डाॅ सरला सिंह "स्निग्धा"

Inspirational

4  

डाॅ सरला सिंह "स्निग्धा"

Inspirational

समय का पहिया

समय का पहिया

8 mins
397


सुबह से ही तेज बारिश हो रही थी और रह रह के बिजली भी कड़क रही थी। मालिनी जी अपने बेटे सोहन के लिए बहुत परेशान थीं । तीन दिन से वह घर नहीं आया था । हमेशा ही महीने दो महीने में वह दो तीन दिन के लिए गायब हो जाता था और जब लौटता है तब उसके हाथों में भारी रकम होती थी । मालिनी को अपने बेटे के लक्षण सही नहीं लगते थे पर वह करें भी तो क्या ? दादा ,पिता व भाई सभी उसको समझा कर हार गये परन्तु उसपर किसी का भी कोई असर नहीं पड़ रहा था।

कितने खुश थे मालिनी और महेश जब उनके घर बड़े बेटे के जन्म के लगभग दस साल के बाद दूसरे बेटे सोहन का जन्म हुआ था। महेश के पिता उस क्षेत्र के जाने माने हुए वकील थे । पूरे इलाके में मिठाई बाँटी गई थी तथा उस दिन सैकड़ों ही गरीबों को भोजन कराया गया तथा वस्त्र बाँटे गए थे।

सोहन छोटा था इसलिए सभी का लाडला बन गया था। बाबा का रुतबा पिता की शोहरत , कोठी , गाड़ी व नौकर चाकर सब कुछ घर में था। मोहन जहाँ बिल्कुल ही सीधा व शाँत स्वभाव का एक होशियार लड़का था वहीं सोहन उसके उलट तेज तर्रार तथा पैसे का लोभी। धीरे-धीरे समय भी आगे बढ़ता गया,मोहन पढ़ लिखकर एक अच्छी सरकारी नौकरी में लग गया। उसका विवाह वहीं  के एक सम्पन्न परिवार की पढ़ी-लिखी लड़की शमिता से हो गयी। शमिता ने आते ही पूरा घर सँभाल लिया और घर के सभी बड़ों के देखभाल करने के साथ ही वह सोहन की पढ़ाई पर भी ध्यान देने लगी।

सोहन ने जैसे तैसे बीए किया फिर बिजनेस का हवाला देकर माँ,पिता , दादा व बड़े भाई सबसे पैसे लेकर कभी वह लखनऊ तो कभी कभी बनारस का नाम लेकर निकल जाता था। इधर दादा जी बीमार रहने लगे तो उनकी बीमारी और घर का सारा खर्च अब पिता और भाई पर आ गया। सोहन की आदतों के कारण सारा घर परेशान रहने लगा। फिर पास के ही रिश्तदारी में देखभाल कर एक लड़की सोनम से यह सोच कर उसका विवाह कर दिया गया की शायद विवाह के बाद वह सुधर जाये। पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।  

  बारिश थोड़ी हल्की हुई तो सोहन तेजी से घर के सामने आता दिखाई दिया। मालिनी ने बेटे को आवाज लगाई,"बेटा कपड़े बदलकर मेरे पास आओ कुछ बात करनी है।

  " जी मम्मी जी अभी आता हूँ। " कहता हुआ सोहन अपने कमरे में आ गया।

सोनम ने उसे देखते ही आलमारी से उसके कपड़े निकाल कर टेबल पर रख दिया। कपड़े बदलकर सोहन ने अपने बैग से दो लाख रुपए निकालें और सोनम को देते हुए बोला, "लो सम्भालो ,अबकी बार इससे भी ज्यादा फायदा होगा। "

  " आपका ऐसा क्या बिजनेस है जिसमें एक सप्ताह में ही इतना फायदा होता है। मेरे भाई को भी बता दीजिए। उसको तो सालों में भी इतना अधिक फायदा नहीं मिलता है। " सोनम ने पति से आग्रह भरे स्वर में कहा।

"अरे मेरा बिजनेस सब के बस की बात ही नहीं है , इसमें दिमाग लगता है ,दिमाग। तुम ज्यादा जानने की कोशिश भी मत किया करो। " सोहन ने थोड़ा कड़े लहज़े में कहा और उठकर माँ के पास चला गया।

" प्रणाम माँ ,आपने मुझे बुलाया था। "सोहन ने माँ के पैर छुए और पास में ही कुर्सी पर बैठ गया।

  " बेटा जो कुछ भी कर रहे हो मुझे सही नहीं लगता है। तुम जरूर किसी गलत सँगत में हो। " माँ ने थोड़ा क्रोध भरे स्वर में कहा।

 "नहीं माँ मैं कुछ ग़लत नहीं कर रहा हूँ। क्या मै चोरी,डकैती करता हूँ या किसी की हत्या? नहीं न , फिर क्या ग़लत करता हूँ। "सोहन कह तो रहा था पर समझ तो रहा ही था कि‌ भले ही वह यह सब नहीं कर रहा है पर जो वह कर रहा है वह भी गैरकानूनी और गलत है।

 " बेटा समझाना मेरा काम है मैं तो तुम्हें गलत राह जाने से रोकूँगी ही। बेटा देखो अब तो तुम्हारी शादी भी हो चुकी है और एक पराए घर की लड़की की जिम्मेदारी भी तुम्हारे हिस्से में आ गई है।  तुम कुछ और काम करो पर यह सब बिजनेस छोड़ दो। " माँ के स्वर में आग्रह के भाव समाहित थे।

"कुछ नहीं होगा और दूसरी जगह इतना पैसा है भी नहीं। माँ थोड़ा समझा करो। मैं कुछ गलत नहीं करता हूँ। " सोहन ने माँ से कहा तो पर वह खुद भी इस दलदल से निकलना तो बहुत चाहता था पर चाहते हुए भी उससे नहीं निकल सकता था। उसके थोड़े से नासमझी और लालच ने उसे ऐसे दलदल में धकेल दिया था जहाँ से उसका निकलना अब नामुमकिन था।

घर में कोई भी सदस्य सोहन के बारे में किसी तरह की बात करने से बचते थे। सोहन के बड़े भाई मोहन की भी लड़कियाँ बड़ी हो रही थीं।  इधर सोहन के भी दो लड़कियाँ हो गई थी। इन लड़कियों के कारण सोहन के माता- पिता और भी चिंतित रहते थे। सोहन की पत्नी सोनम से भी पूरे घर के लोग लगभग दूरी बनाये रखते थे। वे न तो कभी उससे कोई पैसा लेते और न ही ढंग से बात ही करते थे। जेठ जेठानी भी उससे बात नहीं करते थे और अपने बच्चों को भी उससे दूर ही रखते थे। सोनम को समझ में ही नहीं आता कि घर के लोग उससे क्यों नाराज़ रहते हैं फिर भी वह घर के सभी काम निपटाती व सास ससुर तथा दादा जी का हमेशा ख्याल रखती थी। इतना सब करने पर भी घर में सभी का मुँह बना ही रहता था।

एक दिन अचानक सास जी सोनम के कमरे में आयीं - "सोनम तुमने कुछ खाया है?"

  "नहीं, अभी नहीं माँ । "

  "कुछ ब्रेड वेड खा लो,चाय से और बच्चों को भी खिला दो। "

  "जी माँ। "

सोनम को बहुत आश्चर्य हुआ कि माँ ने उसके खाने पर ध्यान रखा। उसने चाय के साथ ब्रेड खाया और अपनी दोनों लड़कियों को भी दूध के साथ ब्रेड खिला दिया। बर्तन साफ कर रही थी की तभी उसे नीचे रोज के दिनों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही आवाजाही दिखाई दी। उसे कुछ भी समझ में आता की माँ के रोने की आवाज़ उसके कानों में पड़ी। वह जल्दी से नीचे आयी । वहाँ वह माँ से कुछ पूछ पाती की पुलिस की गाड़ी और एम्बुलेंस उसके दरवाज़े पर आकर खड़ी हो गई। एम्बुलेंस से उसके पति सोहन का मृत शरीर उतारा जा रहा था।

 मुहल्ले का एक आदमी दूसरे को बता रहा था,

" अरे भाई यह कल रात में तस्करी करते हुए पकड़ा गया था और बदमाशों ने उसे उसी समय गोली मारकर खत्म कर दिया। "

"बहुत ही बुरा हुआ महेश जी के साथ। एक बेटा राम जैसा है दूसरा ऐसा निकला ?" दूसरे ने कहा

 सोनम के कान में एक एक शब्द पिघले हुए शीशे की तरह पड़ रहे थे। हर महीने दो महीने का व्यापार और लाखों की आमदनी अब सब कुछ उसकी समझ में आ रहा था । उसके आँखों के आगे अँधेरा-सा छा गया और वह वहीं पर बेहोश होकर धड़ाम से गिर गई। डॉ बुलाया गया तब वह कई घंटों के बाद होश में आई।

 इधर जल्दी जल्दी अंतिम संस्कार निपटाया गया तथा चार दिनों में ही सारे क्रिया कर्म भी कर दिए गए। घर में सभी के अन्दर एक अपराध बोध की भावना घर कर गई थी। घर में आने जाने वाले लोगों से वे ढँग से नजर भी नहीं मिला पा रहे थे। आने जाने वाले लोगों का भी कुछ यही हाल था वे क्या कहकर उनको सांत्वना दें, यही नहीं  समझ पा रहे थे।

 तीन चार महीने के बाद सोनम की सास के पास उनकी दूर की बहन मिलने आयीं। बातों ही बातों में उन्होंने बताया,

 " जिज्जी लखनऊ में एक जज है जिनके दोनों बेटे भी वकील हैं। बड़े बेटे की पत्नी एक बेटे को जन्म देकर खत्म हो गई है। पाँच सौ गज में तो उनकी कोठी है। घर में नौकर चाकर,तीन तीन गाड़ी सबकुछ है। तुम्हारी नजर में यदि कोई अच्छी लड़की हो तो जरूर बताना। "

 " विधवा चल जायेगी?"

  " अरे काहे नहीं? वह भी तो विधुर है पर लड़की थोड़ी पढ़ी लिखी और सुन्दर होनी चाहिए। "

  " ठीक है तो फिर तुम मेरी बहू सोनम की बात चलाओ,अभी चौबीस की भी तो नहीं है तीन साल में दो बेटी की माँ भी बन गयी। "

"अरे जिज्जी क्या कह रही हो ? तुम बहू की शादी करोगी?

 "तो क्या हुआ , वह मेरी बेटी होती तब भी तो मैं उसके बारे में यही सोचती न !

"और उसकी दोनों लड़कियाँ कहाँ जायेंगी?"

" उनकी कोई चिंता नहीं है । दोनों लड़कियों में से एक को तो मैं पाल लूँगी और दूसरी को उसकी नानी पाल लेंगी,उसका भी खर्चा मैं ही उठाऊँगी। "

पहले तो सोनम ने साफ मना कर दिया फिर  मायके वालों तथा सास व जिठानी के समझाने पर वह किसी तरह तैयार हुई। ससुराल वालों ने ही उसकी शादी जज साहब के बेटे विवेक से कर दिया गया। धीरे धीरे सब कुछ सामान्य होने लगा । सोनम अपने नये घर में दूसरे पति के बेटे को अपने सगे बेटे के समान पालने लगी। पूरे परिवार को उसने अपने अच्छे स्वभाव से प्रभावित कर लिया था। अपनी सास तथा बच्चियों से भी रोज ही बातें करती रहती। अपने पति विवेक के बहुत समझाने पर बच्चियों को भी उसने अपने पास बुला लिया। अब सभी खुशी खुशी रह रहे थे।  

कभी कभी अजीबोगरीब घटनाएँ घटित हो जाती हैं। करीब चार साल बाद उसकी देवरानी भी एक एक्सीडेंट में खत्म हो गई। उसके भी एक छोटा सा दो साल का बेटा था। अब सोनम उसे भी अपने ही बच्चे जैसा पालने लगी। उसके प्रेम और देखभाल को देखकर कोई भी यह नहीं कह सकता था की ये चारों बच्चे अलग-अलग माँ के जाये बच्चे हैं। बच्चे भी उसको ही अब अपनी माँ 

समझते थे।  

अब घर में देवर मनीष के दूसरे विवाह की बात चलने लगी । उसको अपने पहले ससुराल और जिठानी की लड़की का ख्याल आया। उसने जिठानी से बात की तो वे तुरंत ही राजीखुशी तैयार हो गयीं । अब पहले की जिठानी की बेटी उसकी अपनी देवरानी बनकर उसके घर आ गई। अब सोनम पाँच पाँच बच्चों का सुख भोग रही है। पहले पति की दो बेटियाँ ,अपना बेटा और देवर का बेटा तथा पूर्व जिठानी की बेटी जिसको वह देवरानी कम और बेटी ज्यादा ही मानती है। सोनम का नाम लोग बड़े ही आदर से लेते हैं। समय का पहिया भी बहुत अजीब है। किसे कहाँ से कहाँ पहुँचा दे यह कोई भी नहीं जानता है।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational