प्रीति शर्मा

Drama Tragedy Classics

4.8  

प्रीति शर्मा

Drama Tragedy Classics

"संस्कारों का भुगतान "

"संस्कारों का भुगतान "

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सुबह-सुबह सभी कामों से फुरसत पाकर सुमित्राजी आराम की मुद्रा में चाय की चुस्कियों के साथ अखबार पढ़ रहीं थीं।समाचार पढ़ते हुए उनका जी कसैला सा हो गया। रोज इसी प्रकार की खबरें होती हैं, मर्डर, रेप डकैती, एक्सीडेंट।कुछ अच्छी खबर ही नहीं दिखतीं।वह मन ही मन झुंझला रही थीं।10:00 बज गए थे कामवाली बाई अभी नहीं आई थी। वह बर्तन खाली करने में जुट गईं।बच्चे काॅलेज जा चुके थे और पति दफ्तर।

दो घंटे बाद कामवाली बाई आई तो उसे परेशान सा देख वह डांटते -डांटते रह गई और देर से आने का कारण पूछ लिया और वह अपना रोना लेकर बैठ गई। 

क्या बताऊं बीबीजी श्रीकृष्ण स्कूल में मेरी बेटी छठी में पढ़ती है।बड़ी मुश्किलों से पेट काटकर हम उसे पढ़ा रहे हैं पर गरीब पर तो हर तरफ से मार है। सुबह- सुबह स्कूल जाते हुए दो लड़के बाइक से एक्सीडेंट करके भाग गए।हास्पीटल भी नहीं पहुंचाया।मेरी बेटी की तो एक टांग टूट गई। प्लास्टर चढ़वा के आई हूं, बीवीजी।पूरे 10,000 मांगे डॉक्टर ने।बड़ी मुश्किल से पति के साब की सिफारिश पर 8,000 लेने को राजी हुए।मेरे पास उस समय पैसे भी न थे।वह तो साब ने ही जमा कराए लेकिन शाम को उनके सारे पैसे चुकाने हैं। तो सभी घरों से दो-दो हजार मांगुगी।हम गरीबों का तो कंगाली में आटा गीला होने वाली बात है।एक सांस में वह सारा कुछ बता गई।

सारी बात सुनकर सुमित्राजी को गुस्सा आ गया।पूछने लगी लड़के पकड़े नहीं गए क्या ?

बाई बोली, सड़क पर कौन था जो पकड़े जाते। वह तो बाइक पर भाग गए।अब सुबह-सुबह तो दुकानें भी नहीं खुली थीं। कोई देख भी न पाया।मेरे को पता लग जाता या मिल जाते तो पुलिस में दे देती। मेरी बेटी की तो पता नहीं टांग ठीक से जुड़ेगी भी या नहीं।अचानक आई विपदा से बाई परेशान थी।

 सुमित्राजी अभी बड़बढ़ाये जा रही थी।आजकल के लड़के -लड़कियां ठीक से देखकर तो चलते ही नहीं।गाड़ी को हवा की तरह चलाते हैं।पता नहीं मां-बाप क्या संस्कार दे रहे हैं?

आज के बच्चे भी ना जाने किस दिशा में जा रहे हैं..?

वह भी तो रोज रोहित को जाते समय समझाती टोकती हैं पर आजकल बच्चे मानते कितना हैं?उन्होने ठंडी सांस ली।

खैर बाई ने जैसे-तैसे बर्तन साफ किये और सुमित्रा से दो हजार एडवांस की मांग रखी।सुमित्रा अंदर पैसे लेने,ये सोचती हुई गई कि हजार रुपए दे दूंगी और अगले महीने में काट लुंगी कि तभी फोन की घंटी बजी।

फोन पर बेटा रोहित था।मम्मी अकाउंट में पांच हजार डाल दो।

 सुमित्रा घबरा गई, क्या बात हुई बेटे....?

उधर से खामोशी रही।

पैसे की जरूरत क्यों पड़ी..? क्या हुआ...,कुछ तो बता।

वह सुबह कालेज जाते हुये मोटरसाइकिल का एक्सीडेंट हो गया था और ....उधर से बात अधूरी थी।

.तू ठीक है.......

मैं ठीक हूं।मोटरसाइकिल ठीक कराई है तो पेमेंट करना है। 

 एक्सीडेंट कहां हुआ?उन्होंने संशय में पूछा।

श्रीकृष्ण स्कूल के पास...।

 सुमित्रा का दिमाग घूम गया।उसके सामने सारी बात साफ हो गई थी।फोन रख दिया, ठंडी सांस लेकर कमरे में बैठी रह गई।

कुछ देर बाद बाहर आई और उन्होंने बाई के हाथ में पांच हजार रूपए चुपचाप रख दिए,ये सोचते हुये कि वापिस नहीं लेगी।

 बाई उसे दुआयें देती हुई चली गई।सुमित्रा ने जो कुछ अभी थोड़ी देर पहले बाई से कहा था, वह उसके दिमाग में गूंजने लगा। 

 यह संस्कारों का भुगतान था या मां की ममता की कीमत...?


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