संस्कार
संस्कार
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"ढिशुम, ढिशुम, ढिशुम !
अच्छा अब देखो ढिच्क्यॉंन्ग, ढिच्क्यॉन्ग।" यात्रा के दौरान सीता की बगल की सीट पर बैठे सहयात्री ने आगे की सीट पर बैठे अपने पोते "रोहन" के साथ खेलते हुए कहा।
थोड़ी देर दादाजी को एक टक देखने के बाद रोहन बोला- " दादा जी यह सब तो लड़ते समय करते हैं न? लेकिन दादी तो कहती है लड़ना हमारे संस्कार नहीं।" निरुत्तर दादाजी ने अपने दोनों कान पकड़ लिए।