chandraprabha kumar

Children Stories Inspirational

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chandraprabha kumar

Children Stories Inspirational

सत्संग का प्रभाव

सत्संग का प्रभाव

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काफ़ी समय पहले की बात है।एक व्यक्ति परिवार के साथ गॉंव में रहता था और वह वह उस गॉंव का सरपंच था।एक बार उस गाँव में एक महात्माजी आए, वे बहुत अच्छा उपदेश देते थे और अच्छी कथा कहते थे।। बहुत से लोग कथा सुनने जाते थे और सभी कथा की बड़ी प्रशंसा करते थे।पर वह सरपंच कभी सत्संग में कथा सुनने नहीं जाता था। वह कहता था कि इससे क्या फ़ायदा।सरपंच की पत्नी बहुत धर्मप्राण थी, वह चाहती थी कि उसका पति भी सत्संग में जाये। 

 वह अपने पति से बार- बार कहती थी कि-" बड़े अच्छे महात्मा जी आये हुए हैं, आप भी जाकर उनके सत्संग में बैठा करो और कथा सुना करो"।पर सरपंच हर बार टाल जाता था। 

एक बार पत्नी के बहुत अनुरोध करने पर उसने सोचा कि -"आज सत्संग में जाकर देखते हैं, पत्नी भी खुश हो जायेगी।" वह भी उस दिन सत्संग में चला गया। 

उसको वहॉं देखकर गॉंव के आदमी खुश हुए और बोले- "आओ बैठो।"

महात्मा जी अपने में मग्न कथा कहे जा रहे थे। वह व्यक्ति कथा में आ तो गया था, पर बैठते ही उसे नींद आ गई। वह सो ही रहा था कि पॉंच मिनट बाद सत्संग समाप्त हो गया। लोगों ने उसे जगाया और कहा -"जाओ"। वह आदमी उठकर घर चला आया। 

अपनी पत्नी से उसने बताया-"आज सत्संग में गया था। "

पत्नी सुनकर खुश हुई और बोली-" वहॉं क्या सुना, मुझे भी बताओ"।

 उसने बताया कि वह जाकर सो गया था और उसने यही सुना- " आओ, बैठो, जाओ"।

 पत्नी बुद्धिमती थी। सुनकर चुप रह गई। उसने सोचा-" कोई बात नहीं,आज कम से कम सत्संग में तो गया। "

प्रकट में पत्नी ने कहा-"ठीक है, अच्छा है कि आज सत्संग में गये। सत्संग की बात को याद रखना चाहिये।"

वह आदमी बार बार दोहराने लगा- आओ, बैठो, जाओ। 

 रात में एक चोर उसके घर में चोरी करने आया। वह सरपंच बोल रहा था- 'आओ'।

 यह सुनकर वह चोर चकराया, उसने सोचा कि इसने मुझे देख लिया। वह जाने को हुआ तो उसने सुना- 'बैठो'।

अब तो वह चोर और घबरा गया। उसने सोचा कि यहॉं से जल्दी भागने में ही भलाई है। तभी उसने सुना कि वह आदमी कह रहा था-'जाओ'।

अब तो चोर को पक्का निश्चय हो गया कि इस आदमी ने उसे देख लिया है। वह सिर पर पैर रखकर भागा। इधर वह आदमी भी सो गया। 

 सुबह ही सुबह वह चोर उस आदमी के घर एक पोटली लेकर आया और बोला-" मुझे माफ़ कर दो। किसी से मत कहना कि मैं चोरी करता हूँ। मैंने महीने भर में जितनी चोरी की,उसका यह धन है, सब इस पोटली में आपके देता हूँ। आगे से मैं कभी चोरी नहीं करुंगा। "

 उस आदमी ने कहा-" मैंनें तुम्हें नहीं देखा, मैं तुम्हें नहीं जानता। यह अपनी पोटली ले जाओ। "

पर चोर को यह निश्चय हो गया कि इस आदमी ने उसे देख लिया था। चोर ने फिर कहा-नहीं, यह पोटली आप रख लीजिये अब मैं कभी चोरी नहीं करुंगा "। यह कहकर वह चला गया। 

तभी उस आदमी की पत्नी उठकर आई और पूछा कि क्या बात थी। 

तब उसने सारी बात उसे बताई और वह पोटली दिखाई। उसकी पत्नी ने कहा-" आप एक दिन सत्संग में गये और उसके प्रभाव से आपने एक चोर की चोरी छुड़ा दी। सत्संग की बहुत महिमा है। एक क्षण का सत्संग भी व्यर्थ नहीं जाता। ये जो धन आपको मिला है, इसे परोपकार में ग़रीबों की सेवा में लगा दीजिये। "

उस सरपंच ने वह धन गॉंव की भलाई में जनसेवा में लगा दिया। स्वयं भी सत्पुरुषों के संग में रहने लगा। उसे समझ में आ गया कि एक पल के सत्संग की भी बहुत महिमा है। 

अच्छे काम की शुरुआत भी अच्छा परिणाम देती है। इसलिये नीति कहती है कि श्रेष्ठ व्यक्तियों का संग करो तो आप खुद भी अच्छे बनेंगे औरों का भी सुधार करेंगे। इसलिये आप किसके साथ उठते बैठते हैं, किसको मित्र बनाते हैं, इसका ध्यान रखें। 


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