स्कूल से लेकर शादी तक
स्कूल से लेकर शादी तक
अक्सर दुनिया में ऐसी जोड़ियां मिलती हैं जो अपनी कामयाबी की तारीफें दूर दूर तक करवाती हैं। और वह ऐसा प्रतीत करवाती हैं कि जैसे उनके इस महान काम को होना ही था, उनकी प्रीत सच्ची थी तो मोहब्बत में जीत होनी ही थी। वह अपनी जोड़ी को दुनिया को मिसाल बताना चाहती हैं। पर क्या ऐसा सच में होता है आप जानते हैं कि जो इंसान बाहर दिखता है वह उनकी वास्तविकता होती है??और सबको उनकी तरह हर मार्ग अपनाना चाहिए जिससे जीवन अपने सपनों की उड़ान से सजाया जा सके।
नहीं यह शत प्रतिशत सत्य नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसे जीते जागते उदाहरण अपनी जिंदगी में देखे हैं जो भी मौजूद हैं। दरअसल बात तब की हैं जब नीरव और प्रीति एक साथ दसवीं में पढ़ते थे । दोनों ही पढ़ने में बहुत होशियार और प्रतिभाशाली थे। प्रीति नीरव को चाहने लगी थी लेकिन नीरव किसी दूसरी लड़की से दोस्ती कर चुका था। वे दोनों ही एक दूसरे को अच्छे से समझ पाते थे और आजीवन के लिए एक दूसरे के साथी बनना चाहते थे। नीरव प्रीति की कोई बात और उसकी चाहत का ध्यान नहीं रख पाता। किंतु उसे छोड़कर बाकी सारी कक्षा को प्रीति की चाहत के बारे में मालूम था। इसलिए वे सब मौके की तलाश में होते थे कि कब प्रीति का नाम नीरव के नाम से जोड़ कर उसे चिढ़ाना है।
प्रीति दिखने में बहुत सुंदर थी और पढ़ने में अव्वल थी ही। जब भी गुरुजी कोई सवाल पूछते तो लड़कों में नीरव और लड़कियों में प्रीति ही प्रथम होते जवाबदेही में तो जब एक साथ दोनों उठते किसी सवाल का जवाब देने तो पूरी कक्षा में शोर और तालियां बजती। प्रीति चाहती थी इसलिए वह मुस्कुरा जाती और नीरव भी उसकी तरफ देख कर फिर चुप खड़ा रहता। जिज्ञासा जो नीरव की अच्छी दोस्त थी और शायद दोनों आजीवन साथी बनना चाहते थे किंतु जिज्ञासा की कुछ आदतों और बातों ने नीरव के परिवार के मन को ठेस पहुंचाई जिस कारण नीरव के परिवार ने उसे बहु बनाने से साफ इंकार कर दिया।
नीरव स्नातकोत्तर की पढ़ाई के लिए लखनऊ चला गया जहां उसे बहुत सारे दोस्त मिले और एक खास दोस्त शिवम मिला जो नीरव के साथ ही रहते थे और मिलजुल कर कमरे में काम करते थे। इस बीच एक बार नीरव शिवम के साथ अपने गांव आया कॉलेज की छुट्टियां बिताने। और सब से शिवम का परिचय करवाया, शिवम नीरव का बहुत ही ख्याल रखता था और हमदर्द भी। एक शाम घूमने से आने के बाद नीरव की चचेरी बहन ने उन्हें चाय पर अपने घर बुलाया। चाय पिलाकर नीरव चला गया और शिवम को चेतना ने रोक दिया ये कहकर कि उसे कॉलेज को लेकर शिवम से बात करना चाहती है।
लेकिन असल में चेतना ने शिवम को नीरव और प्रीति के बारे में बताने के लिए रोका था और वह चाहती थी कि प्रीति उस घर में बहु बन कर आए, t प्रीति और चेतना दोनों अच्छी दोस्त थी इसलिए उन्हें एक दूसरे के बारे में सभी बातें पता थी।और उसने शिवम को सारी बातें बताई। और शिवम ने खुद से वादा कर लिया कि वह नीरव और प्रीति को एक साथ करके रहेगा। और पूछने पर नीरव ने भी अनुमति दे दी। कारण था की आखिर उसकी जीवनसंगिनी वह है जिसे कम से कम वह जानता तो है।
फिर क्या था ? शिवम ने ऐड़ी चोटी का जोर लगा दिया नीरव की मां को इस तरह कहानी बनाकर प्रभावित कर दिया कि वह प्रीति को देखने को राजी हो गई ।और फिर बड़ी ही सरलता से उन लोगों ने योजनाएं बनाई और सफल हुए। नीरव की मां को प्रीति पसंद आ गई थी, और शादी की बात भी पक्की हो गई और कुछ समय अंतराल में दोनों की शादी हो गई। रीति रिवाजों के अनुसार शादी के बाद नीरव और प्रीति अपने अपने घर में रहे। कुछ साल बाद प्रीति ससुराल आना था, और दोनों ही नीरव अपनी नौकरी और प्रीति ने अपनी पढ़ाई जारी रखी। कभी कभी फोन पर बात होती और अपने एक हो जाने की खुशी का एहसान प्रीति शिवम को मानती, उन्हें बड़ा भाई मानती थी। जबकि शादी की बात से लेकर शादी होने के बीच में नीरव और प्रीति के परिवार के बीच कहा सुनी हुई और फिर भी प्रीति ने घर वालों को मनाया ।
लेकिन दूरी ने शायद प्रीति के मन में शक से भरे सवालों का घड़ा बनता गया ,और रोजाना यही बातों में बहस होती फोन पर नीरव कभी सफाई देता तो कभी गुस्से में तलाक तक की बात कर बैठता। वो कहता जब शक था तो शादी के लिए जिद क्यों की थी, क्यों अपने घर वालों के खिलाफ खड़ी थी?? अगर आगे भी यही हालात रहे तो मैं कैसे अपनी जिंदगी जीयूंगा? रोज बहस होती रोज लड़ते और धीरे धीरे फोन कम होने लगे हालांकि इस दौरान एक पारिवारिक शादी में दोनों ने मुलाकात भी की और दोनों ने एक दूसरे को समय भी दिया। पर कुछ फायदा नहीं हुआ। आज दोनों के विचार एक दूसरे से इतने अलग हैं कि न बात होती हैं ना एक दूसरे की किसी भी चीज से मतलब रखते हैं। यहां तक कि सालगिरह तो दूर की बात है एक दूसरे का जन्मदिन पर भी वह नहीं देते।