तपस्या -10
तपस्या -10
निर्मला को दो बेटियाँ ही थी। निर्मला की बुआ ने अपने एक बेटे की शादी ऐसी लड़की से करने से मना कर दिया था, जिसका कोई भाई नहीं था। निर्मला इन सब कारणों से एक बेटे की माँ बनना चाहती थी। अतः निर्मला एक बार फिर गर्भवती हुई और इस बार उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हो ही गयी। अंततः निर्मला अपनी दोनों देवरानियों से पहले एक बेटे की माँ बन गयी थी। समय तेज़ गति से आगे बढ़ रहा था।
निर्मला की बच्चियों की स्कूल की पढ़ाई समाप्त होने के कगार पर थी। अब बच्चियों को उच्च शिक्षा दिलवाने के लिए किसी बड़े शहर में शिफ्ट होना जरूरी थी। निर्मला बच्चियों की बड़ी कक्षाओं की पढ़ाई के कारण ससुराल में ही शिफ्ट हो गयी थी बार -बार स्कूल बदलने से बच्चियां डिस्टर्ब होती थी।
निर्मला के पति का कहना था कि पास के शहर में ही जमीन हैं, वहीं घर बनाकर शिफ्ट हो जाते हैं। निर्मला राजधानी में शिफ्ट होने के पक्ष में थी क्यूँकि नज़दीक के शहर में उच्च शिक्षा के लिए ज़्यादा विकल्प उपलब्ध नहीं थे।
निर्मला ने दो टूक अपने पति को कह दिया था कि, "अगर नज़दीक के शहर में घर बनाया तो मैं शिफ्ट नहीं हूँगी। मैं तो गांव के घर में ही रहूँगी। "
पहली बार अपनी बच्चियों की ख़ातिर निर्मला ने ज़िद पकड़ ली थी। नहीं तो, आज तक वह अपने पति की हर बात मानती आ रही थी। एक माँ अपने बच्चों के लिए ईश्वर तक से भिड़ जाती है, यह तो महज़ निर्मला के पति थे।
निर्मला के पति भी समझ गए थे कि निर्मला को मनाना मुश्किल है। लेकिन अब राजधानी में घर कैसे बनाएँ। पास में कोई ज़मा पूँजी तो थी नहीं।
"नज़दीक के शहर की दोनों ज़मीनें बेच देते हैं। उस पैसे से राजधानी में घर बन जाएगा। दोनों बच्चियाँ पढ़ने में अच्छी हैं, मुझे विश्वास है कि अच्छा पढ़ -लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो जायेंगी। शादी जैसे होनी होगी, हो जायेगी।" निर्मला ने अपने पति से कहा।
निर्मला के पति भी निर्मला की बात से सहमत थे। उनकी बेटियों की प्रतिभा की जानकारी उनके बॉस तक को थी। उनके बॉस भी उन्हें जब -तब सुझाव देते रहते थे कि, "अपनी बच्चियों की अच्छी शिक्षा -दीक्षा में निवेश करो। भाग्यशाली लोगों के बच्चे ही प्रतिभावान होते हैं। देखना तुम्हारी बेटियाँ, तुम्हारा नाम रोशन करेंगी। "
इंसान पर उसके आसपास के माहौल का प्रभाव पड़ता है। निर्मला के पति भी अब शादी से ज्यादा बच्चियों के करियर के बारे में सोचने लगे थे।
उन्हें निर्मला की बात जँच गयी थी, दोनों जमीनें बेचकर राजधानी में जमीन खरीद ली गयी और घर बनवाना शुरू कर दिया था। निर्मला जमीन बेचकर मिले पैसे को एक दिन के लिए भी घर पर नहीं रखना चाहती थी। अगर घर पर रह जाता तो कहीं न कहीं उपयोग लेना पड़ ही जाता।
घर क्या बस ईंट -पत्थरों का ढाँचा भर था। पेंट आदि करवाने के लिए पैसे नहीं थे। निर्मला अपनी बच्चियों और बेटे के साथ घर में शिफ्ट हो गयी थी। उसे तो अपनी बच्चियों को पढ़ाने के लिए बस एक छत चाहिए थी, जो उसे मिल गयी थी। आज निर्मला के पति, निर्मला के इस निर्णय की प्रशंसा करते नहीं अघाते। निर्मला की दूर दृष्टि कहें य ज़िद राजधानी में इतनी बढ़िया प्रॉपर्टी बन गयी थी। निर्मला लेटे -लेटे अपने घर की दीवारें बड़े प्यार से निहारने लगी थी, जैसे कोई माँ अपने बच्चे को निरखती है।