स्टार्ट अप
स्टार्ट अप
‘बेटा बी टैक करके अब तू जयपुर में क्या करता है ?’
‘नानाजी हमने अपना स्टार्ट अप चालू किया है।’
‘कितनी तनखा मिल जाती है?’
‘तनखा नहीं मिलती जितना काम करो उसके हिसाब से पैसे मिल जाते हैं।’
‘काम तो मिल जाता है?’
‘काम भी ढूंढना पड़ता है वैसे ट्यूरिस्ट कंपनियों से टाई अप कर रखा है. जिनसे काम तो मिल जाता है।’
‘फिर भी महीने में कितना कमा लेता है ?’
‘कोई पक्का नहीं है नानाजी।’
नानाजी अपनी बेटी की ओर मुखातिब हो पूछते हैं, ‘तू इसे पैसे भेजती रहती है न।’
‘नहीं नहीं, अपना खर्चा निकाल देता है।’
नानाजी को तसल्ली नहीं हुई ‘बेटा सरकारी नौकरी की कोशिश करो जीवन में स्थायित्व तो चाहिए।’
अब कैसे समझाएं नानाजी को? वह मन ही मन बुदबुदाया।
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‘बेटा क्या हुआ तेरे स्टार्ट अप का, चल निकला या नहीं ?’
‘कोरोना ने सब ख़तम कर दिया। सैलानी आना बंद होने से एडवेंचरस स्पोर्ट का हमारा स्टार्ट अप बैठ गया है।’
‘तो फिर अब ...’
‘नया स्टार्ट अप शुरू किया है टूल डिजाइनिंग का और एक कंपनी का ऑनलाइन काम भी कर रहा हूँ।’
‘बेटा कोई नौकरी की कोशिश क्यों नहीं करता ?’
‘नौकरी है कहाँ? जो नौकरियों में थे उन सब की नौकरियां चली गई।’
‘सत्ताईस का होने जा रहा है फ़िक्र की तो बात है। फिर तेरी शादी कैसे होगी? और कौन करेगा तुझसे शादी ?’
‘वो मैंने ढूंढ रखी है वह मेरे साथ ही काम कर रही है। आप चिंता न करें।‘
‘तो ये था तेरा स्टार्ट अप।’ नानाजी मुस्करा दिये।
जुए में जुतने के बाद माँ-बाप को बेटे की चिंता नहीं रहती।