डाॅ सरला सिंह "स्निग्धा"

Inspirational

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डाॅ सरला सिंह "स्निग्धा"

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सोनू उर्फ सोना

सोनू उर्फ सोना

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रामू के पिता कानपुर के एक छोटे से गाँव में रहते थे।एक डेढ़ बीघा खेती के सहारे पूरा परिवार पल रहा था। परिवार में माँ-बाप पत्नी व दो लड़के रामू और हरी। रामू ने आठवीं करके वहीं के एक मिस्त्री का साथ पकड़कर एक अच्छा राजगीर बन गया। छोटा हरी भी आठवीं से अधिक नहीं पढ़ सका और वह खेती में ही पिता का हाथ बँटाने लगा। दोनों के थोड़ा और बड़े होने पर पिता ने उनकी शादी भी कर दी।

शादी के कुछ समय बाद रामू को शहर में एक अच्छा काम मिल गया और वह अपनी पत्नी बीना को लेकर कानपुर शहर में आ गया।धीरे धीरे उसने दो कमरे का एक छोटा सा मकान भी बना लिया। दोनों हँसीखुशी रह रहे थे कभी गाँव भी घूम आते कभी बीना के मायके हो आते। बीना के मायके में उसका एक ही छोटा भाई था जो पढ़ने से भागता ही रहता था।वह हमेशा इधर-उधर आवारागर्द की तरह घूमा करता।बीना तथा रामू हमेशा उसे पढ़ने के लिए प्रेरित करते पर उसपर कोई भी असर नहीं पड़ता था। 

शादी के पाँच साल बाद रामू और बीना की पहली संतान हुई। उसकी डिलिवरी घर में ही हुई थी । एक दो दिन बाद जब दोनों ने बच्चे को ध्यान से देखा तो सहम से गये।रामू ने बीना से कहा , "इस बच्चे को सँभाल कर रखना किसी की नजर इसके खाली बदन पर न पड़े और विशेष तौर से हिजड़ों की।" अगर वे सब आ गई तो ? बीना ने डरते हुए कहा। "कोई बात नहीं ,इसे अच्छे से लपेटकर उनकी गोद में डालना साथ ही कहना इसकी तबियत ठीक नहीं है तब वे इसे खोल कर भी नहीं देखेंगी।" रामू ने समझाया। और हुआ भी ऐसा ही हिजड़े आये और नाच गान करके,नेग लेकर तथा ढेर सारा आशीर्वाद देकर चले गये।हिजड़ों के सरदार ने बच्चे को आशीर्वाद दिया, "देखना यह एक दिन बहुत नाम करेगा।इसका लिलार बहुत ऊँचा है।" यह कहते हुए जब उसने बच्चे को बीना की गोद में डाला था तब बीना की जान में जान आयी थी। धीरे धीरे समय बीतता रहा। सोनू चार साल का होने को आ गया।सोनू बहुत ही सुंदर रूप रंग तथा मजबूत शरीर का भी था पर लड़कियों जैसी कोमलता भी थी। वह दिमाग से बहुत ही तेज था। "मैं इसको इतना पढ़ा दूँगा की इसकी कमियों पर किसी की नजर ही नहीं पड़ सकेगी।" रामू ने बीना से कहा। "हाँ जी,पर रोज ही डर लगा रहता है की कहीं उन लोगों को इसके बारे में भनक न लगे नहीं तो वे जबरन इसे उठा ले जायेंगे।" बीना ने अपने मन का डर जाहिर किया। "डरो मत बीना । इसे कुछ सालों तक सँभालना पड़ेगा ,जब यह बड़ा हो जायेगा तब कोई डर नहीं रहेगा। पढ़-लिखकर अपने पैर पर खड़ा हो जाये बस यही चाहता हूँ।" रामू ने बीना को सांत्वना दी।अगले दिन पास के ही एक स्कूल में रामू ने अपने बेटे सोनू का नाम लिखवाने गया। इसका नाम क्या है? रामू और बीना एक दूसरे का चेहरा देखने लगे फिर रामू ने कुछ काँपते हुए कहा," सर इसका नाम सोनू लिख लीजिए।" ठीक है ? लड़का या लड़की ?रामू को काटो तो खून नहीं उसे लगा यह अध्यापक कुछ जानता है क्या? वह कुछ भी कहता उससे पहले सोनू को पैंट शर्ट में देखकर बोलते हुए लिखा , "लड़का ।" रामू की जान में जान आयी।सोनू का नाम लिख गया। रामू की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। वह बाजार जाकर स्कूल की वर्दी, किताब, काॅपियाँ पेंसिल बाॅक्स तथा टिफिन बाॅक्स व अन्य सभी चीजें खरीद कर लाया। सोनू को सुबह रामू विद्यालय छोड़ने जाता तथा छुट्टी होने पर बीना जाकर ले आती। सोनू पढ़ने के साथ-साथ ही खेल में भी बहुत होशियार था। धीरे धीरे समय बीतता रहा और सोनू आठवीं कक्षा में भी पूरे विद्यालय में प्रथम आया। रामू तथा बीना अपने बेटे की उन्नति से बहुत खुश थे। डर और खुशी दोनों ही साथ साथ चल रहे थे। सोनू के आठवीं पास करने पर रामू का डर काफी कम हो चला था। फिर भी वे दोनों हमेशा ही सतर्क रहते थे। कहते हैं जो ज्यादा सगा होता है कभी-कभी वही पीठ में खंजर घोपता है।सोनू की गर्मी की छुट्टियाँ चल रही थीं । इसी समय वहाँ बीना का इकलौता आवारा भाई भी वहाँ आया हुआ था। सोनू की कद काठी से कोई भी उसके थर्ड जेंडर का अनुमान नहीं लगा सकता था । परन्तु उसमें एक ही बड़ी कमी थी की जैसे ही कहीं पर ढोल मजीरा आदि बजता था उसके पैर भी उनके साथ ही साथ थिरकने लगते थे। बीना के पड़ोस में ही किसी को बेटा हुआ था । खूब गाना बजाना चल रहा था। बीना को डर लग रहा था की कहीं कोई सोनू को नाचते न देख ले । 

बीना जो बात अभी तक सारे लोगों से अब तक छिपा लायी थी वही बात उसने अपने आवारा भाई को अपना परम हितैषी समझकर बताते हुए कहा,"कुन्दन तू इसे एक हफ्ते के लिए अपने घर ले जा ,जाने क्यों मुझे बहुत ही डर लग रहा है। " "नहीं,दीदी बिमला तो मायके गयी है फिर कौन इसे बनायेगा खिलायेगा। तुम परेशान मत हो सब कुछ ठीक हो जायेगा,मैं इसे अपने साथ साथ रखूँगा।" कहते हुए उसने एक कुटिल मुस्कान से भाँजे की ओर देखा। बीना ने भाई की बात सुनकर चैन की साँस ली। उसने यह बात रामू को भी नहीं बतायी थी।कुन्दन के दिमाग में षडयंत्र चलने लगा।वह सोनू को रास्ते से हटाकर बहन की सेवा के बहाने अपनी पत्नी के साथ बहन के घर में आजीवन बसने की योजना बनाने लगा। दूसरे दिन दोपहर में वह चुपचाप हिजड़ों के इलाके में पहुँच गया और उनके गुरू किशोरी को सारी बातें समझा दीं। किशोरी और कुन्दन दोनों एक दूसरे को देखकर जोर से हँस पड़े। कुन्दन अपने राह के काँटे को हटाकर खुश हो रहा था।वह सोच रहा था की अब वह बहन के मकान में पूरे ठाठ से रहेगा। किशोरी से इंसानी रिश्ते के इस नापाक इरादे पर व्यंग्य से हँस रहा था किन्तु वह अपने आय का एक बढ़िया स्रोत भी नहीं खोना चाहता था। दूसरे दिन सुबह किशोरी अपनी मंडली के साथ बगल के मकान में नेग लेने पहुँच गया।खूब जोर जोर से नाचने गाने का मर्दाना सा स्वर गूँज उठा। रामू काम पर जा चुका था। बीना बेटे को अन्दर ही रखना चाहती थी किन्तु कुन्दन का इरादा वह नहीं भाँप सकी। कुन्दन ने चाल चली उसने सोनू को कहा, "चल नाच देखते हैं।" "पर मामा जी मम्मी ने मना किया है।" सोनू ने मामा से कहा। "अरे कोई नहीं,मैं हूँ न तुम्हारे साथ फिर तुम क्यों डरते हो ?और सोनू को लगभग खींचते हुए बगल के घर के सामने जाकर खड़ा हो गया।उसकी ओर जैसे ही किशोरी गुरू की नजर पड़ी दोनों ही नजर ही नजर में मुस्कुरा पड़े। कंस मामा ने सोनू की ओर इशारा कर दिया। अब किशोरी गुरू के तीन चेलों ने नाचते नाचते दौड़कर सोनू को पकड़ लिया और सबके सामने ही उसके अधोवस्त्र को नीचे खींच दिया। तब तक सोनू की माँ भी वहाँ पहुँच गयी किन्तु किशोरी गुरू ने उसकी एक भी बात नहीं सुनी। "अरे मेरी सोन परी ,मेरी सोना तुम अब तक कहाँ छिपी थी ? तुम्हारा घर यहाँ नहीं मेरे यहाँ है। " सोनू और उसकी माँ दोनों ही रोते रहे पर किशोरी गुरू ने उनकी एक नहीं सुनी। वे लोग जबर्दस्ती सोनू को उठा ले गए।

 इधर कुन्दन ने जबरदस्त नाटक किया वह अपना सिर पीट-पीटकर रो रहा था।कुन्दन बहन को पकड़कर रो रहा था मानों उसे कुछ भी पता न हो। शाम को रामू को जब यह बात पता चली तो वह दौड़कर किशोरी गुरू के यहाँ पहुँचा, वहाँ वह उनके पैर पड़कर अपने बच्चे की भीख माँगने लगा किन्तु किन्नर किशोरी गुरु का कलेजा नहीं पिघला। रामू हारकर वापस लौट आया उधर सोनू रोता ही रहा। धीरे धीरे उसने इसे अपनी नियति मानकर स्वीकार कर लिया।उसे सोनू से सोना का रूप धारण करना पड़ा। थोड़ा बड़ा होने पर वह भी उन लोगों के साथ ही साथ नाचने गाने लगा।इधर कुन्दन अपनी योजनानुसार वह बहन की सेवा के नाम पर अपनी पत्नी को भी ले आया। अब बहन बहनोई के घर में वह पूरी आजादी से रहने लगा। साल दर साल बीतने लगे।अब तक कुन्दन दो बच्चों का बाप भी बन चुका था। बहन ने भी इसे अपनी नियति मान लिया वह भाई के बच्चों को पालने लगी।सोनू लाख रोया गिड़गिड़ाया किन्तु किशोरी गुरू का दिल नहीं पसीजा। सोनू अब सोना बन गयी। नाच गाकर किशोरी गुरू के खजाने को भरने लगी।उसके मन में अपने मामा से बदला लेने की एक जबरदस्त इच्छा भी बनी हुई थी।धीरे धीरे आठ साल गुजर गए सोनू तेरह वर्ष से इक्कीस साल का हो गया। किशोरी गुरू भी सोनू उर्फ सोना से बहुत खुश था। सोनू की सेवा से खुश होकर आखिर उसने भी सोनू का साथ देने का मन बना लिया। उसे अपने किये पर पछतावा भी हो रहा था। 

 सोनू ने पता किया की उसके मामा के यहाँ तीसरी संतान भी आने वाली है । बस योजनाबद्ध तरीके से काम चालू हो गया।किशोरी ने तय किया की इस होनहार लड़के को वह किसी तरह इसके घर छोड़ देगी। मामा की तीसरी संतान हुई ,बेटा।बस बधाई देने किशोरी का ग्रुप पहुँच गया। सोनू उर्फ सोना को सख्त हिदायत दी गयी की वह अपना घूँघट बिल्कुल नहीं खोलेगी ताकी कोई भी उसे पहचान न सके। जब नाच गाना चल रहा था उस समय सोनू की माँ की नजरें अपने बेटे को खोज रही थीं पर वे किसी को भी पहचान नहीं पा रही थीं। सोनूअपने गन्दे कंस मामा को खोज रहा था पर वह कहीं भी नजर नहीं आ रहा था। सोनू की माँ अपने भाई के बच्चे को लाकर किशोरी गुरु की गोद में डालते हुए बोलीं," इसे आशीर्वाद दीजिए, इसकी माँ ठीक हो जाये वह बहुत बीमार है।" "अरे क्या हुआ उसे ? " बुखार से तप रही है ,कोई दवा भी काम नहीं कर रही है।" "चिन्ता मत कर, सब ठीक होगा। तेरे ही पास रहते हैं क्या तेरे भाई -भौजाई ? "हाँ मेरे ही पास रहते हैं,उनके बच्चों में मेरा भी मन लगा रहता है।" सोना बच्चे को गोद में लेकर नाच रही थी और बधाई गा ही रही थी--- "बधाई हो बधाई पहली बधाई बुआ जी को----''गाते गाते सोनू उर्फ सोना की आँखों से आँसू बहने लगे किन्तु उसका चेहरा घूँघट में ढंका होने के कारण कोई भी उसके आँसू नहीं देख सका।इतने में ही घर के अन्दर से जोर जोर से रोने की मर्दाना आवाज आयी। बीना अन्दर भागी साथ में किशोरी और सोनू भी गए। वहाँ उसका कंस मामा दहाड़े मार मार कर रो रहा था"अरे जीजी ये क्या हो गया ? ये तो हमें छोड़कर चली गयी ।आखिर अब इन छोटे छोटे बच्चों को कौन पालेगा? किशोरी गुरू की आँखें चमक गयीं मन ही मन उन्होने ईश्वर को धन्यवाद दिया।बाहर आकर किशोरी गुरू ने कहा आप लोग दिवंगत का संस्कार करके आइए तब तक हम सब यहीं बैठेंगे। शाम को बात करेंगे की आगे क्या किया जा सकता है।सब ईश्वर की मर्जी है। शाम को घर के लोग तथा बाहर के कुछ लोग एकत्रित हुए । किशोरी गुरू ने कहा," इस कुन्दन के बच्चों को पालने के लिए ऐसी महिला की जरूरत है जो इसके बच्चे को तो संभाल ले किन्तु जो अपने बच्चे न पैदा करे।" "हाँ आपकी यह बात तो सही है ।" उसकी इस बात में वहाँ पर बैठे सभी लोगों ने भी हामी भरी।"फिर तो मेरी सोना से भली कोई नहीं ,यह इसके बच्चों को अच्छे से पाल लेगी।" थोड़े से हिचक के बाद सबने इस पर मंजूरी की मुहर भी लगा दी। कुन्दन सोना को संभाल कर नयी दुल्हन की तरह घर के अन्दर बैठा आया। सोना उर्फ सोनू एक बार फिर अपने साथियों के गले लगी और किशोरी गुरू का आभार व्यक्त किया। उसने किशोरी गुरु से गले लगते हुए कहा ,"मैं आपका यह ऋण आजीवन नहीं भूलूँगा,जब भी आपको कोई जरूरत हो आप बेहिचक मुझे याद करना ।" किशोरी ने प्यार से चपत लगाते हुए उसे अंदर जाने की हिदायत दी,परन्तु इतने साल साथ रहने के कारण उत्पन्न ममत्व भाव उनकी आँखों में भी आँसू बनकर चमक रहा था।

सबके जाने के बाद सोनू ने अपने घर को जी भरकर देखा। उसे अपना घर उसी तरह नजर आया जैसा वह आठ साल पहले छोड़कर गया था।अपने आँसू पोंछकर उसने चुपके से अपने पापा का पैंट शर्ट बाथरुम में टाँग दिया तथा माँ से नहाने के लिए बाल्टी व मग माँगा। माँ उसे सोना ही समझ रही थी उन्होंने नहाने के लिए साबुन के साथ ही साथ अपने कपड़े भी बता दिए,"बेटा ये मेरी साड़ियाँ हैं जो चाहे पहन लेना।" सोनू ने धीरे से सिर हिला दिया ,आँखों से आँसू बह रहे थे पर घूँघट में सब छिपा था।कुन्दन जो दो घंटे पहले अपनी पत्नी का दाह संस्कार करके आया था मन ही नयी दुल्हन का बेसब्री से इन्तजार कर रहा था। उसके मन में अपनी उस पत्नी की जरा भी याद नहीं थी जिसकी चिता की राख भी अभी ठंडी नहीं हुई थी।

सोनू बाथरुम में रगड़ रगड़ के नहा रहा था। वह अपने शरीर पर से सोना का नाम पूरी तरह से मिटा देना चाहता था। वह नहाकर पिता के पैंट शर्ट को पहन कर सीधे माँ व पिता के पास पहुँचा। उसके पिता व माँ एक बार तो डर गये की ये कौन आ गया जो इतनी तेजी से उनकी ओर बढ़ा चला आ रहा है किन्तु उसके पास आने पर उनकी नजरों ने अपने बेटे को पहचान ही लिया। माँ और पिता के पैर छूकर सोनू फफककर रो पड़ा ," माँ , पिता जी आप लोगों को कभी भी मेरी जरा भी याद नहीं आती थी ? पिता ने रोते हुए बताया ,"बेटा मैंने तुमको बहुत खोजा पर वह दुष्ट किशोरी तुमको लेकर जाने कहाँ चला गया था। मैंने तो तुमसे मिलने की उम्मीद ही खो दिया था।" सोनू अपनी माँ व पिता के गले लगकर पहले तो जी भरकर खूब रोया। तीनों ही बहुत देर तक रोते रहे। इधर कुन्दन इस मिलन पर जला जा रहा था पर अब वह कुछ भी नहीं कर सकता था। पूरी रात माँ बाप व बेटा मिलकर भविष्य के लिए योजना बनाते रहे। दूसरे दिन पिता ने पास के स्कूल में जाकर हाई स्कूल का फार्म भरवा दिया। सोनू ने अपनी पढ़ाई में दिन रात एक कर दिया। उसकी अथक मेहनत रंग ले आयी ।उसने हाईस्कूल में टाॅप टेन में स्थान हासिल किया। इसके बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इण्टर फिर ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की और फिर यूपी पीसीएस की परीक्षा में सफलता हासिल करके एसडीएम बन गया। 

उसके मामा के बच्चे भी जिन्हें उसकी माँ ने ही पाला पोसा था और पढ़ाया था वे भी पढ़कर अपने पैरों पर खड़े हो गये। सोनू अपने पुराने साथियों की हमेशा ही आर्थिक मदद करता है। सोनू के कुन्दन मामा भी अपने कर्मों पर अब शर्मिंदा है। वह अब थर्ड जेंडर के भलाई के लिए काम करता है।वह थर्ड जेंडर हेल्पलाइन नामक संस्था से जुड़ गया है और इस तरह के बच्चों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का अभियान चलाता है। सोनू के माता पिता को आज अपने बेटे पर गर्व है। यही नहीं आज सोनू पर समाज को गर्व है। 


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