टाइटोनियम
टाइटोनियम
सपनों की भी अजीब कहानी है सपने देखो तो ऐसा लगता है जैसे सब सामने ही हो रहा है, सपने हमे राजा भी बना देते है और रंक भी। असल ज़िंदगी में अगर सपनों की तरह होता तो मज़ा ही आ जाता। आपने भी कई बार ऐसे सपने देखे होंगे जिनके सच न होने का अफ़सोस होता है, और कई सपने ऐसे भी होते है जिनके सच होने का डर होता है। कुछ सपने हमे जाने अनजाने में बहुत ख़ुशी दे जाते है और कुछ सपने हमे ग़म, पर क्या आप जानते है इन सपनों का अहसास सिर्फ हमे ही नहीं होता बच्चों को भी होता है, ये कहानी सबको पसंद तो नहीं आने वाली पर हाँ बच्चों के नज़रिये से लिखी इस कहानी को मैंने बहुत एन्जॉय किया है ये कहानी है एक नासमझ बच्चे की जिसका नाम है टाइटोनियम। चलो देखते है की इस बच्चे के सपने कैसे होते हैं।
लेखक : अरे भाई मैं तुम्हें रोज़ देखता हूँ तुम इस दीवार पर अकेले किस से बात करते रहते हो।
टाइटोनियम : अंकल मैं दीवार पर चढ़ने की कोशिश करता हूँ पर चढ़ नहीं पाता, देखना एक दिन मैं इस दीवार पर ज़रूर चढ़ जाऊँगा
(मुझे हंसी आ गई और मैंने कहा)
लेखक : हाँ भाई वो एक दिन आज तक मेरा नहीं आया पर हो सकता है तुम्हारा आ जाये।
(बस ये बात सुनते है टाइटोनियम को गुस्सा आ गया और वो अपने घर की तरफ ऐसे गया जैसे की आज कोई काम बड़ा करने वाला है। मैं भी अपने रास्ते हँसता हुआ निकल गया। रात को)
टाइटोनियम : टाइटोनियम मेरे पास आया और बोला चलो अंकल मैं आज आपको दीवार पर चढ़ना सिखाता हूँ।
लेखक : अरे, भाई पहले ये बताओ तुम दीवार पर चढ़ोगे कैसे ?
टाइटोनियम : उसकी आप फ़िक्र मत करो बस आप देखते जाना।
(मैं भी हैरानी भरी नज़रों से उसके पीछे पीछे चल पड़ा। पर मुझे पक्का यकीं था की वो ऐसा नहीं कर सकता ये तो नामुमकिन है। पर बच्चा इतना प्यारा था की उसकी बातों ने मुझे अपनी और खींच लिया।)
लेखक : लो भाई हम आ गए तुम्हारे साथ अब ज़रा दीवार पर चढ़ कर दिखाओ तो जाने और माने तुम्हें।
( टाइटोनियम ने मुझे दीवार से दूर खड़े होने को कहा और बोला की बस आप देखते जाओ और दूर जा कर खड़ा हो गया। शायद नए जुते लाया था, उसने जुते पहने और मुझे बोला। )
टाइटोनियम : अंकल, अब आप मुझपर नज़र जमा लो अब मैं दीवार पर चढ़ने वाला हूँ।
(टाइटोनियम दूर से भागता हुआ आया और जैसे ही दीवार पर पाँव रखा मेरे तो होश उड़ गए मुझे समझ नहीं आ रहा था की ये कैसे हुआ। टाइटोनियम दीवार पर ऐसे चल रहा था की मानो जैसे ज़मीन पर चल रहा हो।)
(टाइटोनियम ज़ोर से चिल्लाया और हँसते हुए बोला)
टाइटोनियम: देखो मुझे देखो मैं दीवार पर चल रहा हूँ फिर मत कहना की मैं दीवार पर नहीं चल सकता।
(उसके खेल देखकर मुझे बिलकुल यकीन नहीं हो रहा था मुझे ऐसे लगा जैसे की खुली आँखों से सपना देख रहा हूँ और मैं भी उस बच्चे के साथ हँसने लगा। कभी उसे दीवार पर चढ़ने को बोलता, कभी उसे दूसरी दीवार पर वो भी ऐसे दीवारों पर खेल रहा था जैसे मानो वो ज़मीं पर चलना तो भूल चुका है। और अचानक ज़मीन पर आ गिरा
टाइटोनियम : मम्मी, मम्मी मुझे अंकल ने दीवार से गिरा दिया।
(चारों तरफ ये ही आवाज़ गूंज रही थी उसके गिरते ही मैं भाग खड़ा हुआ टाइटोनियम की मम्मी आई और उसे बड़े प्यार से समझया तू सपने कम देखा कर, जब देखो कोई न कोई उलटे सीधे सपने देखता रहता है आँखें खोलो देखो तुम बिस्तर से नीचे गिरे हो टाइटोनियम हँसते हुए सिर्फ इतना बोला।)
टाइटोनियम : मुझे सपने देखना अच्छा लगता है।