ठेले वाला
ठेले वाला
" कैलास पर्वत से एक त्रिकालदर्शी संत जनता की मंशा सुनने कल यहाँ मंदिर परिसर में पधार रहे हैं। " कस्बे के प्रसिद्ध शिव मंदिर के निकट यह एनाउंसमेंट सुनने के बाद एक ठेले वाले ने रात में झपकी तक नहीं ली।
वह पुरानी गमछी लपेटे और फटे बनियान पहने अहले सवेरे से ही लाइन में आकर लग गया। उस समय वहाँ कोई नहीं पहुँचा था। लेकिन देखते -देखते लंबी कतार लग गयी। पीछे खड़े लोग उसे धक्के दे रहे थे। कोई केहुनी से मारता, तो कोई जूते से उसके नंगे पैरों को कुचल देता ! फिर भी संत के दर्शन के लिए वह पैर जमाये एक स्थान पर खड़ा था।
" अरे! तू यहाँ क्यों खड़ा हो गया ! चल, हट ! पीछे जाकर लाइन में लग जा,गंवार कहीं का !" ठेले वाले के ठीक पीछे खड़े सूटेड -बूटेड आदमी ने उसे फटकारते हुए कहा।
" नहीं ! मैं पीछे नहीं जाऊँगा। आज ,यहाँ त्रिकालदर्शी संत आ रहे हैं , मुझे अपनी मंशा सुनानी है। उन्हीं के दर्शन के खातिर मैं सवेरे से लाइन में लगा हूँ।" ठेले वाले ने दृढ़ता से कहा।
तभी जटाजूट धारी, ललाट पर तिलक लगाए , कानों में कुण्डल और हाथ में त्रिशूल लिए संत पधारे। परिसर में ऊँ नमः शिवाय की ध्वनि गूँज उठी। लोगों का अभिनन्दन स्वीकार करके संत ने पूछना प्रारम्भ किया।
पंक्ति में सबसे आगे खड़े ठेले वाले से संत ने पूछा ," वत्स, बताओ, तुम्हारी क्या मंशा है ?"
" हे प्रभो! मैं मानव जीवन से मुक्त होना चाहता हूंँ , अगले जन्म भी मुझे मानव जीवन न मिले ! क्योंकि मैंने जीवन में बहुत अपमान और कष्ट झेले हैं ! पिता ने मुझे अधिक नहीं पढ़ाया। बचपन से ही वो मुझे अपने साथ काम पर ले जाते थे!
बड़ा होकर परिवार के खातिर मैं ठेला चलाने लगा ! ठेला खींचते -खींचते मेरे अस्थि पंजर एक हो गये और हाथों में गहरे छाले पड़ गये हैं !
बावजूद इसके, धनी लोगों ने कभी भी मुझे सम्मान की नजरों से नहीं देखा ! एक तो झिकझीक करके पैसे देते हैं , ऊपर से धौंस भी दिखाते ,जैसे मैं उनसे भीख मांग रहा हूँ !
किस्मत का मारा हूँ , पत्नी मुझे छोड़ कर टैक्सी ड्राइवर के संग भाग गयी! माँ-बाप भी अब नहीं रहे! इसलिए मैं जीना नहीं चाहता प्रभु ! " ऐसा कहते हुए उसने डबडबाई नेत्रों से संत के चरण पकड़ लिये।
उपस्थित भीड़ ठेले वाले की बातें सुनकर आपस में फुसफुसाया , " देख इसे , निर्धन होकर भी संत को धनवान बनने की अपनी मंशा नहीं सुनायी ... बड़ा पागल लगता है !"
संत ने उस ठेले वाले को उठा कर गले से लगाया , और आगे बढ़कर पंक्तिबद्ध लोगों से पूछने में मशगूल हो गए।जवाब में ... " कोई कहता , मैं डाॅक्टर/ इन्जीनियर बनना चाहता हूँ। कोई बहुत बड़ा व्यापारी ,तो कोई लाइलाज बीमारी एवं मुकदमे से निजात पाने की आरजू करने लगा ।"
संत सभी की फरियाद सुन लेने के बाद पुनः ठेले वाले के पास पहुँचकर उससे बोले , " चलो मेरे साथ, मैं तुम्हें देवाधिदेव महादेव के निवास स्थल 'कैलास' पर ले जाऊँगा। वो तुम्हें अपना नया आदेशपाल बनाएँगे।
अब मेरे निर्वाण का समय बहुत निकट आ गया है। इसलिए महादेव ने मुझे एक धर्मनिष्ठ आदेशपाल पृथ्वी से ढूंढ कर लाने का आदेश दिया है। सभी तीर्थो से घूम कर मैं यहाँ आया हूँ। धार्मिक स्थल के रूप में इस कस्बे का नाम जगत विख्यात है।तुम्हारे जैसा कर्तव्यनिष्ठ , निर्लोभ आदमी मुझे दूसरा और कोई कहीं नहीं मिला। चलो शीघ्र,अब चलते हैं।"
ठेला वाला भी संत के पीछे-पीछे चल पड़ा।जिसे देख मंदिर परिसर के लोगों की आँखें फटी की फटी रह गईं। सुटेड- बुटेड व्यक्ति ठेले वाले को आँखें फाड़ कर देखने लगा। जिसे वो दो कौड़ी का समझ रहा था , उसे संत अपने साथ ले जा रहे थे।
उस गरीब ठेले वाले का मायूस चेहरा देदीप्यमान सूर्य की भांति चमक रहा था। मानो उसे मानव जीवन से मुक्ति मिल गयी हो।