Kumar Vikrant

Children Stories

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स्वामी और मंदिर का भूत

स्वामी और मंदिर का भूत

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"स्वामी तू निकला न वही कायर का कायर......आ हिम्मत है तो एक रात स्टेशन के पास वाले मंदिर में बिता कर देखते है......सब कहते है वहाँ रात को भूत नाचता है।" मणि अपनी गदा को हवा में लहराते हुए बोला। 

"ना बाबा ना, मुझे नहीं देखना भूत का नाच.......पिता जी को पता लग गया तो बहुत मार पड़ेगी।" स्वामी तेजी से घर की तरफ कदम बढ़ाते हुए बोला। 

"पागल; सब कहते है जो एक बार उस भूत का नाच देख लेता है वो विद्या और धन से मालामाल हो जाता है......" शंकर ने अपनी गंजी खोपड़ी पर हाथ फिराते हुए कहा। 

"अरे तेरे तो हमेशा ९० प्रतिशत अंक आते है, तू क्यों देखना चाहता है भूत का नाच?" स्वामी ने आश्चर्य से पूछा। 

"मुझे नहीं पता, मुझे तो बस ये देखना है कि भूत होते कैसे है?" शंकर ने जवाब दिया। 

"तुम दोनों फालतू की बकवास न करो, मुझे ये बताओ आज रात तुम मंदिर में चलोगे या नहीं?" मणि गुस्से से बोला। 

"कहा न मुझे नहीं देखना मंदिर का भूत........" स्वामी तेजी से चलते हुए बोला। 

"तू कायर है......उस मंदिर में सिर्फ बहादुर जा सकते है; जैसे मैं हूँ......" मणि अपनी फटी कमीज पर धौल जमाते हुए बोला। 

"न तो मैं कायर हूँ और न बहादुर लेकिन मुझे मंदिर वाला भूत देखना है।" शंकर अपना पुराना राग अलापते हुए बोला।

"शंकर तू तो तैयार है लेकिन वहाँ कम से कम चार लोग हो तो ठीक रहेगा, क्योकि चार लोग भूत का मुकाबला भी कर सकते है......" मणि लापरवाही से बोला। 

"तुम पागल हो भूत से भला कोई मुकाबला कर सकता है? अच्छा एक बात बताओ तुम कह रहे हो वहाँ चार लोग जाने चाहिए; लेकिन हम तो तीन ही है......?" स्वामी ने पूछा। 

"नए मंदिर का बाबा भी चलेगा हमारे साथ......" मणि बोला। 

"न बाबा न, पिता जी कहते है वो तंत्र-मंत्र, जादू-टोने वाला बाबा है......नहीं जाना उसके साथ।" कहकर स्वामी मणि की और देखने लगा। 

"छोड़ कायर तू, क्या चलेगा; सोमू और मटर मेरे साथ जाने को तैयार है......अब हम चलते है शंकर तू शाम को ८ बजे अपने घर के बाहर मिलना वहीं से हम पहले सोमू और मटर के घर चलेंगे, उसके बाद सीधे नए मंदिर के बाबा के साथ और फिर सीधे स्टेशन के पास वाले मंदिर में भूत का नाच देखने।" मणि ने स्वामी की तरफ हिकारत भरी नजर से देखते हुए कहा। 


रात १० बजे 

"स्वामी तू पागल है रात में टाइम मेरे घर आ गया, टाइम तो देख......." राजम थोड़ा गुस्से से बोला। 

"राजम मेरी बात समझ, वो मणि है न; वो आज रात शंकर, सोमू और मटर के साथ स्टेशन के पास वाले मंदिर में भूत का नाच देखने देखने जाने वाला है......" स्वामी चिंता से बोला। 

"क्या पागलों वाली बात कर रहे हो; भूत-वूत सब बेकार की बाते है......." राजम बोला।

"वही तो मैंने कहा था मणि और शंकर को; लेकिन वो आज नए मंदिर वाले बाबा के साथ स्टेशन के पास वाले मंदिर में भूत का नाच देखने देखने जाने वाले है......." स्वामी बोला। 

"बाबा के साथ......?"

"हाँ उस तांत्रिक बाबा के साथ।" स्वामी ने जवाब दिया। 

"अगर वो जाना चाहते है तो हम क्या कर सकते है?" राजम बोला। 

"राजम वो हमारे दोस्त है; उन्हें कुछ हो गया तो हम किसके साथ खेलेंगे?" स्वामी बोला। 

"वो तो है लेकिन हम कर भी क्या सकते है?" राजम बोला। 

"आ चल, चलके देखते है स्टेशन के पास वाले मंदिर में क्या है?" स्वामी बोला। 

"नहीं; तू तो अपने घर से बाहर आ गया है, लेकिन मेरे पापा के स्टाफ की जानकारी के बिना मेरा तो जाना मुश्किल है; पकड़ा गया तो पिता जी सजा देंगे......" राजम बोला। 

"सही कह रहा है तू......चल मै अकेले ही जाता हूँ......" कहकर स्वामी राजम के घर से बाहर निकल आया।


रात ११ : ४५ बजे

मालगुडी के सभी मंदिरों में स्टेशन के पास वाले मंदिर सबसे प्राचीन था। पाँच साल पहले जब रेल की पटरियां मालगुडी तक आई तो यह मंदिर पटरियों के रास्ते में पड़ने के कारण अंग्रेजो ने यह मंदिर ध्वस्त कर दिया और रेल की लाइनें इसके पास से गुजर गई। थोड़ी ही दूर मालगुडी का रेलवे स्टेशन था इस कारण मंदिर के खंडहरों को स्टेशन के पास वाला मंदिर कहा जाने लगा। 

जब स्वामी स्टेशन के पास वाले मंदिर के पास पहुँचा तो मंदिर और उसके आस-पास के स्थान अँधेरे में डूबा हुआ था। मंदिर सुनसान पड़ा था वहाँ कोई नहीं था और न किसी प्रकार की आवाज आ रही थी। 

स्वामी ने जैसे ही मंदिर में पैर रखा तभी मंदिर में छम की आवाज गूँज उठी और एक काली आकृति मंदिर के प्रांगण में आ गई और प्रांगण में तेजी से गोल-गोल घूमने लगी। उसका घूमना आंधी के जैसा लग रहा था और घुंघरुओं की आवाज स्वामी के कानों में दर्द करने लगी थी। 

स्वामी डर कर मंदिर से बाहर की तरफ भागा, लेकिन किसी अदृश्य शक्ति ने उसके पैर पकड़ लिए और वो जहाँ था वही खड़ा रह गया। अब वो साया और तेजी से घूम रहा था और स्वामी पर एक मदहोशी छाती जा रही थी। स्वामी धीरे-धीरे बेहोशी की गर्त में जा रहा था लेकिन बेहोश होने से पहले उसने भारी जूतों के मंदिर में प्रवेश करने की आवाज सुनी।


अगले दिन 

जब स्वामी की आँख खुली तो वो मालगुडी के अस्पताल के एक बैंड पर लेटा हुआ था; उसके पिता और माँ उसके पास बैठे हुए थे। मणि, सोमू, शंकर, मटर और राजम भी उसके बैड के पास खड़े हुए थे। 

तभी पुलिस की डी एस पी, राजम के पिता उसके बैड के पास आते हुए बोले, "कल हम राजम की जिद्द पर स्टेशन के पास वाले मंदिर में गए तो तुम मंदिर के आंगन में बेहोश पड़े थे, क्या हुआ था वहाँ?"

"मुझे कुछ याद नहीं......." स्वामी सोचते हुए बोला। 

"स्वामीनाथन जी अपने बेटे पर ध्यान दीजिए......अगर वो रात को इस तरह भटकेगा तो उसके और आपके दोनों के लिए अच्छा नहीं होगा......" डी एस पी ने चिंता के साथ स्वामी के पिता से कहा। 

"ये कल रात कैसे घर से निकल गया समझ नहीं आया लेकिन इसे अब घर चलकर अपनी इस हरकत का समुचित उत्तर देना होगा।" स्वामी के पिता सर झुकाकर बोले। 

थोड़ी देर बाद जब स्वामी के पिता हॉस्पिटल से चले गए और उसकी माँ पास के बैड वाली महिला से बात करने चली गई तो उसके दोस्तों ने उसे घेर लिया। 

"क्या तुझे कुछ भी याद नहीं है कि तू मंदिर में बेहोश कैसे हो गया था?" राजम ने उत्सुकता से स्वामी से पूछा। 

"सब याद है......" स्वामी अस्पताल की छत की तरफ देखते हुए बोला। 

"क्या देखा तूने वहाँ?" मणि ने चिंता के साथ पूछा। 

"भूत की नाच......." स्वामी ने जवाब दिया। 

"तो तूने ये बात पिता जी को क्यों नहीं बताई?" राजम ने पूछा। 

"मेरी मर्जी। ......."कहकर स्वामी ने अपनी आँखे बंद कर ली।


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