेटे को लेकर हमेशा हमेशा के लिए।"

एकता के ससुर जी-" समधी जी अपनी बिटिया को समझाइए ये क्या बोल रही है। समाज में एक पत्नी का अपने मृत पति के बारे में ऐसा बोलना उचित नहीं। ये हमारा हमारे बेटे और परिवार का अपमान है।" एकता के पिताजी-"बिटिया क्या बोल रही है तू, ऐसा नहीं बोलते बेटा, अब ये तेरा ससुराल और यही तेरा घर है, जानता हूँ की ये बहूत बड़ा आघात है लेकिन इस तरह से ससुरालवालों का समाज मे अपमान भी गलत है। बैग अंदर रखो और बेटे को उसके दादा जी को दो।" एकता- "जानती थी पिताजी की आपका यही जवाब होगा क्योंकि जिंदगी भर आपने यही सिखाया कि एक बेटी की सदैव मायके से डोली निकलनी चाहिए और ससुराल से अर्थी वही आदर्श महिला होती है, तो माफ कीजिएगा मैं माँ की तरह घुटन भरी जिंदगी नहीं जी सकती।"

पिताजी कितनी आश्चर्यजनक बात है ना आपने एक बार भी मुझसे कारण नहीं पूछा की आखिर हुआ क्या? ऐसी क्या बात हो गयी जो मैंने ये फैसला लिया। खैर कोई बात नहीं, मुझे किसी से कोई उम्मीद भी नहीं... क्योंकि जानती हूं कि सच जानकर भी कोई मेरी मदद नहीं करेगा.....सिवाय ये कहने की भूल जाओ सब कुछ यही तुम्हारा भाग्य था। लेकिन मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाली... आप सब लोग एक बात कान खोलकर सुन लीजिए रोहन सिर्फ मेरा बेटा है इसलिए रोहन को मैं किसी को नहीं दूँगी और ना ही इसको अमर का नाम दूँगी। मैं आज सामाजिक तौर पर सबके सामने अमर की विधवा होने से इनकार करती हूँ।

माँ जी कल रात जब मैं आपके कमरे में पानी का गिलास रखने आ रही थी तो मैंने आपकी बातें सुनी। अमर ने कहा- "माँ, मैं अब रचना (अमर की प्रेमिका) के बिना नहीं रह सकता। रचना का भी रोहन के बिना रो-रोकर बुरा हाल है। आपकी बात मानकर मैंने बहूत बड़ी गलती की। मुझे रोहन को एकता को नहीं देना चाहिए था। मैं कल सुबह ही एकता को सब सच बता दूंगा और उसको तलाक दे दूंगा क्योंकि अब मैं और एकता से प्यार करने का नाटक नहीं कर सकता। मैं आज ही रचना को कार से अपने साथ लेकर निकल रहा हूँ। सुबह तक घर पहुंच जाऊंगा और एकता को सब सच बता दूंगा।"

गीता जी- "अमर मैंने पहले ही कहा था कि रचना को मैं बहू के रूप मे नहीं स्वीकार कर सकती, वो हमारी जाति की भी नहीं, तुम्हारे कहने पर मैंने बच्चे को स्वीकार कर लिया।" अमर, तुमने नहीं बताया फिर भी मैं ये सच जानती हूँ कि तुमने रचना के साथ मिलकर एकता की मेडिकल रिपोर्ट भी गलत बनवाई है कि वो कभी मां नहीं बन सकती और असली रिपोर्ट तुमने छिपाकर रख ली थी जो अब मेरे पास है। रचना नर्स है ना और तो तुम सोच लो कि अगर हमने उसके ऊपर रिपोर्ट हेराफेरी का केस किया तो उसका करियर खत्म हो जाएगा। इसलिए जो जैसा चल रहा है चुप चाप चलने दो, इसी में सबकी भलाई है समझे।"

जानती हैं ये सच जानकर कि मैं माँ बन सकती हूं मुझे कैसा महसूस हुआ था। आप सोच भी नहीं सकती क्योंकि बार-बार आपके और हर किसी के मुँह से बांझ होने के ताने सिर्फ मैंने सुने थे और अमर रोहन को मुझे देकर खुद महान बन गए..... जानती है...जब अमर ने रोहन को मेरे गोद मे लाकर दिया ये कहते हुए की आज से ये बच्चा हमारा क्योंकि इसके माता-पिता का एक रोड एक्सीडेंट में मृत्यु हो गयी है। दोनों ही मेरे मित्र थे इसलिए उन्होंने ये बच्चा मुझे दिया। दोनों ने लवमैरिज की थी तो उनका परिवार बच्चे को अपने पास रखने के लिए तैयार नहीं और मैं पागल अमर के प्यार में अंधी उनकी झूठी कहानी को सच मान बैठी और रोहन को अपना बेटा।

मेरे साथ इतना बड़ा धोखा हुआ है जो आप सबने मिलकर किया... मैंने तो कल रात में ही अमर से आप रिश्ता ख़त्म कर दिया था और आज मुझे भी उनका बेसब्री से इंतजार था। अमर से मुझे कुछ सवाल पूछने थे कि आखिर क्यों मेरे सच्चे प्यार के बदले मेरे साथ विश्वासघात किया। क्यों तीन साल तक मुझे अंधेरे में रखा गया। किस गलती की सजा मुझे दी गयी। मैं कुछ पूछ पाती उससे पहले ही ये सब हो गया। तो आज आप सब बेटे के साथ-साथ पोते को भी खो चुके है। मैं जा रही हूं यहाँ से हमेशा-हमेशा के लिए।

"माँ-माँ, मेरे मोजे पता नहीं कहाँ खो गए नहीं मिल रहे ऑफिस में आज जरूरी मीटिंग है। मैं लेट हो जाऊंगा।" रोहन की आवाज कानों में पड़ी तो एकता अपनी 27 साल पुरानी यादों की दुनिया से बाहर आयी और हँसते हुए कहा "हे।भगवान सामने रखा हुआ है और पूरा घर सिर पर उठा रखा है। इतना बड़ा हो गया पर क्या मजाल जो अपनी चीजें सही जगह रखे।" "ओह्ह लव यू मेरी प्यारी माँ....... चलता हूं बाय।" रोहन ने कहा।

रोहन को जाता देखकर एकता ने कहा "अमर तुमको खोने का मुझे कोई अफसोस नहीं, कोई इसे बदला कहे तो बदला ही सही आज तुम्हारे बेटे की जिंदगी में तुम्हारी कोई जगह नहीं, वो तुम्हें पूछता भी नहीं और ना ही तुम्हारे बारे में जानना चाहता है क्योंकि उसकी पूरी दुनिया मुझमें बसती है। तुम्हें खोकर मैंने खुद को पाया, खुद का परिवार, सम्मान और पहचान भी। सच कहूं तो तुम्हें खोने का मुझे कोई दुख नहीं।"

प्रियपाठकगण उम्मीद करती हूं कि मेरी ये रचना आप सबको पसंद आएगी। कहानी का उद्देश्य किसी की भावना को आहत करना नहीं, किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama