सुरमयी सी शाम
सुरमयी सी शाम
यह सुरमयी रंग मुझे न जाने क्यों बेहद भाता है...
शायद इसलिए की वह एक्सट्रीम व्हाइट और एक्सट्रीम ब्लैक के बीच में भी अपना रंग जमाने मे कामयाब होता है....
लगता है सुरमयी रंग में घुल कर आज की यह शाम भी जैसे सुरमयी हो गयी है.....
अभी शाम को मैं अलमारी को कुछ ठीक कर रही थी की मुझे हमारा पुराना अल्बम नज़र आया।वह कही कोने में पड़ा था। आज के डिजिटल युग मे वह युहीं किसी कोने में रखा रह गया था।एक जमाने मे वह हर एक को अज़ीज़ था।में एक एक तस्वीर देखने लगी।उस हर तस्वीर में न जाने कितनी सारी यादें बावस्ता थी।
वह सारी यादें एक एक कर किसी रील की तरह मेरे आँखों के सामने चलने लगी थी।वह तस्वीरों वाला अल्बम आज मेरे लिए किसी खजाने से कम नही लग रहा था।
यह उन तस्वीरों का ही असर था जो मुझे लगने लगा था कि यह सुरमयी शाम ने जैसे ढेर सारी बातों का पिटारा ही खोल दिया हो...
ढ़ेर सी बातें....
वह जाती हुयी धूप ने शायद जाते जाते उस शाम से कही हो...
और आनेवाली चाँदनी के क्या कहने?वह तो न जाने हर रात कितने नये नये किस्से और कहानियाँ गढ़ती जाती है और आतें ही शाम से गपियाती है....
यह वक़्त की रफ़्तार का ही असर था कि हम दोनो पति पत्नी के रिश्तें कुछ सर्द से लग रहे थे। एक तो हमारी नौकरियों की व्यस्तता और दूसरी ओर इस डिजिटल युग मे मोबाइल का साथ....
हमारे रिश्तें जैसे उलझकर रह गये थे....
लेकिन आज इस सुरमयी शाम और उस तस्वीरों ने माहौल ही बदल दिया।
'मैं पहले क्यों' और उसके साथ फ्री में मिले 'ईगो' को छोड़कर झट से पति को फ़ोन मिलाया।दूसरी ओर से एक सेकंड के लिए अचरज के सुर के बाद नार्मल बात शुरू हो गयी क्योंकि मेरी बातों में उन तस्वीरों की यादें थी जो शायद हम दोनों ही भूल गए थे....
आज इस शाम ने जैसे सब कुछ बदल गया।हम दोनो का रिश्ता ब्लैक एंड वाइट से बदलकर अचानक सुरमयी सा हो गया बिल्कुल आज की इस सुरमयी शाम के मानिंद......