सुनो, मुझे भगाकर ले जाओ ना
सुनो, मुझे भगाकर ले जाओ ना


"सुनो" "कहो"
"हम ऐसे कब तक मिलते रहेंगे" ?
"जब तक तुम्हारे मम्मी पापा हमारे विवाह के लिए हां नहीं कह देते"
"वो तो कभी नहीं कहेंगे। मैं उन्हें जानती हूं। वो हमारी शादी के विरुद्ध हैं। क्या हम ऐसे ही चोरी चोरी मिलते रहेंगे या कभी सीना तान कर साथ साथ भी चल सकेंगे" ?
"जरूर चलेंगे। थोड़ा संयम रखो नीलू। मम्मी पापा को अभी और समय चाहिए। आखिर वो अपनी बेटी का हाथ ऐसे कैसे किसी के हाथ में दे दें ? इसके लिए विश्वास की आवश्यकता होती है। वो विश्वास जो उन्हें चाहिए मैं अभी तक अर्जित नहीं कर पाया हूं। इसमें कमजोरी उनकी नहीं बल्कि मेरी ही है। मुझे और अधिक प्रयास करने होंगे"।
"मुझे कुछ नहीं पता। पांच साल हो गये हैं हमको ऐसे ही मिलते मिलते। अब और सहा नहीं जाता है मुझसे। एक दिन मैं घर से भागकर तुम्हारे पास आ जाऊंगी , तब तुम क्या करोगे ? सुनो, मुझे भगाकर कहीं ले चलो ना" ?
नीलू के इन शब्दों पर रवि एकदम से चौंक गया। चिंतित होते हुए बोला "ये क्या कह रही हो नीलू ? क्या विवाह से पहले मेरे साथ रहना ठीक रहेगा" ?
"क्यों नहीं ? आजकल तो सुप्रीम कोर्ट ने भी "लिव इन" की इजाजत दे दी है तो फिर क्या दिक्कत है" ? नीलू रवि के सीने पर सिर टिका कर बोली।
"क्या तुम्हें मेरे साथ रहने में जरा सा भी डर नहीं लगेगा" ?
अबकी बार नीलू ने रवि को आश्चर्य से देखा "क्यों लगेगा आपसे डर ? आप कोई भूत प्रेत हैं क्या" ?
"मैं एक अजनबी लड़का हूं और तुम अपने मम्मी पापा को छोड़कर मेरे साथ रहोगी तो स्वाभाविक रूप से डर लगना चाहिए तुम्हें। क्यों है ना" ?
"तुम और अजनबी ? मैं तुम्हारी रग रग जानती हूं" वह हंसते हुए बोली।
"एक बात बताओ नीलू, अभी पांच दस दिन पहले किसी श्रद्धा को उसके प्रेमी आफताब ने मार डाला था। अखबारों में पढा था कि उसके 35 टुकड़े किये थे। वह भी लिव इन में रह रही थी , फिर भी तुम मेरे साथ लिव इन में रहना चाहोगी" ?
"हां , क्यों नहीं। मैं तुम्हें अच्छी तरह जानती हूं इसलिए मुझे कोई डर नहीं है। दूसरी बात यह है कि हर प्रेमी आफताब नहीं होता है। अब बताओ , कल आ जाऊं तुम्हारे घर" ?
"अरे नहीं नहीं। मैं "लिव इन कल्चर" में विश्वास नहीं करता हूं। तुम सत्य जानो , मैं तुम्हारे मम्मी पापा के आशीर्वाद के पश्चात ही तुमसे विवाह करूंगा, इससे पहले नहीं। देखो, रात बहुत हो चुकी है , अब तुम जाओ। और हां कल आठ बजे आना। कल मेरा ओ टी है, थोड़ी देर लग जायेगी"।
"कैसे हो न ? लोग तो अपनी प्रेमिका के आगे मिन्नतें करते रहते हैं और रुकने की , मगर यहां तो माशूका को ही भगाया जा रहा है। पत्थर दिल"
"पत्थर दिल , निर्दयी कुछ भी कह लो पर अब तुम जाओ। तुम्हारे मम्मी पापा तुम्हारी कितनी चिंता कर रहे होंगे ? उन्हें परेशान करना भी कोई अच्छा काम है क्या" ? रवि ने नीलू की आंखों में देखकर कहा।
"कितने अच्छे हो तुम, रवि। दिल तो नहीं करता है तुम्हें छोड़कर जाने का पर मजबूरी है क्योंकि तुम बहुत "संस्कारी" हो और शादी से पहले मुझे साथ रखोगे नहीं। तो अभी मैं चलती हूं। पर जनाब, मेरे मम्मी पापा को जल्दी पटा लेना नहीं तो फिर देख लेना" ? उंगली दिखाते हुए नीलू बोल पड़ी। रवि मुस्कुरा कर रह गया।
अगले दिन रवि सो ही रहा था कि मोबाइल बज उठा। नीलू की घबराई हुई आवाज आई "रवि, पता नहीं पापा को क्या हो गया है , बेहोश हो गये हैं वे"।
"तुम चिंता मत करो , मैं अभी पांच मिनट में पहुंचता हूं। तब तक तुम अस्पताल चलने की तैयारी करो" ?
रवि ने अपने अस्पताल फोन कर एम्बुलेंस बुलवा ली और कॉर्डियोलोजिस्ट को अस्पताल पहुंचने के लिए कह दिया।
थोड़ी देर में रवि नीलू के घर पहुंच गया। नीलू घबराई हुई थी। उसकी मम्मी रोये जा रही थी और उसके पापा बेहोश पड़े थे"
रवि ने उन्हें जमीन पर लिटा दिया और जोर जोर से पंपिंग करने लगा। करीब दस मिनट के प्रयास से उनकी सांसें चलने लग गई। इतनी देर में ऐंबुलेंस आ गयी और नीलू के पापा को अस्पताल ले गई । नीलू का भाई आशु बाहर गया हुआ था।
अस्पताल में कॉर्डियोलोजिस्ट डॉक्टर पाठक ऐलर्ट थे। जैसे ही मरीज की ई सी जी वगैरह हुई तो यह स्पष्ट हो गया कि उन्हें "सीवर कॉर्डियक अटैक" पड़ा था मगर रवि द्वारा दिये गये प्राथमिक उपचार से वे बच गये थे।
डॉक्टर पाठक ने ऑपरेशन की पूरी तैयारी कर रखी थी। "बाईपास सर्जरी" के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। रवि ने ऑपरेशन के समय यथासंभव मदद भी की थी। ऑपरेशन के दौरान नीलू और उसकी मम्मी दोनों ही बुरी तरह से घबरा रही थीं मगर रवि ने दोनों को संभाल लिया था।
चार दिन अस्पताल में रहने के बाद वे लोग घर आ गये। तब तक आशु भी आ चुका था। नीलू के मम्मी पापा ने रवि को इस बार बहुत करीब से देखा था। वे दोनों रवि की सादगी और उसकी संवेदनशीलता पर रीझ गये थे। आज अगर नीलू के पापा जिंदा हैं तो केवल रवि की बदौलत। नीलू के मम्मी पापा रवि को पाकर आनंदित हो गये थे।
अब किसी को कुछ कहने सुनने की आवश्यकता नहीं थी। जब रवि नीलू के घर से जाने के लिए निकलने लगा तो नीलू के पापा ने कहा "जरा ठहरो बरखुरदार , ऐसी भी क्या जल्दी है" ?
उन्होंने नीलू को अपने पास बुलवाया और उसका हाथ रवि के हाथ में पकड़ा कर कहा "अब जाओ दोनों। सदा सुखी रहो। अपनी मम्मी से भी आशीर्वाद ले लेना"।
रवि के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसने नीलू की मम्मी और पापा से आशीर्वाद लिया और कहा "पापा, मैं थोड़े पुराने खयालों का आदमी हूं , बिना विवाह के नीलू को यहां से नहीं ले जाऊंगा"
"मुझे तुम पर बहुत गर्व है बेटा। भगवान सबको तुम जैसा बेटा दे। बेशक तुम नीलू को अपने घर शादी के बाद ले जाना मगर अभी तो "चिल" मारने ले जाओ" बांयी आंख दबाकर उसके पापा बोले।
नीलू की खुशियों का कोई ठिकाना नहीं था। वह अपने पापा से लिपट गई।
अगले महीने की 5 तारीख को दोनों का विवाह है। आप सब लोग जरूर जरूर आना विवाह में"