सत्यमेव जयते
सत्यमेव जयते
लंबे समय से इंसाफ के इंतजार में लगी सुरभि का न्याय में विश्वास उस समय उठ गया, जब झूठ का पलड़ा 'सत्यमेव जयते' पर हावी हो गया । चंद पतित सोच के न्यायमूर्ति की कुर्सी के पायदान
पद की गरिमा और आत्मा की आवाज को नजरअंदाज करते हुए मोटी-मोटी सिफारिशों तथा जेब के भार पर टिके थे। अश्रुओं से सजल उसकी हिरनी सी आँखें न्यायमूर्ति की कुर्सी तथा 'सत्यमेव जयते' को तब तक घूरती रही जब तक सब आँखों से ओझल नहीं हुआ। लेकिन सुरभि की घूरती आँखों और उसकी उजड़ी दुनिया से बेखबर न्यायमूर्ति के कुर्सी के पायदान फिर से 'सत्यमेव जयते' के पुण्य कर्म में लीन हो गई।