V. Aaradhyaa

Drama Tragedy Classics

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V. Aaradhyaa

Drama Tragedy Classics

स्पर्श तब अवांछित होता है ज़ब (भाग-)

स्पर्श तब अवांछित होता है ज़ब (भाग-)

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रजत सोते हुए कितना मासूम लग रहा था...उसे सुबह सुबह प्यार से निहारते हुए दामिनी को याद आ गया कि उसका हृदय कितना कलुषित है। दामिनी उठने लगी तो पता नहीं कैसे उसका हाथ रजत के हाथ से जोर से टकरा गया,और.... रजत झल्ला पड़ा।" ओह ....लगता है, तुम नहीं सुधरोगी ! तुम्हें तो बिस्तर काटता रहता है जैसे उसमें कांटे चुभे हुए हों । एक तो रात भर उकट उकटकर करवटें बदलती रहती हो , और सुबह मुंह अँधेरे उठ जाती हो "आज रजत कुछ ज्यादा ही गुस्से में था।

इसलिए दामिनी ने कुछ भी नहीं कहा और सीधे रसोई में जाकर चाय बनाने लगी।दामिनी जानती थी कि एक तो रजत को सुबह सुबह उठना पसंद नहीं है और ऊपर से आज रजत के नाराज होने की एक ठोस वजह भी थी।वैसे तो पति-पत्नी के अंतरंग क्षणों में कोई भी पहल करे, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि प्यार तो प्यार होता है ....और पत्नी जब समर्पण करती है तो हर पति को खुशी होती है।

पर .... ऐसे अतरंग क्षणों में दामिनी बहुत कंफर्टेबल नहीं होती थी। ऐसे क्षणों में उसे बहुत अजीब लगता था। क्योंकि रजत के मन में वह अपने लिए इज्जत और प्यार नहीं पाती थी। वह सिर्फ एक पत्नी का अधिकार चाहता था वह और यही बात दामिनी को पूर्ण समर्पण करने से रोक देती थी।

कल रात भी दामिनी ने रजत को मना कर दिया था ।

हालांकि...

पति के प्रेम के लिए बड़े हुए हाथों को रोकना और खुद को उसके बाहुपाश में समाने के आलिंगन में जाने के आकर्षण से रोकना बहुत मुश्किल था। लेकिन दामिनी ने ऐसा इसलिए किया ... क्योंकि वह जानती थी कि रजत जो उसका साहचार्य मांग रहा था...उसके पीछे ना तो प्रेम था और ना ही कोई पीपासा थी।बल्कि उसके पीछे जो वजह थी...वह सोच कर ही दामिनी को अपनी जिंदगी बेमानी सी लगने लगती थी।दामिनी उठकर चाय बना लाई।और रजत अभी उठने वाला था नहीं। इसलिए अपने लिए चाय का कप लेकर वह बालकनी में आकर खड़ी हो गई।

मन में विचारों की आंधी चल रही थी। और कहीं ना कहीं उसका अपना आपा जलील सा महसूस कर रहा था।प्लीज शाम ऑफिस जाने के बाद रजत में दामिनी से यही तो कहा था कि...." दामिनी ... आज शनिवार है। तुम खाने के बाद रसोई का काम खत्म करके जल्दी सोने आ जाना!"

" ओह कितना मीन सोचता है रजत....!"दामिनी ने सोचा और उसके चेहरे पर एक व्यंग भरी मुस्कुराहट आ गई।.

दामिनी को बहुत खुशी होती.... अगर वह कहता कि....

" आज हम दोनों मिलकर रसोई का काम निपटा लेंगे!"लेकिन दामिनी जानती थी कि...रजत ऐसा कभी नहीं कहेगा।

उसके अंदर जैसे मेल ईगो कूट-कूट कर भरा हुआ है।.वह कभी भी झुककर रसोई का काम नहीं कर सकता था।

और ... और....वह कभी भी दामिनी के रहते रसोई में नहीं जाता था चाहे तो दूर पानी तक गर्म करने में अपनी हेठी समझता था।

अरे....इतना ही नहीं...भले ही प्यार के समागम के क्षणों में तो वह उसके पैरों के अंगूठे को चूम भी लेता था।

लेकिन....अगर कभी दामिनी के पैरों में मोच आ गई और एड़ी से नीचे या घुटने से नीचे चोट लगी हो तो....अपनी ही पत्नी के घुटनों के नीचे वह हाथ नहीं लगा सकता था।

वह पुरुष था ना ..तो...स्त्री को के पैरों को कैसे छू सकता था भला....!!और कल रात उसी दम्भ से भरे हुए पुरुष ने जब प्यार के लिए उसे आमंत्रित किया तो उसका जो कथन था उसने दामिनी का मन अंदर से तोड़ दिया...." सुनो दामिनी! अम्मा कह रही है कि.... अब हमें एक बेटा हो जाना चाहिए। वैसे भी पहले से ही हमारी एक बेटी है। तो उसकी शादी में जो दहेज देना पड़ेगा तो बेटे से ही तो वसूल लेंगे। और तुम्हें तो पता है कि शनिवार के अलावा मुझे और किसी दिन समय नहीं मिलता तो.... आओ हम बेटे की तैयारी करें!"

" ओह....इसे तो शब्दों को सजाकर बोलना भी नहीं आता ....?"

दामिनी ने मन ही मन में सोचा।

" कितना मैनिपुलेटिव है रज़त....!"

और कितनी अलग सी अजीब सी सोच है इसकी।

चलो... वह यह भी मान लेती कि..." अगर रजत का मन है तो....

सिर्फ उसका मन रखने के लिए वह समर्पण कर भी देती।

पर....

रजत अपनी माँ के कहने पर उससे प्यार करने आया है ...बस गुस्से से दामिनी के अंदर की स्त्री जाग उठी।एक मानीनी स्त्री का स्वाभिमान जाग उठा था।और रजत का पुरुषत्व आहत हुआ था। झूठा पुरुष का अहम चोट खा गया था।

तभी वह चिड़चिड़ा कर उससे बात कर रहा था।तभी दामिनी ने सुना कि ....नन्हीं चिया उसे पुकार रही है।वह जग गई थी और मां को अपने आसपास नहीं देखकर आवाज लगाने लगी थी रजत को तो अपनी बेटी से कोई मतलब ही नहीं था जब उसको बेटी की मां से ही मतलब नहीं था तो बेटी से भी वह बस उतना ही मतलब रखता था कि ऑफिस से आकर जब तक जिया हंसती रहती थी तब तक उसके साथ खेलता था जैसे ही पिया रोने लग जाती या पॉटी..सुसु कर देती वह दामिनी बुलाकर उसे चिया को थमा देता था।

रजत जैसे स्वार्थी इंसान से और उम्मीद भी क्या की जा सकती थी।तो... दामिनी चिया को गोद में लेकर आई और उसके लिए दूध गर्म करने लगी।

क्रमश :

आखिर दामिनी के मन का दुख कैसे कम हुआ ?

क्या रजत की सोच बदल सकी....?

इन सब सवालों का जवाब जानने के लिए कृपया अगला भाग जरूर पढ़ें।


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