संस्मरण- डर या साहस
संस्मरण- डर या साहस
वह दिन मुझे आज भी याद है जब मैंने अपने अंदर के डर और साहस दोनों का एक साथ सामना किया था। घर के सामने मेडिकल स्टोर पर जब एक ग्राहक स्टोर के मालिक के पीछे मुड़ने पर उसके टेबल पर रखे सन ग्लासेस चोरी से छिपाकर, दवाई खरीदकर चलता बना। उसे नहीं पता था कि, मालिक तो पीछे मुड़ गया लेकिन उसके पीछे भी कोई और है जो उसकी इस हरकत का चश्मदीद गवाह है। मालिक को चश्मा ढूंढते देखा तो पहले तो कुछ डर महसूस हुआ कि सच बोलने पर कहीं मैं खुद किसी परेशानी में न पड़ जाऊं लेकिन, मन पक्का कर कुछ साहस बटोर कर उस दुकानदार को जाते हुए ग्राहक की ओर इशारा कर बताया तो उसने उसे लपककर पकड़ा और पुलिस की धमकी देने पर उसने दुकानदार के हाथ में चश्मा थमा दिया। दुकानदार ने घर आकर मेरे पिताजी से मेरे प्रति कृतज्ञता जाहिर की।