minni mishra

Abstract Classics Inspirational

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minni mishra

Abstract Classics Inspirational

सुध बिसरा गया मोरी

सुध बिसरा गया मोरी

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“ देखो...!कोई कुल्हाड़ी लेकर इधर आ रहा है ? कुछ करो श्याम।”

“घबराओ नहीं..कदम्ब! मैं हूँ न...।”  

श्याम ने निर्लिप्त भाव से मोर के पंख को सहलाते हुए कहा।

“मित्र! मोर के पंख को सहलाने से कुछ नहीं होने वाला है !जब मोर ही नहीं बचेगा तो पंख कहाँ से मिलेगा ? बताओ....।"    श्याम ने दुखी हो कर कदम्ब से कहा और अपनी बांसुरी को कमर में बंधे गमछे से बाहर निकालने लगा।

“ऐसी अशुभ बातें मुँह से मत निकालो, इस निर्जन कानन में तुमलोगों के साथ मैं मग्न से रहता हूँ !” कदंब ने आह्लादित हो कर जवाब दिया।

"खच्च...खच्च....! अरे, मैंने क्या किया ? इतनी निर्दयता क्यों....? उफ़्फ़...!मुझे इस लकड़हारे से डर लग रहा है, बचाओ.....!ओह! मेरे शरीर से श्वेत रुधिर, आ...ऽ..ऽ..ऽऽ!”  कदम्ब के आर्त स्वर से श्याम विचलित हो उठा ! निर्जन कानन में अचानक भयंकर तूफ़ान मचा गया! बिजली कौंधने लगी ..!मोर, गाय, हिरन के साथ अन्य पशु ,पक्षी भी क्रंदन करने लगे | फिर भी लकड़हारा कुल्हाड़ी से वृक्षों पर अंधाधुंध वार करता रहा !

जिसे देखकर श्याम के ओठों पर बंसी  थिरकने लगी..। उसके मधुर धुन से दसों दिशायें गुंजयमान हो उठे , गरजते बादल झमाझम बरसने लगे |बारिश की परवाह किए बिना जलावन चुन रही भिलनी झुण्ड बनाकर बंसी के धुन पर नाचने लगीं | लकड़हारे के हाथ से कुल्हाड़ी किधर छिटक गया...उसे कुछ पता‌ ही नहीं चला !वह भी मगन हो कर नाचने लगा।

तभी आसमान से चाँद अपने आँचल में तारों को समेट कर धरती पर उतर आया।

अब पहचानना मुश्किल हो रहा था कि कौन लकड़हारा , कौन श्याम और कौन भिलनी...! 

न हिंसा, न ही द्वेष....जिंदगी का गणित प्रेम के रंग से सराबोर कानन में चहुँओर पसरा दिख रहा था ! ---- 


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