Ragini Ajay Pathak

Abstract Drama Others

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Ragini Ajay Pathak

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स्वार्थी पत्नी भाग 2

स्वार्थी पत्नी भाग 2

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घर से निकलकर रचना और सरलाजी चली तो आयी

लेकिन उनके पास समस्या ये थे कि वो कहाँ जाएं किससे मदद मांगे। कि तभी रचना ने कहा, "मां भैया को फोन करूँ शायद वो कही हमारे रहने का इंतजाम करा दे।

तभी नातिन को गोद में ली हुई सरलाजी कि घूरती निगाह रचना की तरफ पड़ी तो रचना ने सिर और निगाहें झुकते हुए दबी आवाज में कहा," मां मैं तो बस आपसे पूछ रही थी आखिर हम जाएंगे कहां?"

तब सरलाजी ने कहा, "रचना एक गलती करके अक्ल नहीं आयी जो दूसरी गलती करना चाहती हो। क्या तुम्हारा आत्मसम्मान मर चुका है । ऐसे बड़ा करोगी अपनी बेटी को। अगर तुम्हारा भाई मुझे रख भी ले लेकिन वो तुमको कभी अपने घर में नहीं घुसने देगा। घुसना तो छोड़ो वो तुम्हें दरवाजे पर भी बर्दाश्त नहीं करेगा। क्या अपनी गलती भूल गयी? कितनी मिन्नतें की थी मैंने और उसने तुमसे हाथ जोड़कर लेकिन तुमने हमारी एक ना सुनी।"

कहकर सरलाजी चुप गयी।

रचना और सरलाजी स्टेशन के प्लेटफार्म पर आकर बैठ गयी। सरलाजी नातिन को गोद मे लेकर सुला रही थी। जिसे देखकर रचना अतीत की यादों में खो गयी। उसे अच्छी तरह याद है कैसे बाबुजी से छिप छिप कर सरलाजी ने रचना को साइकिल से लेकर कार तक चालान सिखाया। बीए के फाइनल ईयर में जब रचना के पापा ने उसे बाइक चलाते देख लिया था तो घर आकर सरलाजी को बहुत मारा था

अनुज के प्यार में अंधी रचना को लगता था कि अनुज जैसा दिखता है वैसा ही सोचता भी है। उसके परिवार की सोच भी आधुनिक होगी। वो अपने घर के रूढ़िवादी और लड़ाई झगड़े से परेशान हो चुकी। वो इन सब से बाहर निकलना चाहती थी। इसलिए उसने घर से भागकर अनुज से शादी करने का फैसला लिया।

लेकिन रचना को शादी के बाद पता चला कि उसकी जिंदगी तो पहले से भी खराब हो गयी। अब तो उसे हर रोज अनुज के साथ साथ उसके माँ पापा देवर और ननद सब मारते थे। अनुज के लिए वो सिर्फ उसकी शारीरिक भूख मिटाने का साधन मात्र थी और उस घर के लिए एक नौकरानी।

रोज रोज उसके साथ मारपीट और गाली गलौज होती। कभी खाना मिलता तो कभी भूखी ही रह जाती।

हद तो तब हो गयी जब रचना की बेटी होने के बाद उसके साथ साथ अनुज ने अपनी नवजात बेटी को भी थप्पड़ मारा और बेड पर पटक दिया।

उस दिन रचना ने अपनी और अपनी बेटी की जान बचाने के लिए वहाँ से भागने का निर्णय लिया।

तभी सरलाजी ने रचना से कहा, "रचना इसको दूध पिलाओ ये भूखी है।"

सरलाजी की आवाज से रचना अपनी कड़वी यादों से बाहर आयी। तो उसने अपनी मां की गोद से बेटी को लेते हुए कहा," मां मैं जानती हूं कि मेरी गलती माफी के लायक नहीं लेकिन फिर भी हो सके तो मुझे माफ़ कर दो ,आज मेरी वजह से आप भी बेघर हो गयी।"

तब सरलाजी ने कहा, "नहीं रचना मैं तुम्हारी वजह से बेघर नहीं हुई बल्कि तुम्हारी वजह से सच को मैंने जान लिया और स्वीकार भी कर लिया। वो घर तो कभी मेरा था ही नहीं। वहाँ तो मैं अब तक बंधुआ मजदूर की तरह थी। लेकिन अब आजाद हूँ। रही तुम्हारी बात तो तुम मेरी बेटी हो गलती तुमने की थी लेकिन शायद उसमें कही ना कहीं मेरा भी दोष था जो मैं तुम्हारा विश्वास ना जीत पायी।"

खैर जो बीत गया सो बीत गया। अब आगे का सोचते है कि क्या करना है?

पूरी रात स्टेशन पर बैठे बैठे कब आँख लग गयी। उन लोगों को पता ही नहीं चला कि तभी सुबह सुबह सरलाजी के कंधे पर किसी ने हाथ रखा। सरला ने आंख खोली तो देखा कि दूध वाले की पत्नी रमिया आवाज दे रही थी।

"रमिया, तू कहाँ जा रही है? इतने दिनों तक अचानक कहाँ गायब हो गयी थी। "

रमिया -"मेमसाहब मुम्बई चली गयी थी वही जा भी रही हूं। अब मर्द ने छोड़ दिया किसी और औरत के चक्कर में तो क्या करूँ?"

"लेकिन आप यहां कैसे? और ये आपकी बेटी है ना जो किसी और के साथ भाग कर शादी कर ली थी।"

"हम्म,"

"अच्छा रमिया मुम्बई में रहने की व्यवस्था हो जाएगी क्या?" सरलाजी ने कहा

"मेमसाहब बहुत बड़ी खोली तो नहीं मेरी चाल में रहती हूं। आप चाहो व्यवस्था करा सकती हूं। किसके लिए करानी है"

"मेरे लिए अब इससे आगे और इससे ज्यादा कुछ मत पूछना क्योंकि मैं बता नहीं पाऊंगी।।" सरलाजी ने कहा

रमिया ने कहा, "समझ गयी मेमसाहब चलो आप मेरे साथ एक बार आपने खून दे कर मेरी जान बचाई थी आज मेरी बारी है। "

और सरलाजी चल पड़ी एक नए शहर नए सफर पर।

आगे के भाग 3 में जानेंगे आखिर मुम्बई जाकर कैसा रहा सरलाजी का सफर।



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