तीसरी किरण
तीसरी किरण
वह मेरे घर मे काम करता है। आम तौर पर घर के सारे काम....अब घर के सारे काम खामोश रहकर तो नही न होंगे?
तो काम के साथ बात होती और बात के साथ काम...
एक दिन यूँही बातों बातों में मैंने पूछा,
"हमारे घर के अलावा और कितने घरों में काम करते हो तुम?"
"आपके यहाँ से 1 -2 और लोग है जिनके घरों में मैं काम करता हूँ।" वह और प्राउडली बोलने लगा, "एक घर है जो काफी बड़े सेठ है और जिनका सरकार में भी अच्छा होल्ड है।" मैंने आश्चर्य से कहा, "अरे, बाप रे, उनके वहाँ?" "हाँ...दीदी... मेरे बाबा भी उनके ही वहाँ काम करते थे। जैसे ही मैं बड़ा हो गया मैं भी उन्होंने मुझे अपने घर मे काम करने के लिए लगा लिया...दीदी, वे बड़े अच्छे लोग है।"
मैंने कहा, "अरे, फिर तुम उनसे अपने कुछ काम करा लो।" हाँ, दीदी अभी पीछे ही कुछ पैसे लेकर मैंने अपने प्लाट पर घर बनवाया था।"
इस संडे को वह खुश था। बातों बातों में वह कहने लगा," दीदी, कल बड़े सेठ साहब घर मे थे...उन्होंने मेरे बेटे के बारे में पूछताछ की।" मेरे सवाल पर वह कहने लगा," हाँ, दीदी, मैंने उन्हें बताया की बेटा अब छटवी क्लास में आ गया है और अच्छा पढ़ने लगा है। इस बार क्लास में फर्स्ट आया है।"
मैंने कहा कि "वह बेहद खुश हुए होंगे..." "हाँ, दीदी....मैंने उन्हें भी बताया कि मैं बेटे को डॉक्टर बनाऊँगा..."
वह आज बहुत खुश था। इसलिए बातें करने के मूड में था। आगे फिर वह सेठ के बारे में बोलने लगा, "वह सेठ बड़े ही दिलवाले है। सबका खयाल रखते है।उन्होंने मुझे भी घर बनाने के लिए पैसे दिए और उनकी कृपा से घर भी बन गया। दीदी, मेरे बच्चों के लिए दिल्ली में अपनी छत तो है न?" काम करते करते वह उनके बारें में और भी बातें कहता रहा...
मैं भी उसकी वह सारी बातें सुनती जा रही थी।
वह कितने भोलेपन से बात करते जा रहा था... उसे क्या पता कि अब उसका बेटा उस बड़े सेठ की निगाहों में आ गया है... उनके घर मे काम करने वाले नौकर की सूरत में ...
एक नौकर... बस एक नौकर...