संगति का असर
संगति का असर
अच्छे लोगों के संग से बुद्धि श्रेष्ठ होती है, जीवन उत्तम होता है। जीवन प्रकाशमय होगा जब अच्छे लोगों का सत्संग होगा। सब कार्यों में सफलता मिलेगी, जीवन शॉंतिमय होगा। स्वाति नक्षत्र की वर्षा से जब जल बॉंस पर पड़ता है तो वंशलोचन बनता है, सीप के संपुट में पहुँचकर मोती और सर्प के मुख में पहुँचकर वही विष बन जाता है। वही जल संग के कारण कहीं मोती ,तो कहीं विष ,कहीं दवा बन जाता है।
एक काग व हंस में मित्रता हो गई। काग, जिसे कौआ भी कहते हैं, हंस के पास आता, बैठता, बातचीत करता। कुछ समय बीतने पर कव्वा (कौआ) कहने लगा," मुझे आपकी बातें बड़ी अच्छी लगती हैं। कभी आप मेरे पास नहीं आए, मेरे घर नहीं आए। मेरे घर भी आइये। "
हंस ने कहा-" मैं आपके घर आऊँगा। "
हंस कव्वे के पास गया। कव्वे के रहन- सहन में गंदगी थी। वह वट वृक्ष के कोटर में गंदगी से रहता था। हँस को दुर्गन्ध आने लगी। हंस बहुत सात्त्विक जल पक्षी है, शानदार ढंग से साफ़ सुथरा रहता है नदी या सरोवर के नज़दीक, और शाकाहारी है।
हंस कव्वे से बोला-" कहीं ऐसे स्थान पर ले चलो जहाँ पर अच्छी जगह हो, वहीं बैठकर बातें करते हैं।"
कव्वे ने हंस से कहा, "ठीक है, आपको अच्छे स्थान पर ले चलते हैं।" दोनों उड़ चले। उड़ने में भी हंस तेज गति से उड़ता है।
काग हंस को राजा के बग़ीचे में ले गया। वहां शीतल मन्द समीर बह रही थी, अच्छे अच्छे फूल खिले हुए थे। अच्छा वातावरण था। दोनों एक पेड़ की डालकर बैठ गए और बातें करने लगे।
थोड़ी देर में राजा वहॉं आया, पेड़ के नीचे बैठा । पेड़ के नीचे राजा शयन करने लगा।
हंस ने देखा राजा के मुँह पर धूप आ गयी, उसे छाया करनी चाहिये। हंस साधु प्रकृति का था, वह हमेशा दूसरों को सुख देने की बात सोचता था। हंस ने अपना पर फैला दिया, राजा को छाया हो गई।
कव्वा चालाक था।कव्वे ने यह देखा तो उसने झट से विष्ठा कर दी ,जो राजा के मुख पर पड़ी। राजा को क्रोध आया, राजा ने निशाना साधा, पर कौआ तो उड़ गया, हंस फड़फड़ाता हुआ नीचे गिर गया।
हंस ने राजा से कहा-"बीट कौवे ने की थी, कौवे की कुसंगति से मैं मारा गया। मेरा जीवन कुसंग के कारण नष्ट हो गया। "
राजा को सही बात पता चली ,तो उसे पश्चात्ताप हुआ।उसने राजवैद्य से हंस का इलाज कराया।
कुसंग अर्थात् बुरे व्यक्ति की संगति ही नाश का कारण है। कभी भूलकर भी बुरे व्यक्ति की संगति न करें। जिनके विचार ठीक नहीं हैं, उनकी संगति न करें।
परमात्मा कभी बुरे व्यक्ति की संगति न दें। कुसंग से बचें। रावण ने विद्या पढ़ी पर सत्संग नहीं मिला, उसका विनाश हो गया। अच्छी संगति करें। जो जैसी संगति करता है, वैसे ही फल की प्राप्ति होती है।