Shalini Dikshit

Inspirational

4.2  

Shalini Dikshit

Inspirational

संस्कार

संस्कार

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"पापा मम्मी, आज विशाल और उसकी मम्मी आ रहे हैं; याद है न आपको?" नेहा ने अपने पापा से कहा।

"क्यों आ रहे हैं वह दोनों? मैं तुमसे कह चुका हूँ कि मैं विशाल से तुम्हारी शादी नहीं करूँगा।" अशोक ने गुस्से में कहा। 

"आंटी आप लोगों से मिलना चाहती हैं, वह बहुत अच्छी हैं......." नेहा ने पापा को समझाया।

"हाँ-हाँ मैं समझ चुका हूँ कि वह कितनी अच्छी है। तुम उनको बार-बार विशाल की मम्मी क्यों कहती हो जबकि वो विशाल की बुआ है।"- अशोक और गुस्से में बोले।

"पापा मैंने तो सब कुछ पहले ही बताया है; आंटी किसी लड़के को पसंद करती थी लेकिन उसने आंटी को धोखा दे दिया, शादी नहीं की फिर आंटी ने तो किसी से शादी नहीं की अपने दोनों भतीजो में से एक को गोद ले लिया।आंटी को भी तो अपने जीवन के लिए कोई सहारा चाहिए था तो अब तो वही विशाल की मम्मी है उन्होंने ने ही उसको बड़ा किया पढ़ाया लिखाया। विशाल पढ़ने में अच्छा है; नौकरी भी उसकी मुझसे बहुत अच्छी है, जाति भी हम दोनों की एक ही है फिर आप क्यों नहीं करना चाहते हो उससे मेरी शादी?"

"तुम क्या सोचती हो पढ़ाई और पैसा ही सब कुछ होता है? ऐसा नहीं है सबसे बड़ी बात होती है संस्कार और चरित्र। उस महिला ने कैसे संस्कार दिए होंगे विशाल को जो कुछ चक्करों में धोखा खाए बैठी है........."

अशोक कुछ और बोलती उससे पहले दरवाजे की घंटी बजी। 

"लगता है वह लोग आ गए।" बोल के नेहा दरवाजा खोलने चली गई।

"नमस्ते आंटी! आइए अंदर! आप अकेली आई है विशाल नहीं आया?" नेहा ने शिल्पी को अंदर लाते हुए पूछा।

"बेटा उसको ऑफिस से फोन आ गया था; तो जाना पड़ा। वही मुझे छोड़ कर गया है।" शिल्पी बोली।

नेहा शिल्पी को ड्राइंग रूम में बैठा कर बोली, "मैं अभी मम्मी-पापा को बुलाकर आती हूँ।" नेहा अपनी माँ को बुलाने ऊपर के कमरे में चली गई।

अशोक ने अपने मन में इरादा बनाया कि वह अभी विशाल की मम्मी को खरी-खोटी सुनाकर चलता कर देंगे इसलिए वह अकेले ही ड्राइंग रूम में आ गए।

"नमस्ते!!.." अशोक कड़क आवाज में बोले।

शिल्पी सोफे पर सर नीचे झुकाए हुए बैठी थी उसने अभिवादन के लिए सिर ऊपर किया और नमस्ते में हाथ जोड़ दिए।अशोक की आंखें फटी की फटी रह गई अपनी प्रेमिका शिल्पी को इतने वर्षों बाद देखकर।

शिल्पी की आंखों में खून उतर आया वह बोली, " तुम? नेहा तुम्हारी बेटी है? मैं तुम्हारे किए की सजा बच्चों को नहीं देना चाहती।" इतना कहकर शिल्पी अपने चेहरे के गुस्से को नार्मल करने की कोशिश करते हुए सोफे पर बैठ गई।


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