Aaradhya Ark

Romance Tragedy Fantasy

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Aaradhya Ark

Romance Tragedy Fantasy

सुबह कबके हुई आँख अब खुली

सुबह कबके हुई आँख अब खुली

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"मैंने कहा ना मम्मी ! मैंने आपकी आलमारी को हाथ भी नहीं लगाया, मेरी कसम। आप चाहो तो मीनल से पूछ लो,उसीने खोली थी आपकी आलमारी हैंगर लेने के लिए!"

कुंतल ने कहा तो मम्मी के कुछ कहने से पहले ही दादी बोल उठीं,

"कुंतल!ये बात बात पर अपनी कसम मत खाया करो। कहीं तुम्हें कुछ हो गया तो ?"

"ओ. एम. जी. यह दादी भी ना कितनी ओल्ड फैशन्ड है यार। अब मेरे बोलने से मैं कसम अगर झूठी खाऊंगी मैं थोड़ी ना मर जाऊंगी!"

कुंतल बड़बड़ा रही थी।उसकी आदत थी हर बात पर अपनी कसम खाने की और जब दादी मना करती तो उनका पूरा नाम लेकर उन्हें चढ़ाती 'कल्याणी चौधरी' बदले में दादी उसे सुधारकर कहती ,"ऐसे नहीं मेरा पूरा नाम ले।मेरा नाम कल्याणी चौधरी जाखड़ है,समझी ?"

फिर दोनों दोनों हंस पड़ती। दादी पोती की यह नोकझोंक लगभग आए दिन होती रहती थी। पता नहीं क्यों कुंतल को अपनी दादी में पूरी दुनिया नजर आती थी। एक दोस्त भी और एक पार्टनर इन क्राईम भी। दोनों चुरा कर फ्रिज से आइसक्रीम और मिठाई मिलकर खाती और जब दादी का शुगर लेवल बढ़ जाता तो किसी को नहीं बताती कि उन्होंने चुराकर मिठाई खाई है।ऐसी दोस्ती थी दादी और पोती की।

कुंतल के लिए सबसे आसान होता था ये कह देना कि अगर मेरी बात नहीं मानोगे तो मैं अपनी जान दे दूँगी। मम्मी आँखें तरेरती और दादी समझाती कि,

"यूँ अपनी जान देने की बात ऐसे ना करते। क्या जाने कब काल यहाँ से गुजरे और उसका मन कलुषित हो जाए। बेटा! भागीरथ प्रयत्न के बाद होता है ये मानव के रूप में जन्म। सो इसे पूरे यश कीर्ति कमाते हुए जीना चाहिए !"

छोटी बहन मीनल उसे चिढ़ाते हुए कहती,

"दादी ये यश और कीर्ति दीदी के होनेवाले बच्चों के नाम बता रही हैं ना ? आहा... दो दो बच्चे और नाम भी पहले ही रखा जा चुका है, वाह...!"

मीनल को कुंतल डाँटने ही वाली थी कि छोटा चचेरा भाई सुमेध बोल उठा,

"पर कुंतल दीदी की तो छादी (शादी)भी नहीं हुई अभी !"

उसकी मासूमियत वाली बात पर सब हँस पड़े और दादी मीनल को यश और कीर्ति शब्द के अर्थ समझाने लगी जो उन्होंने अपने वाक्य में प्रयोग किये थे।

उस दिन की हँसी ठिठोली में कही हुई एक बात शायद कलुषित काल ने सुन ली थी। और कुंतल आज एक ऐसी जगह खड़ी थी जहाँ उसे अपनी गलती का एहसास इतनी शिद्दत से हो रहा था कि मन तड़पकर अपनी इहलीला तक समाप्त करने की सोचने लगा था।अपनी कसम खाना बोलना और दोनों में एक बड़ा अंतर समझ आ गया था। उसके मन में आत्महत्या के विचार को उसने तेज़ी से झटका था और अपना त्यागपत्र देकर ऑफिस से निकल आई थी।

रास्ते में कुंतल सोचती जा रही थी...

पिछले एक साल में तमाम घटनाक्रम कितनी तेज़ी से बदले थे। कैसी स्टुपिड थी वो ज़ब भिवाड़ी से यहाँ जॉब करने आई थी।

कुंतल को ज़रा भी आश्चर्य नहीं हुआ था ज़ब नौकरी के पहले दिन से ही विराट उसकी कुछ ज़्यादा ही आवाभगत करने लगा था। उसे लोगों से इस तरह के स्पेशल ट्रीटमेंट की आदत जो थी। पर विराट का मकसद कुछ और था और वह. कुंतल के वर्क एक्सपीरियंस और डिग्री से ज़्यादा उसकी सुन्दरता से प्रभावित हुआ था। यह बात कुंतल के अलावा ऑफिस में अधिकांश लोगों को पता था,क्योंकि वह अपने बॉस विराट सर की आशिकमिज़ाज़ी से परिचित जो थे।

ज्वाइन करने के छः महिने बाद कुंतल का अपना केबिन और ऑफिस की अधिकतर मीटिंग में कुंतल का शामिल किया जाना यह सब विराट की एक सोची समझी चाल ही तो थी।

साल भर के अंदर कुंतल विराट से इतनी प्रभावित हो चुकी थी कि अपने मन में उसके लिए एक स्पेशल ज़गह बना चुकी थी।

ऑफिस के एनुअल डे पर ज़ब विराट ने कुंतल के प्रमोशन और बढ़े हूए इंसेंटिव के लिए अनाउंस किया तो कुंतल को लगा कि यही वह शख्स है जो उसकी काबिलियत को जानता है, उसे समझता है।

लिहाज़ा उस रात ज़ब विराट ने अपना प्रणय निवेदन किया तो कुंतल ने सहर्ष स्वीकार लिया। विराट के प्रोपोज़ल ना करने की कोई गुंजाईश ही कहाँ थी। उसका अपनी पत्नी रितिका से तलाक हूए लगभग तीन साल हो चुके थे। एक बेटी थी जो अपनी माँ के पास रहती थी। कुल मिलाकर रास्ता बिल्कुल साफ था। और फिर विराट के प्रोपोज़ करने का तरीका भी तो बहुत ही आकर्षक था, जिसे कोई भी लड़की मना नहीं कर सकती थी।

कितना तो प्यारा अंदाज़ था विराट का ज़ब उस मदमाती रात में विराट ने कुंतल का हाथ पकड़कर कहा था,

"तुम्हारे आने से जो मेरे जीवन में रौशनी आई है क्या उसे अनवरत जलाए रखोगी? क्या तुम मेरी दुल्हन बनोगी?"

भावविभोर होकर कुंतल ने 'हाँ' कह दिया था पर अपना सर्वस्व सौंपने से पहले ज़रा हिचकी थी... और विवाह के बाद की शर्त रख दी थी।आखिर विराट ने शादी का आश्वासन जो दिया था।

अब एक साल बाद ज़ब उसे अचानक पता चला कि रितिका से उसका विधिवत तलाक नहीं हुआ था, दोनों सिर्फ अलग रह रहे थे। यह सब उसे ऑफिस की एक कलीग सुशाना ने बताया था। तबसे कुंतल का दिमाग उड़ा हुआ था।

कुंतल ने ज़ब विराट से पुछा तो वह बड़ी ढिठाई से बोला था,

"क्या फर्क पड़ता है जानेमन ? तलाक होते ही हम शादी कर लेंगे!"

कुंतल को समझते देर नहीं लगी कि विराट ने उसे मुर्ख बनाया था। और अब तक उसकी भावनाओं से सिर्फ खेलता आ रहा था वह भी प्रेम की चाशनी लपेटकर।

अब विराट का सारा सच जानकर कुंतल के लिए उस ऑफिस में काम करना दुभर हो गया तो उसने वहाँ से त्यागपत्र दे दिया था।

उसका मन कर रहा था कि आत्महत्या कर ले पर दादी की कही बात ने उसमें पुनः जीने की नई उमंग जगा दी थी कि.....

"जीवन को शानदार जीयो और यश कीर्ति कमाकर जीयो "

आज कुंतल का हैदराबाद में आखिरी दिन था। वह अब यहाँ से निकलकर अपने घर हिसार को रवाना होनेवाली थी। कुंतल ने सोच रखा था कि जाते ही दादी के गले लगेगी और कहेगी...

"ले कल्याणी चौधरी ! बचकर आ गई मैं उस काल के जाल से और कलुषित होने से!"

ज़ब कुंतल और दादी बिल्कुल मस्ती के मूड में होते तब वह अपनी दादी का पूरा नाम लेती थी... "कल्याणी चौधरी"

तब दादी उसे सुधारकर कहती,

"ना..... ना..... पूरा नाम ले श्रीमती कल्याणी चौधरी जाखड़"

और फिर दोनों दादी पोती बिंदास होकर देर तक हँसती रहती।

आज इस शहर को अलविदा करने से पहले कुंतल एक शुक्रिया अदा करना चाहती थी... इस शहर ने उसे जीवन की एक और सच्चाई से अवगत कराया था कि किसी पर आँख मुंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए। बाकि दादी से सीखा हुआ ही तो काम आया था जो समय रहते कुंतल चेत गई थी। दादी ने ज़ब कौमार्य को विवाह तक सहेज़कर रखने की बात समझाई थी तब वह कितना हंसी थी और दादी को कितना ओल्ड फैशंड कहा था पर आज उसी दादी की बात ने उसे जीवन में पूरी तरह से गुमराह होने से बचा लिया था। उसी उसी पुरातन सोचवाली दादी की बात ही तो याद रह गई थी उसे जब उस रात विराट ने कहा था,"जब हम शादी करने वाले हैं और हम मन से एक दुसरे के हो चुके हैं तो क्यों ना एक दूसरे पूरी तरह सौंप दें और एक हो जाएं। उस दिन कुंतल तो विराट की प्यार भरी बातों से सराबोर होकर और भावनाओं में बहकर विराट की बाहों में मदहोश होने ही वाली थी एन वक्त पर दादी की बात याद आ गई ,

"जो तुझ से विवाह करना चाहेगा वह तुझे विवाह से पहले शारीरिक संबंध बनाने के लिए कभी भी जोर जबरदस्ती नहीं करेगा। विवाह पूर्व शारीरिक मिलन वर्जित नहीं है पर अगर विवाह के बाद ऐसे संबंध बने तो एक स्थायित्व के साथ मन के किसी कोने में एक दूसरे के प्रति सम्मान और प्रेम की भावना उपजती है।धैर्य भी एक दूसरे का सम्मान ही तो है। कई बार समय से पहले पके हुए फल खा लिए जाएं तो उतने स्वादिष्ट नहीं होते जितने की पक जाने के बाद खाने पर होते हैं। प्रेमसंबंध भी एक ऐसा ही फल है एक दूसरे को समझ कर प्रेम में अभिभूत होकर एक दूसरे में समा कर आपसी समर्पणभाव से बनाए जाएं तो कदाचित उसके लिए विवाह होना ना होना उतना महत्व नहीं रखता है।लेकिन ऐसा अनहद प्रेम हो एक दूसरे पर विश्वास हो तो इस मधुर मिलन को विवाह तक संजो कर रखने में दोनों को ही आनंद भी आता है और दोनों की सहमति भी होती है।जब साथ चलना ही है ,जीवन भर साथ रहना ही है तो इतना उतावलापन क्यों?"

बस दादी की यह बात याद आती है ही कुंतल विराट से छिटक कर अलग हो गई थी और स्पष्ट शब्दों में कह दिया था सॉरी विराट मैं शादी से पहले ऐसे संबंध बनाने में कंफर्टेबल नहीं हूं क्या हम शादी तक इंतजार कर सकते हैं उस वक्त तो विराट ने हामी भर दी थी लेकिन आज सुबह ऐसे मुंह लटका कर बैठा था जैसे कि उसकी कोई बहुत बड़ी सी ख्वाहिश पूरी होने से रह गई हो हालांकि कुंतल अपनी जगह सही थी लेकिन फिर भी उसे अंदर ही अंदर बुरा लग रहा था कि कल रात विराट की बात मान ही लेती तो क्या ही हो जाता। आखिर दोनों शादी तो करने वाले हैं पर..... इस कल्याणी चौधरी का क्या करे कुंतल । ऐसी घुट्टी पिलाई है बचपन से दादी ने कि उनकी बातें ऐन वक्त पर याद आ जाती है और वह कुछ भी गलत करने से खुद को रोक लेती है। अगले दिन सुबह जब विराट कुछ उखड़ा हुआ मिला तो कुंतल को थोड़ा अपनी दादी को गुस्सा आया उन्होंने ऐसी बात क्यों समझा दी कि मैं एन वक्त पर मुकर गई विराट कितना नाराज है क्या ही हो जाता अगर कल मैंने खुद खून को सौंप दिया होता अपने दिमाग का क्या करें कुंतल यह सही वक्त पर सही गलत का सिग्नल जो देने लग जाता है एक तो यह कल्याणी चौधरी ने मेरा दिमाग खराब कर रखा है अपने केबिन में जाते हुए कुंटल यही सोच रही थी अक्सर वह बिंदास होकर दादी को पूरे नाम से बुलाते जब कभी वह दादी के बारे में अकेले में भी सोचती तो उसे इसी नाम से बुलाते पता नहीं क्यों से बड़ा मजा आता था दादी का नाम लेकर कल्याणी चौधरी। कुंतल दादी का पूरा नाम लेती थी कल्याणी चौधरी और दादी सुधार करके दादाजी का नाम भी लगा कल्याणी चौधरी जाखड़ हूं मैं। और फिर दोनों देर तक हंसती रहती।

एक तरफ जहां कुंतल सोच रही थी कि विराट उसकी वजह से नाराज है वहीं विराट के मन में अपनी चोरी पकड़ी जाने का भी डर था अपना झूठ खुलने का भी तो डर था।खुद को बहुत कोसने के बाद आखिर कुंतल ने मन को समझाया ठीक है दादी की वजह से दादी की सीख की वजह से वह और विराट एक नहीं हो पाए तो कोई बात नहीं पर अब जल्दी ही शादी कर लेंगे तो विराट की सारी नाराजगी दूर हो जाएगी। दादी की वजह से और विराट एक नहीं हो पाए उसने मन में सोचा शादी जल्दी कर लेंगे विराट की नाराजगी दूर हो जाएगी।

किधर विराट कुछ कुछ समझने लगा था की कुंतल को हासिल करना इतना आसान नहीं था।एक तो उसके काम में गलती निकालना मुश्किल था, वह अपने काम में बहुत ही निपुण थी। और दूसरे वह बहुत समझदार भी थी।अपनी मंशा पूरी ना होते देख विराट ने धीरे-धीरे कुंतल से दूरी बनानी शुरू कर दी थी।

कुंतल को लगता था कि विराट उसकी बात पर नाराज है पर जब एक दिन उसकी कल एक सुसाना ने उसे बताया कि विराट का अभी तक विधिवत तलाक नहीं हुआ है और वह ऑफिस में आने वाली खूबसूरत लड़कियों को अक्सर अपना निशाना बनाता है तब कुंतल की जैसी आंखें खुल गई वह कुंतल जो अपने आप को बहुत समझदार समझती थी और सबसे कहती फिरती थी कि वह लोगों की आंखें देख कर उनके दिल का हाल जान लेती है। भला इतनी समझदार कुंतल विराट की आंखें देखने में कैसे धोखा खा गई। आखिर क्यों नहीं जान पाई वह कि इतनी लच्छेदार बातें करने वाले विराट के मन में ऐसा चोर छुपा होगा बड़ा सोचती थी कि वो आंखें पढ़ कर इंसान को पहचान लेगी तो विराट की आंखों में उसने क्यों नहीं देखा कि सिर्फ उसका शरीर हासिल करना चाहता है उसे प्रेम नहीं करता। देखती भी कैसे? जब विराट उसके सामने होता था तब कुंतल की निगाहें शर्म से नीचे जो झूक जाया करती थी।प्यार हो गया था कुंदन को विराट से पहला प्यार जो कॉलेज में नहीं हुआ हाई स्कूल में भी नहीं।

इसके पहले कुंतल को प्यार होता भी कैसे स्कूल और कॉलेज में यह तो यही कल्याणी चौधरी की बातें दिमाग में गूंजती रहती थी।

"पहले कुछ बन जा, अपने पैरों पर खड़ी हो जा फिर प्रेम प्यार शादी ब्याह करना। तभी तो स्कूल कॉलेज में कोई बॉयफ्रेंड नहीं रहा। अब जाकर नौकरी हुई और प्रेमी मिला तो यहां भी दादी की सोच की वजह से मधुर मिलन ना हुआ। कुंतल सोचती,

" मैं तो इंतजार कर लूंगी पर विराट को कैसे मनाऊं ?"

अफसाना से विराट की असलियत जानने के बाद कुंतल अंदर से बहुत टूट गई थी फिर उसने अपने टुकड़े समेटे और जमा किया और दादी की बात याद की कि एक बड़ा नुकसान होने से बच गया छोटे नुकसान को की भरपाई हो सकती है बड़े नुकसान के लिए तो कई बार जिंदगी लग जाती है और गम नहीं भरते अच्छा हुआ कि वक्त रहते उसने खुद को संभाल लिया कई बार मन की आरती लीला समाप्त कर ले आखिर उसने विराट से प्यार किया था प्यार कभी एक तरफा हो तो तकलीफ देता है बहुत तकलीफ देता है यहां भी कुंतल के साथ यही तो हुआ था कहना आसान होता है किसी को भूल जाओ बोलने में वक्त लगता है कुंतल धीरे खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी पर हर दिन विराट का सामना ऑफिस में होने से एक बार फिर विचलित हो जाती थी।

अपनी मानसिक उथल-पुथल से खुद को आजाद करने के लिए आखिर कुंतलने एक निर्णय ले लिया कि वह यह नौकरी छोड़ देगी और यह शहर भी। इस प्रकरण में जब उसकी कोई गलती नहीं थी और उसे गलती का एहसास कराया जाता था तो बहुत ही बुरा लगता था इसलिए उसने एक दिन जी कड़ा करके इस नौकरी से अपना त्यागपत्र दे दिया

आज एक नव विहान नई सोच लिए कुंतल अपने अंदर जीवन के अगले सफ़र के लिए खुद में काफ़ी सकारात्मक ऊर्जा महसूस कर रही थी।

कुंतल सोच रही थी कि अच्छा हुआ उसे समय रहते विराट की असलियत का पता चल गया... "सुबह तो कब की हो चुकी थी पर मुझ स्टुपिड की आँख देर से खुली "

बोलते हूए कुंतल मुस्कुरा पड़ी।


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