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ARUN DHARMAWAT

Children Stories

3  

ARUN DHARMAWAT

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"संवेदना"

"संवेदना"

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पूरे शहर में बड़े जोर शोर से प्रचार किया जा रहा था । एक मशहूर सर्कस लगने वाला था जिसमें तरह तरह के हैरत अंगेज कारनामों के साथ 

दावा किया जा रहा था एक विचित्र प्राणी दिखाने का जिसे आज तक किसी ने नहीं देखा । 


रोज़ी जिसे प्रकृति, पशु पक्षी नदी, झरने, जंगल से बेहद लगाव था । उसने जब ये प्रचार देखा तो उसे भी उत्सुकता हुई कि सर्कस वाले आखिर कौनसा विचित्र प्राणी दिखाने वाले हैं । 


नियत दिवस पर रोज़ी भी सर्कस देखने पहुंची । ऐसा लग रहा था मानो पूरा शहर ही उमड़ पड़ा हो । भिन्न भिन्न करतबों एवम मनोरंजन के अनेक सुंदर कार्यक्रमों के बाद घोषणा हुई । अब हम आपके समक्ष प्रस्तुत करने जा रहे हैं हमारा वो खास आइटम जिसे देख कर आप दाँतों तले उंगली दबा लेंगे । तालियों की गड़गड़ाहट और करतल ध्वनि के साथ एक विशालकाय गोरिल्ला लाया गया । रिंग मास्टर अपने हंटर से उसको निर्देश दे रहा था और वो प्राणी उसके आदेशों का पालन करते हुए करतब दिखा रहा था । उपस्थित जन समूह हर्ष ध्वनि से तालियां बजा रहा था लेकिन रोज़ी का मन दुःखी हो गया ।


शो समाप्त हो चुका था व्यथित मन से रोज़ी ने सर्कस के मैनेजर से निवेदन किया कि वह गोरिल्ला से मिलना चाहती है ।

मैनेजर पहले तो मना कर देते हैं किंतु रोज़ी के आग्रह एवम सर्कस की तारीफ़ करने के बाद तैयार हो जाते हैं । रिंग मास्टर की उपस्थिति में रोज़ी को गोरिल्ला से मिलने की अनुमति मिल जाती है ।


एक छोटे से पिंजरे में कैद उस गोरिल्ला को देख, रोज़ी का मन रो पड़ता है लेकिन अपनी भावनाओं पे अंकुश लगाते हुए वो रिंग मास्टर से उसके खान पान के बारे में बातें करती है ।

पिंजरे के नजदीक जा कर गोरिल्ला की तरफ एकटक देखती है । फिर रिंग मास्टर से

उसके बारे में जानकारी हासिल करती है कि ये दुनिया के किन स्थानों पर पाया जाता है । मुख्यतः किन जगलों में ये रहता है आदि आदि । 


व्यथित मन से रोज़ी लौट जाती है । उस रात रोज़ी को नींद नहीं आती और वो बस उस निरीह प्राणी की दशा के बारे में ही सोचती रहती है । सोचते सोचते रोज़ी कुछ संकल्प करती है और निश्चिन्त होकर अगले कदम की योजना बनाती है ।


आज रोज़ी फिर सर्कस देखने जाती है और शो के बाद पुनः गोरिल्ला से मिलती है । साथ में उसकी पसंद की खाने की चीजें भी लेकर जाती है । ये सिलसिला कई दिनों तक चलता है अब गोरिल्ला भी रोज़ी को पहचानने लगता है । रोज़ी का रोज सर्कस देखने आना और गोरिल्ला से मिलना

उस मूक जानवर को भी अच्छा लगने लगता है ।


आज रोज़ी पशु क्रूरता निवारण विभाग के अधिकारियों एवं पुलिस दल बल के साथ सर्कस पहुंचती है और मैनेजर सहित तमाम व्यवस्थापकों को कानूनी नोटिस दे कर गोरिल्ला को आज़ाद करने का आदेश थमाती है । इतनी बड़ी संख्या में दल बल देख कर सर्कस वाले कुछ नहीं कर पाते और उन्हें उस निरीह प्राणी को उनके सुपुर्द करना पड़ता है ।


छोटे से पिंजरे से निकल गोरिल्ला जब पशु क्रूरता निवारण विभाग की बड़ी गाड़ी गाड़ी में ले जाया जाता है तो गोरिल्ला अपनी भावनाओं को रोक नहीं पाता और रोज़ी के तो खुशी का ठिकाना ही नहीं होता । रोज़ी के चेहरे पर खुशी और आत्मिक संतोष की आभा छलक पड़ती है और बरबस उसके मुंह से निकल पड़ता है .......

"इन मासूम निरीह प्राणियों को इनके मूल स्थान से पकड़ कर कैद करना इंसानियत नहीं, इन्हें भी खुली हवा में सांस लेने और जीने का हक़ है ।

लेकिन अपने स्वार्थ में डूबे हम इंसान ये बात क्यों नहीं समझते ?"



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