Sarita Kumar

Inspirational

3  

Sarita Kumar

Inspirational

थैंक्यू टीचर्स

थैंक्यू टीचर्स

5 mins
218


शिक्षक दिवस 2022


कल का दिन मेरा बहुत शानदार गुजरा। मुझे बेहद बेइंतहा और बेहिसाब खुशियां मिली। मैं चाहती हूं अपनी इस अप्रत्याशित रूप से मिली प्रसन्नता को‌ सभी के साथ सांझा करूं। 

यूं तो मेरी साहित्यिक यात्रा में हज़ार के करीब सम्मान पत्र, प्रशस्ति पत्र, पुरस्कार और पुरस्कार राशि मुद्राओं में प्राप्त हुई है। सम्मान के साथ साथ चंद गौरवशाली उपाधियां भी मिली हैं जैसे "सुपर मॉम अवार्ड ", "गुरु भक्त सम्मान", "पितृ भक्त सम्मान", "साहित्य भूषण सम्मान, " इसके बाद"लिटरेरी ब्रिगेडियर सम्मान" लेकिन कल शिक्षक दिवस पर जो मिला यह मेरे लिए बड़ा ही विशिष्ट सम्मान था। 

एक ही मंच पर तीन पुश्तों को एक साथ सम्मानित किया गया। मतलब शिक्षक दिवस 2022 को आचार्य सूर्यदेव नारायण श्रीवास्तव सम्मान पुरस्कार मुझे यानी लिटरेरी ब्रिगेडियर सरिता कुमार, और मेरे गुरु जी कुमार पार्थसारथी सर और मेरी गुरु मां एवं कुमार पार्थसारथी सर की मां श्रीमती शैल कुमारी जी को भी मिला है। हो सकता है यह बात औरों के लिए कोई विशेष मायने नहीं रखती हों लेकिन मेरे लिए यह बहुत बड़ी खुशी की बात हुई। किसी भी शिष्य के लिए यह बेहद प्रसन्नता की बात होती है कि उसे अपने गुरु के बराबर में खड़े होने का अवसर मिलें। मेरी यह दिली इच्छा थी कि कभी किसी मंच पर मैं अपने गुरु जी के साथ खड़ी होऊं। हालांकि मैं खुद को इस काबिल नहीं समझती हूं फिर भी एक इच्छा थी जो चमत्कारी तरीके से कल पूरी हो गई। 

मैं एक साधारण अवकाश प्राप्त शिक्षिका, समाज सेविका और साहित्यकार और भारतीय सेना अधिकारी की पत्नी हूं और मेरे गुरु जी कुमार पार्थसारथी नवभारत टाईम्स मुंबई में चीफ़ सब एडिटर के पद से अवकाश प्राप्त किए हैं। पिछले चार दशक से लेखन कार्य कर रहे हैं। नवभारत टाइम्स के अलावा भवन्स नवनीत हिंदी मासिक पत्रिका में उनके लिखें आलेख पढ़ने को मिलता और और भी कई अन्य पत्रिकाओं में भी लेखन कार्य जारी है। राजनीति शास्त्र के अलावा हिंदी साहित्य में भी उनकी विशेष रुचि है। कुमार पार्थसारथी सर मेरे शिक्षक, मेरे गुरु, मेरे पथ प्रदर्शक, मार्गदर्शक हैं। पचपन पार‌ करने के बाद भी मुझे उनकी सलाह मशविरा की आवश्यकता पड़ती है। उनका स्नेह और आशीर्वाद निरंतर मिलता है। यह मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात है कि उनकी मां श्रीमती शैल कुमारी का हाथ भी मेरे‌ सर पर‌ है। हमारी इतिहास की अध्यापिका श्रीमती शैल कुमारी, महिला शिल्प कला भवन बालु घाट मुजफ्फरपुर विद्यालय से अवकाश प्राप्त की हैं। इनकी उम्र 96 है और हम सभी महिलाओं के लिए एक प्रेरणा। विवाह के बाद इन्होंने बी ए और बी एड की पढ़ाई की घर परिवार, पति और छः बच्चों के लालन पालन के साथ साथ। इनके सभी बच्चे अपने अपने क्षेत्र में सफल और कामयाब हुए। पिछले साल कोरोना के चपेट में आई मगर अपने अदम्य साहस, हौसला और आत्मविश्वास के बदौलत उसे मात देकर सकुशल घर लौट कर आई हैं।

1980 में बिहार के महिला शिल्प कला भवन बालिका विद्यालय में उन्होंने मुझे इतिहास विषय की शिक्षा दी थी। इस तरह हम तीनों तीन जेनरेशन के शिक्षकों का एक साथ एक मंच पर सम्मानित होना एक ऐतिहासिक घटना हुई है। 

पांच दशक की घटनाएं किसी चलचित्र की भांति कुछ लम्हों में ही गुजर गई। मैं तब तब मात्र 14 वर्ष की थी जब श्रीमती शैल कुमारी जी मुझे पढ़ाया करती थी। तब मैं बेहद चंचल, नटखट और शैतान बच्ची हुआ करती थी। स्कूल में मेरी शरारतों के लिए डांट पड़ती थी और एक बार तो सज़ा भी मिली थी। पहले क्लास रूम के बाहर उसके बाद स्टाफ रूम के बाहर कान पकड़कर खड़े रहना पड़ा था। आज भी याद है मुझे वो मेरी पहली और आखिरी गलती थी। फिजिक्स के क्लास में सबसे आगे के बेंच पर बैठकर अपनी कॉपी में फिल्मी गाने लिख रही थी जबकि उस वक्त फिजिक्स की टीचर पुर्णिमा मैडम क्लास ले रही थीं। चुकी फिजिक्स पढ़ने में मेरा मन नहीं लगता था इसलिए फिजिक्स बिल्कुल समझ में भी नहीं आता था। ख़ैर .... मैंने गलती की थी इसलिए सज़ा तो मिलनी ही चाहिए थी सो मिली। तब मैंने सोचा नहीं था कि कभी मैं भी शिक्षिका बनूंगी मगर जब स्कूल पास करने के बाद कॉलेज में एडमिशन हुआ और राजनीति शास्त्र पढ़ने में मुश्किलें आई तब मेरी मुलाकात कुमार पार्थसारथी से हुई उन्होंने मुझे राजनीति शास्त्र के साथ साथ हिन्दी साहित्य में भी बहुत मदद की। कुमार सर एक अच्छे विद्यार्थी और बहुत अच्छे शिक्षक साबित हुए। इसके अलावा उनके लेखन और पत्रकारिता भी मुझे बेहद प्रभावित किया। कुमार सर से प्रभावित होकर ही मैंने शिक्षण और लेखन क्षेत्र में अपना करियर बनाने का फैसला किया और आज मैं बहुत संतुष्ट हूं कि मैंने जो कुछ सोचा, जो कुछ चाहा वह सब किसी चमत्कारी तरीके से पूरा हुआ। मैं पहले शिक्षक बनी 1993 फिरोजपुर, पंजाब में उसके बाद शिक्षण कार्य के साथ साथ समाज सेवा में भी अपना योगदान दिया। एक नारी होने के नाते मेरी पहली जिम्मेदारी और मेरा पहला कर्तव्य अपने घर परिवार पति और बच्चों के साथ है और मैं एक कर्तव्य निष्ठ नारी की भूमिका निभाई। जब तीनों संतानों की पढ़ाई लिखाई पूरी हो गई और मैं अवकाश प्राप्त करने के बाद घर लौटी तब फुर्सत के लम्हों में अपना लेखन कार्य शुरू किया। मेरे गुरु का मार्गदर्शन मिलता रहा और मेरा लेखन निखरता रहा। पिछले चंद वर्षों में मेरी सारी इच्छाएं, आकांक्षाएं, चाहतें और ख्वाहिशें पूरी हो गई। 

आज मैं बेहद प्रसन्न, संतुष्ट और संतृप्त हूं। मुझे अपने जीवन में सब कुछ मिला और बेहतरीन मिला। देश के जांबाज सिपाही की अर्धांगिनी होने का गौरव हासिल है। एक बहु प्रतिभाशाली शिक्षक की शिष्या होने का सौभाग्य मिला है और तीन सफल संतान की मां हूं, दो नातिन की नानी हूं। 

 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational